RBI’s warning : बड़े पैमाने पर सरकारी बैंकों का निजीकरण खतरनाक…आरबीआई की सरकार को चेतावनी
RBI’s warning : सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बड़े पैमाने पर निजीकरण से फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। आरबीआई ने सरकार को इस मामले में सावधानी से आगे बढ़ने की सलाह दी है।
केंद्रीय बैंक ने एक लेख में कहा कि निजी क्षेत्र के बैंक (पीवीबी) मुनाफे को अधिकतम करने में अधिक कुशल हैं। दूसरी ओर, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में बेहतर प्रदर्शन किया है। लेख के अनुसार, निजीकरण कोई नई अवधारणा नहीं है।
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इसके फायदे और नुकसान सभी जानते हैं। निजीकरण परंपरागत रूप से सभी समस्याओं का प्रमुख समाधान रहा है, जबकि आर्थिक सोच ने पाया है कि इसे आगे ले जाने के लिए एक सतर्क दृष्टिकोण आवश्यक है।
सरकार ने 2020 में 10 राष्ट्रीयकृत बैंकों को चार प्रमुख बैंकों में विलय कर दिया था।
इसके साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 2017 में 27 से घटकर 12 हो गई है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और आरबीआई का नहीं।
हस्तक्षेप ने घटाई विदेशी मुद्रा भंडार में कमी की दर
आरबीआई के हस्तक्षेप ने मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में कमी की दर को कम किया है। आरबीआई के वित्तीय बाजार संचालन विभाग के सौरभ नाथ, विक्रम राजपूत और गोपालकृष्णन एस द्वारा किए गए
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अध्ययन में कहा गया है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप मुद्रा भंडार में 70 अरब डॉलर की गिरावट आई है। कोविड-19 के दौरान इसमें महज 17 अरब डॉलर की कमी आई।
वहीं, रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते इस साल 29 जुलाई तक 56 अरब डॉलर की कमी आई है।
महंगाई पर नियंत्रण के लिए सही कदम उठाने होंगे
आरबीआई ने कहा कि आने वाले समय में उच्च मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने के लिए उपयुक्त नीतिगत कदमों की जरूरत है। डिप्टी गवर्नर माइकल देवव्रत पात्रा ने लेख में कहा,
“सबसे सुखद विकास जुलाई में मुद्रास्फीति दर में जून की तुलना में 0.30% की नरमी है।” 2022-23 की जून तिमाही में औसत में 0.60% की कमी आई है।
लेख में कहा गया है कि अगर अनुमान सही रहे तो अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में महंगाई दर 7 फीसदी से घटकर 5 फीसदी पर आ जाएगी.
हालांकि, आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम बना हुआ है। खाद्य पदार्थ सस्ते होने से खुदरा महंगाई जुलाई में घटकर 6.71 फीसदी पर आ गई।