Shrimad Bhagwat Katha : दक्ष ने भगवान शिव का किया अपमान, सती अग्नि कुंड में कूद त्याग दिया प्राण

Shrimad Bhagwat Katha :

Shrimad Bhagwat Katha :दक्ष ने भगवान शिव का किया अपमान, सती अग्नि कुंड में कूद त्याग दिया प्राण

 


Shrimad Bhagwat Katha : सक्ती। नगर के हटरी चौक में फर्म कनीराम मांगेराम खरकिया परिवार के द्वारा श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन वेदव्यास से आचार्य राजेंद्र महाराज ने कहा कि आशा ही दुख और निराशा का कारण बन जाता है l दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के मन में बड़ी आशा थी कि अपने मायके होने वाले यज्ञ में अर्थात पिता के घर में मेरा बहुत सम्मान होगा , किंतु दक्ष के मन में भगवान शिव के लिए विरोधाभास होने के कारण सती का सम्मान नहीं हो सका जिसके कारण सती अग्नि कुंड में कूद गई । और अपने प्राण त्याग ने पड़े ।

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नीति की बात भी यही है कि कहीं जाने पर यदि मन में हर्ष और सम्मान के भाव नहीं दिखते तो ऐसे स्थान पर कभी भी नहीं जाना चाहिए भले ही वहां स्वर्ण की वर्षा क्यों ना होती हो, आचार्य राजेंद्र महराज ने श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस व्यासपीठ से आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने दक्ष यज्ञ प्रसंग का वर्णन करते हुए प्रकट किया ।

Shrimad Bhagwat Katha :  आचार्य ने श्रोताओं को बताया कि संसार मे किसी भी यज्ञ का उद्देश्य विश्व कल्याण ही होता है भले ही संकल्प किसी एक व्यक्ति का ही क्यों ना हो । यज्ञ और सनातन धर्म ही भगवान विष्णु का बल है, जिसे शत्रु भाव के कारण हिरण्यकश्यप नष्ट करना चाहता था , किंतु अपने अहंकार के कारण ही भगवान ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया और भक्त प्रहलाद की रक्षा की जो मानव भगवान के भक्ति में डूब जाता है !

उसकी नया भगवान इसी तरह बचाते हैं और हमेशा अपने भक्तों की किसी न किसी रूप में अवतार लेकर उनकी रक्षा करते हैं आचार्य ने कहा कि यज्ञ में कलश यात्रा करते हुए कलश को अपने सिर पर धारण करना सनातन धर्म को ही धारण करना है और ध्वज लेकर जय जयकार करना धर्म का जय करना है , धर्म हमेशा हमारी रक्षा करता है इसलिए हमारे गृहस्थ जीवन के सभी निर्णय भी धर्म पर ही आधारित होना चाहिए ।


आचार्य द्वारा कपिल अवतार की कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया गया कि भगवान कपिल देव ने अपनी माता देवहूति को तत्व ज्ञान का उपदेश एवं सत्संग की महिमा को बताया और कहा कि संसार में मैं और मेरा यही दोनों मोह के कारण हैं जब तक मनुष्य का मन इस संसार में फंसा रहता है तब तक वह संसार से बंधते जाता है और जिस दिन यही मन भगवान में अनुरक्त होता है तो उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं , सबका कारण हमारा मन ही है इसलिए भगवान के प्रति आस्थावान बने रहे मन को भगवान पर ही लगाएं ।

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भागवत में केवल भगवान की ही नहीं बल्कि उनके प्रिय भक्तों की भी कथा है जिसे श्रवण कर हम अपने जीवन की व्यथा दूर कर सकते हैं तृतीय दिवस की कथा का आनंद नगर एवं आसपास के ग्राम के अनेक श्रोताओं को प्राप्त हुआ । प्रतिदिन मधुर संगीत के साथ संकीर्तन एवं दिव्य झांकियों का दर्शन लाभ सभी श्रोताओं को प्राप्त हो रहा है ।

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