Rescue Of Children रायपुर : मोबाइल के नशे से बच्चों का बचाव, चुनौतियां और समाधान

Rescue Of Children रायपुर : मोबाइल के नशे से बच्चों का बचाव, चुनौतियां और समाधान
  1. Rescue Of Children रायपुर : मोबाइल के नशे से बच्चों का बचाव, चुनौतियां और समाधान

  2. Rescue Of Children ,बच्चों में नशे की बढ़ती आदतें न सिर्फ उनसे उनका बचपन छीन रही हैं

रायपुर, 11 जुलाई 2022

Rescue Of Children बच्चों में नशे की बढ़ती आदतें न सिर्फ उनसे उनका बचपन छीन रही हैं, बल्कि उनका जीवन भी छीन रही हैं।

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Rescue Of Children,नयी जीवन शैली में बहुत कुछ ऐसी चीजें शामिल होती जा रही हैं, जो सुविधाएं देने के साथ-साथ नये खतरे भी निर्मित कर रही हैं। इन्हीं में से एक मोबाइल फोन भी है। विगत कुछ वर्षों में स्मार्ट फोन का प्रयोग काफी बढ़ा है।

Rescue Of Children,कोरोना महामारी के दौरान ऑनलाईन शिक्षा व्यवस्था के कारण मोबाइल के उपयोग से बच्चे और अधिक परिचित हो गये हैं। बच्चे पिछले कुछ समय में जाने अन्जाने में ही मोबाइल के नशे के शिकार हो गये हैं।

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कुछ माता-पिता अपने बच्चों को खाना खिलाते समय बहलाने के लिए या अन्य कार्यों में व्यस्त होने पर बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा देते हैं।

जहाँ एक ओर मोबाइल के सदुपयोग से होने वाले कतिपय लाभ से इंकार नहीं किया जा सकता, वहीं दूसरी ओर सीमा से अधिक उपयोग के कारण मोबाइल की लत लग जाने से बच्चों में कुछ गंभीर परिणाम दिखाई दे रहे हैं।

Rescue Of Children रायपुर : मोबाइल के नशे से बच्चों का बचाव, चुनौतियां और समाधान
Rescue Of Children रायपुर : मोबाइल के नशे से बच्चों का बचाव, चुनौतियां और समाधान


छत्तीसगढ़ सरकार ने बच्चों को नशे की आदत से बचाव को गंभीरता से लिया है।

छत्तीसगढ़ राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा लगातार पाम्पलेट, कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा रहा है, वहीं बच्चों को नशे की लत से दूर करने प्रभावी उपायों के लिए विचार-मंथन किया जा रहा है।

इसी कड़ी में बीते दिनों मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में ‘बच्चों का नशे की आदत से बचाव चुनौतियां व समाधान’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।

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मुख्यमंत्री ने यहां छत्तीसगढ़ में बच्चों के स्वस्थ्य और समुचित विकास के लिए प्रतिबद्धता दिखाई और नशे के खिलाफ अभियान को विस्तार देने की बात कही।

मुख्यमंत्री नशे के प्रति जागरूकता बनाने ब्रोशर और ‘लइका मन के गोठ’ पुस्तिका भी लोगों के समक्ष लेकर आए।

मोबाइल के लगातार प्रयोग व नशे के दुष्परिणाम

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार मोबाइल के विद्युत चुम्बकीय विकिरण के कारण मस्तिष्क की गतिविधियों में सुस्ती, निष्क्रियता आती है और बच्चों का व्यवहार विचलित दिखाई देता है।

बच्चों की प्राकृतिक दिनचर्या में बदलाव आ जाता है। जैसे कि बच्चे सुबह उठकर काफी समय मोबाइल देखने में व्यतीत कर देते हैं, जबकि उस समय उनसे नित्यकर्म जैसे मंजन, स्नान आदि करने की अपेक्षा होती है।

बच्चों की शारीरिक रूप से कार्य करने की क्षमता प्रभावित होती है क्योंकि वे मोबाइल पकड़कर एक स्थान पर बैठे रहते हैं। देर रात तक मोबाइल देखने के कारण नींद पूरी नहीं होती है और उनमें चिड़चिड़ापन आता है व अशांत स्वभाव बढ़ता है।

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मोबाइल के ज्यादा उपयोग से बच्चे अवास्तविक दुनिया अर्थात् वर्चुअल दुनिया में रहने लगते हैं।

मोबाइल के माध्यम से अनावश्यक चैटिंग करने, व्हाट्सएप्प की टिप्पणियाँ पढ़ने आदि से समय तो बर्बाद होता ही है साथ ही बच्चे भ्रामक जानकारी से भी अपने मस्तिष्क को दूषित कर लेते हैं।

मोबाइल से बच्चों के हाथ और मस्तिष्क के बीच का संबंध प्रभावित होता है। इससे कई बच्चों में पेन या पेन्सिल से लेखन की क्षमता की कमी भी देखी गई है।

मोबाइल देखते हुए एक ही स्थान पर बैठे रहने से शारीरिक प्रगति बाधित होती है। इससे बच्चों में मोटापे की बढ़ती समस्या सामने आ सकती है।

मोबाइल में व्यस्त रहने से बच्चों की सामाजिक जीवन शैली प्रभावित होती है और वे आस पड़ोस में घूमना, समूह गतिविधियाँ या सामूहिक रूप से त्यौहार मनाने को नापसंद करने लगते हैं।

यहाँ तक कि घर से बाहर जाना भी उन्हें पसंद नहीं आता है। बच्चों में पुस्तकों के अध्ययन के प्रति रुचि कम हो रही है।

मोबाइल की लत से बचाने के उपाय

यह ध्यान रखना जरूरी है कि मोबाइल की लत से बच्चों को बचाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी और भूमिका माता-पिता की तो है ही साथ ही परिवार के सभी सदस्यों की भी है।

बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार खिलौना दें और मोबाइल के प्रयोग को बढ़ावा न दें।  बच्चों के साथ बातचीत करने में समय अवश्य दें जब भी अवसर मिले टेलीविजन बंद करें और मोबाइल अलग रखवाकर आमने-सामने हल्का फुल्का हास्यभरा वार्तालाप करें।

बच्चों को घर में अधिक से अधिक शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें, जैसे त्यौहारों पर घर की सजावट, अवकाश के दिन साफ-सफाई, दैनिक कार्यों में शामिल करना आदि।

बच्चों के लिए समय सारणी बनायें और मोबाइल का उपयोग धीरे-धीरे कम करवाएँ। सामने से वार्तालाप करते समय मोबाइल को बंद करवाने की आदत डालें।

दिन में कम से कम एक घण्टा अन्य बच्चों के साथ बाहरी खेलकूद में देने के लिए नियत करें और बच्चों को उस समय शारीरिक एवं बाहरी खेलकूद में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें

, जिससे उनका मस्तिष्क उतने समय के लिए मोबाइल से दूर होगा और वे बाहरी वातावरण के आनंद को महसूस कर सकेंगे।

घर के भीतर शतरंज, साँप सीढ़ी, लूडो जैसे खेलों को खेलने के लिए प्रेरित करें। उनके साथ माता-पिता भी खेलें।

इस प्रकार उन्हें मनोरंजन का एक और विकल्प मिलेगा।  यदि बच्चे चित्रकारी, संगीत, वाद्ययंत्र बजाने, नृत्य करने, अभिनय में रुचि लेते हैं तो इसे प्रोत्साहित करें। इसके लिए उन्हें साधन उपलब्ध करायें।

उनके द्वारा तैयार की गई रचनाओं की सराहना करके प्रोत्साहन दें।

बच्चों को प्रतिदिन हल्का व्यायाम करने को प्रोत्साहित करें। माता-पिता स्वयं भी बच्चों के समक्ष मोबाइल का अत्याधिक उपयोग न करें। याद रखें कि बच्चों के लिए उनके माता-पिता रोलमॉडल याने आदर्श हैं।

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