Shrimad Bhagwat Katha कलयुग के समस्त दोषों को और पापों को नाश करने का एक ही उपाय है श्रीमद् भागवत कथा

Shrimad Bhagwat Katha

Shrimad Bhagwat Katha कलयुग के समस्त दोषों को और पापों को नाश करने का एक ही उपाय है श्रीमद् भागवत कथा

Shrimad Bhagwat Katha सक्ती । नगर में खरकिया परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के समापन दिवस पर व्यासपीठ से आचार्य राजेंद्र महाराज के द्वारा बताया गया कि कलयुग के समस्त दोषों को तथा तापो और पापों को नाश करने का एक ही उपाय है श्री कृष्ण जी का वांग्मय स्वरूप श्रीमद् भागवत कथा रूपी सत्कर्म को आत्मसात करना और हरी नाम का संकीर्तन करना ।

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Shrimad Bhagwat Katha भगवान श्री कृष्ण ने स्वधाम गमन करते हुए उद्धव जी को बताया कि मैंने इस सृष्टि में एक पॉव से लेकर अनेक पॉव वाले जीवों की रचना किया है , किंतु मुझे सबसे प्रिय मनुष्य योनि है जो अपने जीवन में सत्संग और हरि नाम संकीर्तन करते है । भगवान का नाम ही सर्वोपरि है , यह बातें नगर के हटरी चौक में गया श्राद्ध अंतर्गत आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन व्यासपीठ से आचार्य राजेंद्र महाराज ने कही ।


Shrimad Bhagwat Katha सातवें दिन की कथा में प्रदुम्न जन्म , स्यमंतक मणि की कथा , श्री कृष्ण कि गृहस्थ चर्या , सुदामा चरित्र और द्वादश स्कंध में भागवत धर्म का उपदेश बताते हुए कहा कि भगवान दीना नाम परिपालक है , उन्होंने अपने बाल्यकाल के प्रिय सखा सुदामा जी महाराज पर कृपा करते हुए ऐश्वर्यवान बना दिया था , सुदामा जी ने तो दुर्वासा ऋषि के द्वारा श्रापित चने को स्वयं खाकर द्वारिकाधीश श्री कृष्ण को श्राप से बचाया था यह एक ब्राह्मण की त्याग और बलिदान ही तो जो भगवान को भी दरिद्र होने से बचा सकते है इसीलिए तो भगवान स्वयं कहते हैं कि प्रमण मेरे हृदय में निवास करते हैं !

भगवान को दरिद्रता से बचाते हुए सुदामा स्वयं दिन हीन बन गए। सातवें दिन की कथा को श्रवण करते हुए सभी श्रोताओं ने चावल का तंडुंल भगवान को भेंट किया , और फूलों की होली खेलते हुए सभी ने नृत्य और संकीर्तन का आनंद भी प्राप्त किया श्रीमद् भागवत कथा समापन के दिन भागवत कथा का रसपान करने के लिए संयोगिता युद्धवीर सिंह जूदेव पूर्व विधायक डॉक्टर खिलावन साहू कई नगरों से एवं नगर के गणमान्य नागरिक ग्रामवासी जनप्रतिनिधि के द्वारा भागवत कथा का श्रवण कर पुण्य का लाभ प्राप्त किया इस अवसर पर आए हुए सभी प्रतिनिधियों के व्यासपीठ से आचार्य राजेंद्र महाराज के द्वारा श्री कृष्ण नाम का दुपट्टा एवं श्रीफल देकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया !

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