Gas chamber दिल्ली से ही देश का गैस चैम्बर!

Gas chamber  हरिशंकर व्यास

Gas chamber  मैं सन् 1975 में दिल्ली आया। सन् 1985 में पहली बार विदेश मतलब लंदन गया। दिल्ली में स्थायी तौर पर बसा और लंदन कितनी बार गया, यह मुझे ध्यान नहीं! लेकिन मैंने दिल्ली और लंदन, उनके साथ बड़े महाविकसित वाशिंगटन, पेरिस से लेकर लेकर छोटे मॉरीशस की पोर्ट लुईस से ले कर इंडोनेशिया की राजधानी जर्काता सबको देखा-बूझा और मेरा यह निर्विवाद निचोड़ है कि 47 वर्षों में दिल्ली जितनी दरिद्रताओं, जैसी चरित्रहीनता, फूहड़ता और घुटी-जहरीली सांसों का आईलैंड बनी है वह आजाद भारत के 75 वर्षों का वह विष है, जिससे हर भारतीय खोखला हुआ है, मगर बिना इस सुध के की वह प्रदूषित, गंदा जीवन जी रहा है।

Gas chamber  सोचें, 75 वर्षों में सर्वाधिक विकास कहां हुआ? दिल्ली में! सर्वाधिक कथित काबिल अफसर कहां पोस्ट रहे? दिल्ली में! सर्वाधिक कथित समझदार नेता, कथित पढ़ा-लिखा ज्ञानी-एलिट कहां था और है? दिल्ली में! श्रेष्ठतम विज्ञानियों, चिकित्सकों, रिसर्चरों, पर्यावरणविदों का शहर कौन सा? दिल्ली! देश की चर्चाओं, समझदारियों के नगाड़ेबाज पत्रकारों और मीडिया का सेंटर कहां? दिल्ली! टाउन-प्लानिंग, बाग-बगीचों में सर्वाधिक पैसा खर्च करने वाली नगरपालिका और संस्थाएं कहां? नई दिल्ली में!

Gas chamber  स्वच्छता अभियान का मुख्यालय और उसका प्रणेता प्रधानमंत्री कहां? दिल्ली में! मतलब भारत के 140 करोड़ लोगों का दिल, उसकी सांसें, उसके मतलबों, उसके सरोकारों और देश के जनसांख्यिकी चरित्र का प्रतिनिधि अकेला और नंबर एक शहर का नाम है दिल्ली!

और यह दिल्ली 75 वर्ष पहले क्या थी और आज क्या है? मैं फिलहाल दिल्ली से भागा हुआ हूं। राजस्थान में हूं। और ऐसा कई सालों से सर्दियों में होता है। उम्र बढऩे और जीवन के उत्तरार्ध में चाहे-अनचाहे दिवाली से गले में खिच-खिच, खांसी बनने के साथ मैं धुंध, ठंढ और सूरज की दम तोड़ती किरणों के बुझे परिवेश के इस गंदे शहर को छोड़ जयपुर, भोपाल, चंडीगढ़ कहीं भी जाने की सोचता हूं।

Gas chamber  उस नाते मैने बहुत बारीकी से दिल्ली को बदलते बूझा है। दिल्ली नरक है या नहीं, गैस चैम्बर है या नहीं, भारतीयों को लूटने का सनातनी सत्ता केंद्र है या नहीं, इसके प्रमाण की कई वैश्विक सुर्खियां हैं। मगर आजादी के 75 वर्षों में, और मेरे खुद के 47 साल के अनुभवों का निचोड़ है कि दिल्ली का विकास दुनिया की भ्रष्टतम राजधानी बनने का है। दिल्ली मतलब भ्रष्ट, संस्कारविहीन, चरित्रहीन, मनुष्य जीवन के हर पहलू में नीचताओं को पैठाने वाले प्रदूषित, दमघोंटू और घुटन भरी जहरीली जिंदगी का गैस चैम्बर है दिल्ली!

और इसी दिल्ली से भारत राष्ट्र-राज्य बिगड़ा है, लगातार बिगड़ता हुआ है। दिल्ली से ही देश करप्ट है। देश की राजनीति प्रदूषित है। हिंदू समाज अंधेरों और अंधविश्वासों में जीता हुआ है। भारत की सांसों, उसकी शक्ति, आर्थिक पराधीनता, भयाकुलता से खत्म होते हुए है। लोगों की निज आजादी, बुद्धि-ज्ञान-सत्य की अभिव्यक्तियों पर इसी दिल्ली की सत्ता से कोड़े चलते हुए है। दिल्ली पूरे भारत के कूड़े का वह महापहाड़ है, जिसकी सांस और जिसकी प्रकृति से भारत और उसके 140 करोड़ लोगों का जीवन साल दर साल बदहाल और बेमतलब और स्वार्थी, मतलबी होता हुआ है।

यह सब समझना हम भारतीयों की खोपड़ी को इसलिए समझ नहीं आता है क्योंकि दिल-दिमाग यदि प्रदूषित आबोहवा, गैस चैम्बर में, अपने कुएं में जीने का आदी गुलाम है तो कैसे यह हकीकत कौंधेगी कि दिल्ली और दूसरे देश की राजधानियों, भारत और दूसरे देशों में भला इतना फर्क कैसे? मैं 47 वर्षों से दिल्ली के गैस चैम्बर के विकराल रूप को बनते देख रहा हूं। दुनिया भी जाने हुए है। ऐसा विश्व राजधानी लंदन के साथ तो नहीं है। दिल्ली महाप्रदूषित और लंदन जीने लायक तो इस फर्क की वजह सिर्फ और सिर्फ यह है कि हम भारतीयों का दिमाग अचेतना की मनोदशा का बंधक है!

मेरी बुद्धि ने इस मामले में सोचना बंद कर रखा है कि पंजाब-हरियाणा की पराली से यदि दिल्ली गैस चैम्बर बनता है तो चंडीगढ़, पंचकूला या जम्मू, अलवर, जयपुर क्यों नहीं बनते? आज सुबह डॉ. वेदप्रताप वैदिक से बात हो रही थी। उनका बताना था कि वे दो दिन पहले हरियाणा के पंचकूला में थे। वहां सांस लेते हुए उन्हें रत्ती भर घुटन नहीं हुई। हां, पंजाब-हरियाणा से सटे हिमाचल के उना और सोलन से नीचे के मैदानी इलाके में कभी सुनने को नहीं मिलता कि पंजाब के किसानों के पराली जलाने से वहां भी जीना नरक है।

तब देश की राजधानी दिल्ली ही क्यों नरक? प्राकृतिक कारणों याकि सर्दियों में हवा के दक्षिण दिशा, दिल्ली की तरफ रहने का मसला अपनी जगह है मगर ऐसा तो दशकों से है। और यदि प्रदूषण में पराली का फैक्टर 12 से 22 प्रतिशत रोल अदा करता है तो बाकी 78 प्रतिशत वजह तो खुद दिल्ली है। यह वजह क्रमिक विकास याकि सत्यानाश की वजह से क्या नहीं है? वह विकास जो दिल्ली का है तो देश का भी है। प्रदूषण हर तरफ है लेकिन पूरे देश की गंगोत्री दिल्ली इसलिए है क्योंकि दिल्ली में बैठे सत्तावानों में यह बेसिक समझ भी नहीं दिखी कि यदि राजधानी लंदन सौ साल पहले का खुला रूप आज भी लिए हुए है तो ऐसा मानव सेटलमेंट की बेसिक समझदारी की प्लानिंग के चलते है। मेरे आंखों देखे 47 सालों में दिल्ली के हर सत्तावान ने, नई दिल्ली नगरपालिका से लेकर नगर परिषद, दिल्ली सरकार सबने जान बूझकर झुग्गी-झोपडिय़ों, डीजल उपयोग और चौतरफा कंस्ट्रक्शन की उस ठेकेदारी में दिल्ली को बांधा है कि उसमें भीड़ और बरबादी बनी तो बतौर प्रतिमान उसका मॉडल देश का मॉडल है।

नई दिल्ली नगरपालिका के हाकिम हो या सीपीडब्लुडी के मंत्री या भारत के प्रधानमंत्री सबकी प्लानिंग, सबका विजन, सबका विकास, सबकी राजनीति, सबकी अमीरी का बीज तत्व है ठेकेदार और ठेकेदारी! 47 साल पहले लंदन का व्हाइट हॉल इलाका, याकि महारानी, प्रधानमंत्री, मंत्रालयों का इलाका जैसा था वैसा आज भी, ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के वक्त में भी बीबीसी की हेलीकॉप्टर कवरेज से जस का तस जाहिर हुआ। ठीक विपरीत 1947 में नई दिल्ली और आज की नई दिल्ली में दिन-रात का अंतर है। पंडित नेहरू ने अगल-बगल तब कर्मचारियों की कॉलोनियां बनवाईं। मंत्रालयों की नई इमारतें बनवाईं। और आज भी वही हो रहा है।

नेहरू के समय के निर्माण को ढहा कर अब कर्मचारियों के लिए नई बहुमंजिला इमारतें बन रही हैं। अंग्रेजों के बनाए संसद भवन की जगह नया संसद भवन बन रहा हैं। मंत्रालयों की नई इमारतें बन रही हैं। अंग्रेजों का लोकतंत्र तीन सौ-चार सौ और संसद भवन तो आठ सौ साल पुराने स्थान से चलता हुआ है, वहां के संसद कक्ष में सांसद खड़े रहकर भी काम कर लेते हैं और मंत्रालयों में सरकार के घटते काम से भरपूर खाली स्थान बने हुए हैं तथा प्रधानमंत्री सैकड़ों साल पुराने मकान में रहता है। मगर भारत महान और उसकी राजधानी नई दिल्ली के ठेकेदारों का कमाल देखिए कि जो प्रधानमंत्री के लिए नया राजमहल बन रहा है तो खाली-सूना राष्ट्रपति भवन प्रदूषण की धुंध से बीच खड़ा हर तरह के प्रदूषित भारत का प्रतिमान!

तभी आधुनिक दिल्ली सचमुच लुटरे-मूर्ख शासकों की बदनियती और ठेकेदारों से बदसूरत, भ्रष्ट व प्रदूषित है। दिल्ली का प्रदूषण, दिल्ली की गंदगी और दिल्ली का चरित्रहीन, मतलबी मिजाज 75 वर्षों में बने उन भारत संस्कारों का परिणाम है, जिससे कुछ भी स्वास्थ्यजनक हो सकना संभव नहीं है। मेरे से छह-आठ साल पहले डॉ. वेदप्रताप वैदिक दिल्ली आए थे।

Gas chamber उनसे मैंने तब और अब की दिल्ली पर बात की तो उनकी राय में दिल्ली के पतन का नंबर एक लक्षण है दिल्ली अब मतलबी है। मतलब काम होगा तो लोग पूछेंगे और नहीं तो कितने ही किसी पर अहसान किए हुए हो सब भूले रहेंगे। मुझे उनका यह अर्थ सामयिक याकि मोदी-भाजपा राज के अनुभवों से बना लगा। संदेह नहीं दिल्ली आज गंदगी के सुपर प्रदूषणों की गंगोत्री ही नहीं है, बल्कि नैतिक पतन, बेईमानी का वह शिखर है, जिसमें सब कुछ बिकाऊ है।

Gas chamber जहां सत्ता, राजनीति, विचार और बुद्धि सब कुछ खरीद-फरोख्त की मंडी में बिकाऊ। दुर्योधन की इंद्रप्रस्थ। सन् 2022 की दिल्ली वह बेमतलबी राजधानी है, जिसमें न मानवीयता है न स्वच्छता है, न संवेदना है और न जिम्मेवारी या जवाबदेही।

Gas chamber  हां, ऐसा प्रदूषण बिना दिखे, बिना हल्ले के अघोषित रूप में लोगों की प्राणवायु में चुपचाप जहर घोलता जाता है, दिमाग-शरीर-व्यवहार को कमजोर बनाता जाता है। दिल्ली की आबोहवा और उसका चरित्र भी 140 करोड़ लोगों के जीवन, उनकी प्राणवायु को लगातार दूषित बनाता हुआ है। इसका भान आपदा-विपदा के सदमे जैसा नहीं होता है लेकिन नागरिकों की उम्र तो घट रही है, फेफड़े तो कमजोर हो रहे हैं, यह तो समझा ही जा सकता है। मैं या कोई भी प्रदूषण की घुटन के चलते भले दिल्ली से भागे जीना तो दिल्ली से है। दिल्ली की भ्रष्टताओं, बुद्धिहीनताओं, उसके झूठ और मतलबी तासीर से न मेरी मुक्ति है न किसी भी भारतीय की!

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