Shaktipeeth Barahi Devi – 51 शक्तिपीठों में से एक है बराही देवी मंदिर : यहां नेत्र पीड़ित के कष्ट हरतीं हैं मां भवानी

Shaktipeeth Barahi Devi

Shaktipeeth Barahi Devi यहां नेत्र पीड़ित के कष्ट हरतीं हैं मां भवानी

 

Shaktipeeth Barahi Devi गोण्डा !  उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में शक्तिपीठ बाराही देवी के मंदिर में नवरात्र में आस्था का समंदर हिलोंरे मार रहा है।
जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर तरबगंज तहसील के सूकर क्षेत्र के मुकंदपुर में स्थित मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां न सिर्फ भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं बल्कि जटिल नेत्र रोग से पीड़ित मरीज भी स्वस्थ होकर वापस जाते हैं और यही कारण है कि भक्त मां को प्रसन्न करने के लिये प्रतीकात्मक नेत्र अर्पित करते हैं।


शक्तिपीठ बाराही देवी के मंदिर में चैत्र नवरात्र के प्रारंभ से ही माता के दर्शन के लिये देश के कोने कोने से आये लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। महंत राघव दास के अनुसार , बाराही मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। नवरात्र के दिनों में नेत्रदोष पीड़ित व्यक्तियों द्वारा यहां कल्पवास करने व मन्दिर का नीर एवं करीब 1800 सौ वर्ष प्राचीन विशाल वटवृक्ष से निकलने वाले दुग्ध को आंखों पर लगाने से ज्योति पुनः वापस आ जाती है। नेत्र रोग से पीड़ित माँ को प्रसन्न करने के लिये माँ के चरणों में प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाते है।


Shaktipeeth Barahi Devi मंदिर मे दर्शन के लिए आस-पास के जिलों के अलावा दूसरे प्रदेश व नेपाल से भी आये भक्त माँ के दर्शन के लिये लंबी कतारों में लगे है। मां बाराही मंदिर को उत्तरी भवानी के नाम से भी जाना जाता है। बाराह पुराण के अनुसार, जब हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का पूरे पृथ्‍वी पर आधिपत्‍य हो गया था। देवताओं, साधू-सन्‍तों और ऋषि मुनियों पर अत्‍याचार बढ़ गया तो हिरण्याक्ष का वध करने के लिये भगवान विष्णु को वाराह का रूप धारण करना पड़ा था।


भगवान विष्णु ने जब पाताल लोक पंहुचने के लिये शक्ति की आराधना की तो मुकुन्दपुर में सुखनोई नदी के तट पर मां भगवती बाराही देवी के रूप में प्रकट हुईं। इस मन्दिर में स्थित सुरंग से भगवान वाराह ने पाताल लोक जाकर हिरण्याक्ष का वध किया था। तभी से यह मन्दिर अस्तित्व में आया। इसे कुछ लोग बाराही देवी और कुछ लोग उत्‍तरी भवानी के नाम से जानने लगे। मंदिर के चारों तरफ फैली वट वृक्ष की शाखायें, इस मन्दिर के अति प्राचीन होने का प्रमाण है।


मंदिर प्रांगण मे नवदुर्गाओ , सतियो व अन्य देवी देवताओ के मंदिरो की पूजा अर्चना व हवन में महिला व पुरूष श्रद्धालु लीन नजर आ रहें है। दूर दराज से आये देवीभक्त माँ को पुष्प , लौंग , चुनरी , नारियल ,आम पल्लौ , मेवा , मिष्ठान , कमल व अन्य श्रृंगार की सामग्रियों को चढ़ाकर माँ की आराधना में जुटे है। इसके अलावा वैदिक रीति से मुंडन संस्कार , यज्ञोपवीत , नामकरण संस्कार , सगाई की रस्म , शगुन , परिणय संस्कार व अन्य रस्में अदा कर रहे है।

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