Shrimad Bhagwat Katha : बाराद्वार में श्री राधा मोहन मंदिर के 51 वर्ष पूर्ण होने पर श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन

Shrimad Bhagwat Katha :

Shrimad Bhagwat Katha : गृहस्थ जीवन में रह कर ही किया जा सकता है भगवान का सत्संग और पूजा 

Shrimad Bhagwat Katha सक्ती ! बाराद्वार मे श्री राधा मोहन मंदिर के 51 वर्ष पूर्ण होने पर 25 दिसंबर से 31 दिसंबर तक श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन किया गया है कथा के तीसरे दिन आचार्य परम पूज्य गोस्वामी दास बाबा जी के द्वारा कथा व्यास से कथा श्रवण श्रोताओं को श्रीमद्भागवत के महीमा को बताते हुए कपिल देव एवं मैया देवहूति के प्रसंग की कथा तथा प्रहलाद चरित्र का विस्तार से वर्णन किया गोविंद बाबा ने कहा कि माया मनुष्य का पीछा कभी नहीं छोड़ती , यदि मनुष्य भगवान की पूजा , तपस्या , संकीर्तन और कथा श्रवण तथा देव दर्शन के लिए मंदिर भी चला जाए तो माया उसके पीछे पीछे चलती रहती है ।

Shrimad Bhagwat Katha भगवान का सत्संग और पूजा तो अपने गृहस्थ जीवन में रह करके ही किया जा सकता है । राजा भरत अपने संपूर्ण राजश्री सत्ता और राज पाठ का परित्याग कर वन जाकर तपस्या ध्यान करने लगे परंतु वहां भी माया ने उनका पीछा नहीं छोड़ा तो माया मनुष्य का पीछा कभी नहीं छोड़ती , यदि मनुष्य भगवान की पूजा , तपस्या , संकीर्तन और कथा श्रवण तथा देव दर्शन के लिए मंदिर भी चला जाए तो माया उसके पीछे पीछे चलती रहती है । भगवान का सत्संग और पूजा तो अपने गृहस्थ जीवन में रह करके ही किया जा सकता है ।

Shrimad Bhagwat Katha राजा भरत ने अपने संपूर्ण राजश्री सत्ता और राज पाठ का परित्याग कर एकांत में तपस्या करने चले गए परंतु वहां भी इनका पीछा माया से नहीं छूटा इसी प्रकार माया मनुष्य का पीछा कभी नहीं छोड़ती , यदि मनुष्य भगवान की पूजा , तपस्या , संकीर्तन और कथा श्रवण तथा देव दर्शन के लिए मंदिर भी चला जाए तो माया उसके पीछे पीछे चलती रहती है । भगवान का सत्संग और पूजा तो अपने गृहस्थ जीवन में रह करके ही किया जा सकता है ।राजा भरत ने अपने संपूर्ण राजश्री सत्ता और राज पाठ का परित्याग कर ।

वन में जाकर भक्ति करना प्रारंभ किया , किंतु भगवान की भक्ति नहीं हो सकी और इतने बुद्धिमान राजा एक हिरणी की माया में फस कर अपना अगला जन्म ही बिगाड़ लिए और स्वयं पशु उन्हीं को प्राप्त हो गए , यह उद्गार बाराद्वार नगर में आयोजित विशाल 1008 श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के तीसरे दिन व्यासपीठ से गोविंद बाबा महाराज ने कही ।

कथा व्यास ने बताया की अंत समय में जिसकी जैसी करनी होती है वैसे ही उसकी गति भी बनती है । इसलिए मनुष्य अपने ज्ञान विवेक धर्म आदि का आश्रय लेकर अंत समय में भगवान नाम का ही आश्रय ले ,, जिससे आने वाला जन्म अभी सुधर जाए , गोविंद जी महाराज द्वारा यह भी बताया गया कि जीवन में आशा ही दुख का कारण बन जाता है , दक्ष पुत्री सती के मन में बड़ी आशा थी कि मेरे पिता के घर में आयोजित विशाल यज्ञ में जाने से मेरा बड़ा सम्मान होगा , मुझे सभी बहनों का और परिवार का प्यार मिलेगा किंतु दक्ष और भगवान महादेव के आपस में प्रतिकार होने के कारण सती को निराशा ही हुई ।

अपने पति का अपमान देखकर सती अग्नि कुंड में कूद गई , उसे अपना प्राण त्यागना पड़ा जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों ही परिस्थिति आती रहती है इसलिए मन भगवान पर लगा कर के ही अपने सारे कार्य और दायित्व निभाना चाहिए । भगवान को । तथा परिधि में संसार को रखकर कार्य करते रहने से प्रत्येक कर्म पूजा का ही स्वरूप बन जाता है ।

तीसरे दिन की कथा में हजारों श्रोताओं ने भागवत कथा अमृत का लाभ एवं अक्षय पुण्य प्राप्त किया भगवान की भक्ति नहीं हो सकी और इतने बुद्धिमान राजा एक हिरणी की माया में फस कर अपना अगला जन्म ही बिगाड़ लिए और स्वयं पशु उन्हीं को प्राप्त हो गए , यह उद्गार बाराद्वार नगर में आयोजित विशाल 1008 श्रीमद् भागवत कथा महोत्सव के व्यासपीठ से गोविंद बाबा महाराज ने कहा कथा व्यास ने बताया की अंत समय में जिसकी जैसी करनी होती है वैसे ही उसकी गति होती है ।

Shrimad Bhagwat Katha इसलिए मनुष्य अपने ज्ञान विवेक धर्म आदि का आश्रय लेकर अंत समय में भगवान नाम का ही आश्रय ले ,, जिससे मोक्ष प्राप्त हो और आने वाला जन्म सुधर जाए , गोविंद जी महाराज ने बताया गया कि जीवन में आशा ही दुख का कारण बन जाता है , दक्ष पुत्री सती के मन में बड़ी आशा थी कि मेरे पिता के घर में आयोजित विशाल यज्ञ में जाने से मेरा बड़ा सम्मान होगा , मुझे सभी बहनों का और परिवार का प्यार मिलेगा किंतु दक्ष और भगवान महादेव के आपस में प्रतिकार होने के कारण सती को निराशा ही हुई । और अपने पति का अपमान देखकर सती अग्नि कुंड में कूद गई , उसे अपना प्राण त्यागना पड़ा ।

Shrimad Bhagwat Katha जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों ही परिस्थिति आती रहती है इसलिए मन भगवान पर लगा कर के ही अपने सारे कार्य और दायित्व निभाना चाहिए । भगवान को  तथा परिधि में संसार को रखकर कार्य करते रहने से प्रत्येक कर्म पूजा का ही स्वरूप बन जाता है कथा में हजारों श्रोताओं ने भागवत कथा अमृत का लाभ एवं अक्षय पुण्य प्राप्त किया !

Shrimad Bhagwat Katha इस अवसर पर श बांके बिहारी पवन शर्मा सतीश जिंदल विष्णु जिंदल ओमप्रकाश केडिया कैलाश जैजैपुर वाले ओम प्रकाश अग्रवाल नरेश जिंदल पुरुषोत्तम गोविंद राम सिंघानिया महेश कलानोरिया महिला मंडल के पदाधिकारी एवं सदस्यगण राम कृष्ण गौशाला समिति के पदाधिकारी एवं सदस्यगण ने कथा श्रवण कर पुण्य का लाभ प्राप्त कर महाभोग भंडारे का महाप्रसाद ग्रहण किया

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