The brunt of colonialism औपनिवेशिकता के दंश

The brunt of colonialism

अजय दीक्षित

The brunt of colonialism औपनिवेशिकता के दंश

The brunt of colonialism  जब प्रधानमंत्री ने कर्तव्य पथ का उद्घाटन किया तो कहा था तो कहा था कि गुलामी के निशान मिटाने की यह प्रक्रिया है । असल में जिस सडक़ का नाम कर्तव्य पथ रखा गया है वह पहले राजपथ था और उससे पहले किंग्स वे था । मात्र नाम बदलने से हमारी मनुष्य की बदल जायेगी, यह हमारा भ्रम है ।

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फिर गुलाम भारत की मनोवृति आज भी हमारे अन्दर मौजूद है । कर्तव्य पथ के उद्घाटन के लिए जो कार्यक्रम देर शाम होना था उसमें प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर शाम चार बजे से ही रास्ते रोक दिये गये थे । यहॉं तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी कोर्ट चार बजे से काफी पहले बन्द हो गई ताकि जज उन सडक़ों से चार बजे से पहले निकल कर अपने घर चले जा सकें ।

भारत में अभी भी अंग्रेजों द्वारा बनाया गया सन् 1870 का सेडाशन कानून लागू है । अंग्रेजों ने इस कानून के तहत नेहरू जी और नेता जी समेत तब के सभी बड़े नेताओं को जेल में डाला था । यह काला कानून प्रजातंत्रिक मूल्यों के ठीक विपरीत बैठता है । स्वयं ब्रिटेन ने अपने देश में यह कानून 2009 में निरस्त कर दिया था ।

भारत में आज इस कानून का इस्तेमाल सत्ता पक्ष की आलोचना करने वालों के खिलाफ इस्तेमाल होता है । असल में, समीक्षा और आलोचना का फर्क कोई भी राजनैतिक दल नहीं समझता और सत्ता में आने के बाद इस कानून का दुरुपयोग करता है । भाजपा राज्य में तो इस कानून के अन्तर्गत बुद्धिजीवी युवाओं के खिलाफ इस्तेमाल हो रहा है । अच्छा है अभी भारत में मॉं-बाप अपने हठीले पुत्र-पुत्रियों के लिए इस कानून का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं ।

आप विपक्ष को चोर कह दें-[लगातार विपक्ष के नेताओं को चोर, डकैत, यौन-अपराधी आदि कहा जाता है, जबकि अभी तक किसी कोर्ट ने इन्हें यह सजा नहीं दी है । ] सत्तापक्ष को अब अदालतों जैसा फरमान सुनाने का भी मानों अधिकार मिल गया है । कोई नहीं पूछता कि संवित पात्रा स्वयं ई.एन.टी. एक्सपर्ट होने पर भी इलाज न करके विपक्ष को कोसते हैं तो क्यों नहीं उनकी डाक्टरी पढ़ाई में जो सरकारी खर्च हुआ है, वह वसूला जाये । फिर जिसे जनता ने नकार दिया, वह किस मुंह से सत्ता पक्ष का गुणगान करता है । [पुरी से 2019 में लोकसभा चुनाव हार चुके हैं ।] सन् 1862 में बना इण्डियन पैनल कोड आज भी चालू है । 1861 में बना पुलिस एक्ट आज भी लागू है ।

वायसराय के लिए 100 कमरों का वायसराय लॉज आज राष्ट्रपति भवन है, उसी सज्जो सामान और ठाठ बाट के साथ । हम गॉंधी जी के स्वैच्छिक दरिद्रता के सिद्धान्त को भूल गये । प्रान्तों में बने गवर्नर हाउस आज भी कायम हैं । वे अंग्रेज गवर्नरों के लिए बने थे । उनके वॉशरूम में डब्ल्यू.सी. आज भी पाश्चात्य शैली का है ।

किसी भी राज भवन में आज भी जॉर्ज पंचम की फोटो टंगी मिल जायेगी । हम राज्यों में सी.एम. राइज स्कूल और केन्द्रों में प्रधानमंत्री की पहल पर अंग्रेजी माध्यम स्कूल शुरु कर रहे हैं । हमारा वस चले तो फ्रांस और जर्मनी में भी अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोल दें । यह है हमारी भारतीयता या गुलामी की निशानी ।

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ब्रिटेन में राजनेता साधारण तरीके से रहते हैं । एक बार ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर डेविड कैमैरोन अण्डर ग्राउण्ड में सफर कर रहे थे तो एक भारतीय महिला ने पूछा कि क्या वे वास्तव में प्रधानमंत्री हैं ? हमारे यहॉं का राजतंत्र, न्याय व्यवस्था, प्रशासन सभी कुछ अभी भी ब्रिटिश ढर्रे पर है । हम नाहक भारतीयता की खोज में नाटक कर रहे हैं ।

अंग्रेजों के जमाने में कानून काला था । उसी कानून के तहत अंग्रेजों ने पॉंच बार गॉंधी को जेल में डाला था । आज भी कोर्ट में वकील काला कोट पहनते हैं क्योंकि अभी भी काला कानून जैसा यू.पी.ए. और एन.आई.ए. है ।

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