Rupee against dollar : डालर के मुकाबले रुपया

Rupee against dollar :

Rupee against dollar : डालर के मुकाबले रुपया

Rupee against dollar :
Rupee against dollar : डालर के मुकाबले रुपया

Rupee against dollar : लम्बे समय से स्थिर रुपये में पिछले दिनों अचानक गिरावट आने लगी है, जिसके कारण देश में चिन्ता व्याप्त हो रही है । गौरतलब है कि रुपये और डॉलर का विनिमय दर 6 दिसंबर 2021 को 75.30 रुपये प्रति डॉलर थी, जो 25 अप्रैल 2022 को 76.74 रुपये और 24 मई 2022 को 77.6 रुपए प्रति डॉलर तक पहुंच गई थी ।

Rupee against dollar : देखना होगा कि कोरोना की शुरुआत (अप्रैल 2020 ) में यह विनिमय दर 76:50 रुपए प्रति डॉलर थी जो बेहतर होती हुई जनवरी 11, 2022 तक आते-आते 74.00 रुपए प्रति डॉलर के आसपास तक पहुंच गई । लेकिन हाल ही में रुपये में आई गिरावट ने वो लाभ समाप्त कर दिया है।

लेकिन अभी भी डॉलर अप्रैल 2020 के स्तर के लगभग 1.4 प्रतिशत ही ऊपर है । पिछले कुछ समय से दुनिया भर में महंगाई बढ़ती जा रही है । अप्रैल माह में अमरीका, इंगलैंड और यूरोपीय संघ में महंगाई की दर क्रमश: 8.3 प्रतिशत, 7.0 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत रही।

Rupee against dollar :
Rupee against dollar : डालर के मुकाबले रुपया

Rupee against dollar : इसी क्रम में भारत में भी अप्रैल माह में खुदरा महंगाई की दर 7.79 प्रतिशत रिकार्ड की गई, जो पिछले 4-5 वर्षों की तुलना में काफी अधिक मानी जा रही है। रुपए में आ रही गिरावट देश में महंगाई की समस्या को और अधिक बढ़ा सकती है।

भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा की एक रपट के अनुसार रुपये में एक प्रतिशत की गिरावट हमारी महंगाई को 0.15 प्रतिशत बढ़ा सकती है, जिसका असर अगले 5 माह में दिख सकता है। समझा जा सकता है कि भारत बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम उत्पादों का आयात करता है, और पिछले काफी समय से कच्चे तेल की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतें काफी बढ़ चुकी हैं।

Rupee against dollar : ऐसे में रुपये की गिरावट, भारतीय उपभोक्ताओं के लिये पैट्रोलियम कीमतों को और अधिक बढ़ा सकती है, जिसके कारण कच्चे माल, औद्योगिक ईंधन, परिवहन लागत आदि भी बढ़ सकती है। रिजर्व बैंक इस बात को समझता है कि रुपये की कीमत में गिरावट भारी महंगाई का सबब बन सकती है ।

इतिहास साक्षी है कि तेज महंगाई ग्रोथ पर भी प्रतिकूल असर इलती है। ऐसा इसलिए है कि एक ओर महंगाई को थामने और दूसरी ओर वास्तविक व्याज दर को भी धनात्मक रखने के लिए. रिजर्व बैंक को रेपो रेट को बढ़ाना पड़ता है।

Congress ready in the name of Nitish : विपक्ष का चेहरा बनाने नीतीश के नाम पर कांग्रेस तैयार

Rupee against dollar : ब्याज दरों में वृद्धि ग्रोथ की राह को और मुश्किल बना देती है, क्योंकि उससे उपभोक्ता मांग, व्यावसायिक और इन्फ्रास्ट्रक्टर निवेश सभी पर प्रतिकूल असर डालता है। इसीलिए रिजर्व बैंक को सरकार द्वारा निर्देश है कि वे मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत (जमा घटा 2 प्रतिशत) के स्तर तक सीमित रखे। यानि मुद्रास्फीति की दर को किसी भी हालत में 6 प्रतिशत से अधिक नहीं बढऩे देना है । पिछले लम्बे समय से भारत में रुपये की अन्य करेंसियों के साथ विनिमय दर, बाजार द्वारा निर्धारित होती रही है। सैद्धांतिक तौर पर सोचा जाये तो डॉलर और अन्य महत्वपूर्ण करेंसियों की मांग और आपूर्ति के आधार पर रुपये की विनिमय दर तय होती है । पिछले कुछ समय से हमारे आयात अभूतपूर्व तौर पर बढ़े हैं ।

Rupee against dollar : हालांकि इस बीच हमारे निर्यात भी रिकार्ड स्तर तक पहुंच चुके हैं, लेकिन आयातों में तेजी से वृद्धि होने के कारण हमारा व्यापार घाटा काफी बढ़ चुका है । अपने देश में पोर्टफोलियो निवेश भी बड़ी मात्रा में आता रहा है । लेकिन पिछले काफी समय से पोर्टफोलियो निवेशक देश से भारी मात्रा में निवेश वापस ले गये हैं । इसका असर हमारे शेयर बाजारों पर तो पड़ा है, डॉलरों की आपूर्ति भी उससे प्रभावित हुई है ।

https://jandhara24.com/news/110139/urfi-javeds-pregnancy-urfi-must-know-why-urfi-is-vomiting/
Rupee against dollar :रुपये के मूल्य के बारे में सदैव दो प्रकार की राय सामने आती है। एक प्रकार के विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये में अवमूल्यन अवश्यंभावी है और इसलिये रिजर्व बैंक को रुपये के मूल्य को थामने हेतु अपनी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को दाव पर लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा भण्डार घट जाएंगे और रुपये में सुधार भी नहीं होगा।

इसलिए रुपये को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिये । ऐसे विशेषज्ञों का तर्क यह है कि भारत में आयातों के बढऩे की दर निर्यातों के बढऩे की दर से हमेशा ज्यादा रहती है, इसलिए डॉलरों की अतिरिक्त मांग डॉलर की कीमत को लगातार बढ़ायेगी।

Rupee against dollar : उनका यह तर्क है कि जब-जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी, तब-तब रुपये में गिरावट अवश्यक होगी। दूसरे प्रकार के विशेषज्ञों का यह मानना है कि डॉलरों की अतिरिक्त मांग यदाकदा उत्पन्न होती है और फिर से परिस्थिति सामान्य हो जाती है। ऐसे में बाजारी शक्तियां रुपये में दीर्घकालीन गिरावट न लाने पाएं, इसलिए रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप महत्वपूर्ण है।

पूर्व में भी रिजर्व बैंक द्वारा अपने भण्डार में से डॉलरों की बिक्री से रुपये को थामने में मदद मिली है। स्थिति सामान्य होने पर रिजर्व बैंक पुन: डॉलरों की खरीद कर अपने विदेशी मुद्रा भण्डारों की भरपाई कर लेता है। इसलिए रुपये के स्थिरीकरण के प्रयास से विदेशी मुद्रा भण्डारों का दीर्घकाल में कोई नुकसान नहीं होता ।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU