(India G-20) भारत जी-20: डिजिटल वित्तीय समावेशन का वैश्वीकरण

(India G-20)

(India G-20) वी. अनंत नागेश्वरन और चंचल सी. सरकार

 

वैकल्पिक शीर्षक:
*डिजिटल वित्तीय समावेशन: अपार अवसरों की दुनिया
*जी-20 इंडिया: वित्तीय समावेशन को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना
* डिजिटल वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया में नई क्रांति की शुरुआत

(India G-20)  वित्तीय समावेशन को लंबे समय से आर्थिक वृद्धि और विकास के प्रमुख क्षमता-प्रदाता के रूप में मान्यता दी जाती है। यह गरीबी को कम करने व उत्पादक अर्थव्यवस्था के दायरे में लोगों को सशक्त बनाने और आपस में संपर्क स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार, सत्रह सतत विकास लक्ष्यों में से सात के लिए, वित्तीय समावेशन की क्षमता-प्रदाता के रूप में पहचान की गयी है।

(India G-20) वैश्विक वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में, 2010 के अंत में, जी-20 राजनेताओं ने वित्तीय समावेशन को वैश्विक विकास एजेंडे के मुख्य स्तंभों में से एक के रूप में मान्यता दी। उन्होंने वित्तीय समावेशन कार्य योजना (एफआईएपी) का अनुमोदन किया और इसे जी-20 देशों एवं अन्य देशों में लागू करने के लिए वित्तीय समावेशन के लिए वैश्विक भागीदारी (जीपीएफआई) की स्थापना की। इस प्रकार, जीपीएफआई उन देशों के लिए काम करती है, जो जी-20 में शामिल नहीं हैं।

तब से, जीपीएफआई द्वारा वित्तीय समावेशन को आगे बढ़ाने की दिशा में काफी काम किए गए हैं। इसने कई उपयोगी नीति दस्तावेज तैयार किए हैं और उन्हें लागू किया है, जिनमें डिजिटल वित्तीय समावेशन के लिए जी-20 उच्च-स्तरीय सिद्धांत शामिल हैं। इसने धन-प्रेषण की लागत को कम किया है और सतत औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुंच व उपयोग में वृद्धि की है, जिनके माध्यम से वित्तीय सुविधाओं से वंचित व्यक्तियों, परिवारों और उद्यमों के लिए अवसरों का विस्तार हुआ है।

पिछले एक दशक में विकासशील देशों में अपना खाता रखने वालों की संख्?या लगभग दोगुनी होकर 71 प्रतिशत हो गई है जो कि मुख्?यत: तकनीकी नवाचार के साथ-साथ स्मार्टफोन, फिनटेक और हाई-स्पीड इंटरनेट के माध्यम से वित्त में डिजिटल नवाचार को अपनाने की बदौलत ही संभव हो पाया है । इस अहम बदलाव को जी-20 ने भी नोट किया है। दरअसल, न केवल वित्तीय समावेशन, बल्कि डिजिटल वित्तीय समावेशन भी पिछले कुछ वर्षों से एक प्रमुख फोकस क्षेत्र रहा है।

जी-20 की विभिन्?न रिपोर्ट व नीतिगत मार्गदर्शन गैर-सदस्य देशों को अपने यहां और ज्?यादा वित्तीय समावेशन सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी, नवाचार और डिजिटलीकरण का लाभ उठाने के लिए निरंतर प्रेरित करते रहे हैं। हालांकि, एक अहम सवाल यह है कि इस दिशा में व्?यापक प्रगति होने के बावजूद पूरी दुनिया को वित्तीय समावेशन के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकियों की पूरी क्षमता का सदुपयोग करने से आखिरकार क्या चीज रोक रही है? इसके साथ ही एक सवाल यह भी है कि वित्तीय समावेशन में उल्?लेखनीय तेजी लाने के लिहाज से किसी और को नहीं, बल्कि भारत को ही वैश्विक स्?तर पर आशा की किरण क्यों माना जाता है?

पूरी दुनिया की लगभग 31 प्रतिशत आबादी, जिनमें बड़ी संख्?या में महिलाएं, गरीब और कम शिक्षित वयस्क शामिल हैं, के अभी भी औपचारिक वित्तीय प्रणाली से बाहर रहने को देखते हुए अब डिजिटल वित्तीय इकोसिस्टम पर नए सिरे से विचार करने और डिजिटल वित्तीय समावेशन के लिए इस दिशा में एक नई क्रांति का सूत्रपात करने के तरीके तलाशने का समय अब आ गया है।

इंडिया स्टैक शायद वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के हमारे देश के प्रयासों का सबसे बढिय़ा उदाहरण है। स्टैक नीति निर्माताओं, नियामकों, निजी क्षेत्र और उपयोगकर्ताओं जैसे डिजिटल वित्तीय इकोसिस्टम के विभिन्न हितधारकों को एकजुट करता है और पहचान, भुगतान प्रणाली, डेटाबेस, खुले नेटवर्क और खुले इंटरफेस (एपीआई) जैसे घटकों को एक दूसरे के पूरक बनने हेतु एक एकीकृत मंच के रूप में परिवर्तित करता है। इकोसिस्टम से संबंधित इस तरह के दृष्टिकोण ने विकास की गति को एक लंबी छलांग दी है क्योंकि यह दोनों के बीच संतुलन बनाते हुए नियामकों को विनियमित करने और निजी क्षेत्र को नवाचार करने के अनुकूल माहौल को बढ़ावा देता है। अपने नाम के बावजूद, इंडिया स्टैक सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है और इस प्रकार वह दूसरों देशों को मदद और सुविधा प्रदान कर सकता है। इसकी दृष्टि और महत्वाकांक्षाएं हमारी राष्ट्रीय सीमाओं से बहुत आगे तक जाती हैं। स्टैक के मूलभूत स्वरूप (टेम्पलेट) को अन्य देशों- चाहे वे विकसित हों या उभर रहे हों- की उनकी अनूठी जरूरतों के अनुरूप वहां की उपलब्ध परिस्थितियों में भी लागू किया जा सकता है ।

इस अनूठे स्वरूप के कारण, पिछले दशक के दौरान, भारत ने 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक के मासिक यूपीआई भुगतान को संभव बनाते हुए 1.3 बिलियन आधार पंजीकरण का आंकड़ा हासिल किया है। और जन धन, आधार एवं मोबाइल (जेएएम) की त्रिमूर्ति के तहत 470 मिलियन से अधिक लाभार्थी हैं, जिनमें से 55 प्रतिशत महिलाएं हैं तथा 67 प्रतिशत लाभार्थी ग्रामीण या अर्ध-शहरी क्षेत्रों में रहते हैं। अब जबकि हमारे सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सिर्फ सात वर्षों का समय बचा है, एक विश्वव्यापी क्रांति के रूप में डिजिटल वित्तीय समावेशन की शुरुआत करने के लिए वित्तीय सेवाओं की इसी गति, मात्रा और गुणवत्ता को आगे बनाए रखने की जरूरत है।
ऐसे वक्त में जब कोलकाता जी-20 की भारतीय अध्यक्षता के अंतर्गत पहली जीपीएफआई बैठक की मेजबानी करने के लिए तैयार हो रहा है, तब प्रमुख मसलों में से एक होगा प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर वित्तीय समावेशन की चुनौतियों को दूर करना ताकि वित्तीय सेवाओं की पहुंच, उपयोग और गुणवत्ता, लोगों के जीवन को बदलने तथा अर्थव्यवस्था में उत्पादकता में वृद्धि करने के तिहरे उद्देश्यों को हासिल किया जा सके।

इस बैठक के साथ-साथ स्कूली बच्चों के बीच वित्तीय साक्षरता और जागरूकता के निर्माण को समर्पित पहल भी होगी। ये आयोजन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और उपक्रमों द्वारा वित्त में ऐसे विभिन्न डिजिटल नवाचारों का प्रदर्शन भी देखेगा, जिन्होंने अंतिम छोर तक पहुंचने में भारत की उत्कृष्ट सफलता में योगदान दिया है। दुनिया भर के प्रमुख वक्ता इस विषय पर अपने बहुमूल्य विचार रखेंगे कि वित्तीय समावेशन और उत्पादकता में आगे बढऩे के लिए कैसे दुनिया के देश अपनी तकनीकी क्षमताओं का लाभ उठा सकते हैं।
कोलकाता में जीपीएफआई कार्यकारी समूह की पहली बैठक वैश्विक स्तर पर डिजिटल वित्तीय समावेशन में आगे बढऩे को लेकर भारत के रुख की एक लंबी और समृद्ध यात्रा शुरू कर सकती है।

(लेखक वित्त मंत्रालय, भारत सरकार में क्रमश: मुख्य आर्थिक सलाहकार और आर्थिक सलाहकार हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।)

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