Shrimad Bhagwat Katha फुलचंद दुबल धनिया परिवार द्वारा श्राद्ध श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन
Shrimad Bhagwat Katha सक्ती । नगर में फुलचंद दुबल धनिया परिवार द्वारा आयोजित किया गया श्राद्ध अंतर्गत श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन कथा व्यास मृदुल कृष्ण जी शास्त्री ने भगवान श्री कृष्णा की मधुर लीलाओं में उनका गृहस्थ धर्म , सुदामा चरित्र , यदुवंशियों का नाश एवं राजा परीक्षित की सद्गति और कलयुग के दोष् से प्राणी मात्र कैसे बचें , यह विस्तार से श्रवण कराया ।
Shrimad Bhagwat Katha उन्होंने बताया कि भगवान की भक्ति और उनका नाम स्मरण ही ज्ञान अज्ञान अवस्था में हुए पापों के नाश करने के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन है उन्होंने बताया कि भगवान सदैव अपने नाम लेने वालों पर कृपा ही करते हैं , श्री कृष्ण के बाल्य काल के प्रिय सखा जो सांदीपनि जी महाराज के आश्रम गुरुकुल में रहकर विद्या अध्ययन किए थे ऐसे सुदामा जी महाराज को भगवान ने हृदय से लगाया और उन्हें उच्च स्थान पर बैठा कर स्वयं उनके चरणों के पास बैठ गए ।
सुदामा जी का चरण। अपने आंसुओं से धोया , और अपने भाग्य की प्रशंसा स्वयं श्रीकृष्ण ने किया । सुदामा जी महाराज पर इतनी कृपा किया कि उन्हें अपने जैसा ही ईश्वर वान भी बना दिया । आचार्य ने बताया कि भक्ति के मार्ग में धैर्यता और आस्था दोनों जरूरी है , मन में विश्वास रखकर भगवान का भजन करते रहें क्योंकि यही कलयुग में पापों को नाश करने का सबसे बड़ा उपाय है ।
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कथा वाचक मृदुल शास्त्री जी ने कहा कि भागवत रूपी सत्कर्म के श्रवण लाभ से ही व्यास जी महाराज का व्यग्र चित्र शांत हुआ था , नैमिषारण्य मैं सूत जी महाराज ने सभी , ऋषि यों को भागवत का ज्ञान प्रदान किया ।
अपने पूर्वजों को सद्गति की कामना भागवत से ही पूरी की जा सकती है । यह पुराणों का तिलक है और पंचम वेद भी है । सातवें दिन की कथा में हजारों लोगों ने श्रीमद् भागवत कथा श्रवण कर अक्षय पुण्य प्राप्त किया!