वेद प्रताप वैदिक
Supreem court हिजाब: हिरन पर क्यों लादे घांस
Supreem court आजकल सर्वोच्च न्यायालय में बहस चल रही है कि कर्नाटक की मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनें या न पहनें उच्च न्यायालय ने हिजाब पर पाबंदी को उचित ठहराया है। यहां बहस यह नहीं है कि हिजाब पहनना उचित है या नहीं सिर्फ स्कूल की छात्राएं पहने या न पहनें, यह प्रश्न है। इस मुद्दे पर पहला सवाल तो यही उठना चाहिए कि हिजाब पहना ही क्यों जाए क्या इसलिए पहना जाए कि डेढ़ हजार साल पहले अरब देशों की औरतें उसे पहनती थीं
Supreem court उनकी नकल हिंदुस्तान की औरतें क्यों करें क्या उन अरब औरतों की नकल हमारी लड़कियां करेंगी तो क्या वे बेहतर मुसलमान बन जाएंगी हमारे भारतीय मुसलमान भी समझते हैं कि वे अरबों की तरह कपड़े पहनें, दाढ़ी रखें, टोपी पहनें तो वे बेहतर मुसलमान बन जाएंगे। मेरा निवेदन यह है कि बेहतर मुसलमान बनने के लिए अरबों की नकल करना जरुरी नहीं है। जरुरी है कुरान शरीफ की उत्तम शिक्षाओं पर अमल करना।
Supreem court हमारे भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान आदि के मुसलमानों को मैं दुनिया का बेहतरीन मुसलमान मानता हूं, क्योंकि उन्हें हजारों वर्षों का आर्य-संस्कार परंपरा में मिला है जबकि पैगंबर मोहम्मद के पहले तो सारा अरब जगत अंधकार (जहालत) में डूबा हुआ था। लेकिन जहां तक हिजाब का सवाल है, वह न बुर्के की तरह है और न ही नकाब की तरह! उससे चेहरा भी नहीं छुपता है। वह हिंदू टीके, सिख पगड़ी और ईसाई क्रॉस की तरह है।
Supreem court इसीलिए उस पर एतराज क्यों होना चाहिए लेकिन मेरा सवाल यह भी है कि यदि हिजाब, नकाब और बुर्का मुस्लिम औरतों के लिए लाजिम है तो मुस्लिम मर्दों के लिए भी वह अनिवार्य क्यों नहीं होना चाहिए जब औरत और मर्द को बराबरी का हक हैं तो यह फर्क क्यों वैसे हिजाब ऐसा ही है, जैसे कि हिंदू औरतें कभी पर्दा किया करती थीं। पर्दे या घूंघट में मुंह छिपाने या दिखाने के दोनों विकल्प खुले होते हैं लेकिन पर्दा-प्रथा के विरुद्ध हिंदू समाज-सुधारकों ने जमकर मुहीम चलाई और उसका असर भी व्यापक हुआ।
Supreem court देश के मुस्लिम नेताओं और मौलानाओं को चाहिए कि वे इन गई-गुजरी पुरानी प्रथाओं से चिपके रहने का विरोध करें और भारत की मुस्लिम महिलाओं को आधुनिकता का पाठ पढ़ाएं। हिंदू और मुस्लिम औरतों पर पर्दा और हिजाब वैसा ही है, जैसा कि हिरन पर घांस लादना। जहां तक मुस्लिम छात्राओं का सवाल है, उन पर हिजाब लादने की कोई तुक ही नहीं है।
Supreem court हिजाब: हिरन पर क्यों लादे घांस
Supreem court पर्दा या हिजाब तो प्राय: विवाहित स्त्रियां ही करती हैं, ये जबर्दस्ती का बोझा स्कूल की बच्चियों पर क्यों लादा जाए यहां सवाल मजहबी प्रतीकों की रक्षा का नहीं है बल्कि यह है कि घिसी-पिटी पुरानी सामाजिक परंपराओं को मजहबी जामा पहनाना जरुरी है क्या !