Raipur latest news : मैंने एक यथार्थ को कंधा दिया इस देश में ..लीलाधर मंडलोई

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Raipur latest news श्रीकांत वर्मा पीठ का आयोजन स्मरण श्रीकांत वर्मा 2023 के दूसरे दिन उपन्यास समय और कविता समय के सत्र हुए।

हिंदी में हिंदू होना मुश्किल है उर्दू में मुश्किल है मुसलमां होना गीत चतुर्वेदी

बुरके में टके हुए हैं दमकते चांद सितारे बुरके में अंधेरा है लीलाधर मंडलोई

Raipur latest news रायपुर ! श्रीकांत वर्मा पीठ बिलासपुर द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम स्मरण श्रीकांत वर्मा 2023 के अंतिम दिन का पहला सत्र का शुभारंभ उपन्यास के पाठ से हुआ। इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक गीत चतुर्वेदी ने अपने नए उपन्यास सिमसिम के अंश के पाठ से किया है। सिमसिम  ऐसा उपन्यास है जिसमें भारत विभाजन के समय सिंध प्रांत की त्रासदी को दिखाया गया है ।बसरमल एक सिंधी किशोर बालक है जो अपने लोगों, अपनी प्रेमिका, अपनी जमीन से बिछड़ चुका है।रिफ्यूजी कैम्प में उससे खुद को साबित करने के लिए लज्जित किया जाता है।उनके उपन्यास के अंश में उन्होंने रिफ्यूजियों को देखने के लोगों के तात्कालिक दृष्टिकोण को उद्घाटित किया।

सिंध बुजुर्ग और उसके ज़ेहन में जवान सिंध और उसकी त्रासदी को कहती इस उपन्यास ने लेखन के नए आयाम को छुआ है। सुधी श्रोताओं को ये खूब पसंद आया।

साहित्यकारों ने प्रस्तुत किए रचनाएं

अनिल यादव ने अपने उपन्यास गौसेवक के अंश पढ़े।कनहर नदी के जलग्रहण क्षेत्र में नक्सल मुमवमेंट,राजनीति और नक्सलवाद की सच्चाई को उद्घाटित करता है।उपन्यास में धामा चेरो नाम का एक चरित्र है जो गौसेवक का मुखौटा ओढ़कर गौतस्करी करता है,राजनीति में उसकी दख़ल है और उसमें अपना कद बढ़ाने के लिए कोई मुसलमान ढूंढ रहा है जिसके कंधे पर बंदूक रखकर गोली चलाई जा सके।

पटना से आये वरिष्ठ साहित्यकार हृषीकेश सुलभ

ने दाता पीर उपन्यास के अंश का पाठ किया जिसमें उन्होंने शमदु फकीर और रसीदन बाजी चरित्रों के माध्यम से रिश्तों के भावनात्मक ऊंचाई को रेखांकित किया।

कथाकार आनंद हरसुल ने अपने उपन्यास चिड़िया बहनों का भाई के एक मार्मिक अंश का पाठ किया जिसमें एक व्यक्ति पहाड़ पर चढ़ते चढ़ते गुम हो जाता है

गीत चतुर्वेदी ने एक कश्मीरी बच्चे के खत में एक बच्चे के निगाह से कश्मीर के त्रासदी का चित्रण है।   नीम का पौधा कविता में लघुता का महात्म्य बताया गया है। यह दुनिया अभी रहने लायक है कविता में उन्होंने संघर्ष संघर्ष के बीच जीवन के सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डाला और किसी भी स्थिति में हार ना मानने की बात कही है।

दिल्ली से आए वरिष्ठ साहित्यकार लीलाधर मंडलोई ने अपनी कविताओं से चकित किया। जिसमें प्रमुख अंश हैं
बुर्के में टके हुए हैं दमकते चांद सितारे बुर्के में अंधेरा है….

मां-बाप फलदार वृक्ष होते हैं जो गांव में रहते हैं उनके फल शहर में जाते हैं और दूर देश में निकल जाते हैं….

करण को नदी में बहते हुए रख दिए महंगे स्वर्ण आभूषण कुंती रखना भूल गई ममता।
हमने छोड़ दिए दुनिया चोरों के भरोसे यह जानते हुए चोर एक हो जाते हैं हमेशा ईमानदार एक नहीं होते।

तू किए दुनिया है तू जिंदगी तू प्यार कर लो

कविता में एक आंख हंसती हो दूसरी हो रोती हो कोई ऐसा तो बताओ मुझे यारों….

 

कोलकाता से आए युवा कवि वसु गंधर्व ने नींद,बोलो ज़ख़्म ,आने वाले दुःख, आलाप आदि कविताएं पढी।जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया।
उनकी कविताओं के अंश

नींद में किया प्रेम
आख़िर जागने पर आस्वादन के कितने रंगों से भर सकेगा आकाश को।
…..
आने वाले दुख ऐसे आएँ
जैसे लौटते हों निर्वासित प्रेमी।

एक सिराये दीपक का प्रकाश
विदा की आँच में मंथर गति से पकते फल की तरह आकर लेते उदास देह-वर्ष
पुरानी नदियों का धूसर जल, चुम्बनों की तरह तैरना भूल चुकीं मछलियाँ
अजस्र झरने, दिशाहीन ओज, आकारहीन वासना, और खीज और कितने कितने दुःख
….

अपने जागने से कहीं अधिक कुछ घटित होता दिखता है
दूसरों की नींद में
.. .
धमतरी से आये मांझी अनंत ने कन्धा ,तुम्हारे दिन ,बांध में डूबा गांव ,स्वप्न ,मुर्गा नगदी की तरह,नाम, माँ,बरसों से ,अलगनी पर आदि कविताओं में मनुष्य की भावना को उद्घाटित किया श्रोताओं ने उन्हें हाथों हाथ लियाखूब तालियां बटोरीं।

उनकी कविताओं के कुछ अंश

इस तरह लोहे से निर्मित
यह टांगिया
सिर्फ टगीया नहीं हैं
अपनी चमकदार धार के साथ
यह कांधे पर
पुरखों का बोझ है
जिम्मेदारी की तरह।
……..
जो नहीं जान पाए इसका मर्म
छूट गए गहन- गिरी- कन्दराओ में
बिछुड़ गए घने जंगलों में
सभ्यता से कोसों दूर
घुट -घुट कर जीने
दर-दर भटकने के लिए

रायपुर से आये  कवि त्रिलोक महावर ने बस्तर अंचल के दर्द को तीरथगढ़ कविता में व्यक्त किया। समान समय के माहौल पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने पंक्तियां पढीं डर तो लगता है रास्ते में कुछ भी हो सकता है। प्रकृति और पर्यावरण पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने नदी सपने में आती है, कविता पढ़ी पिता शीर्षक से उनकी कविता मैं यह बात उल्लेखनीय थी उनका होना उनके होने से बहुत ज्यादा होना था उनकी कविता शब्दों से परे की सभी ने प्रशंसा की चवन्नी बंद होने पर उन्होंने दुख व्यक्त किया और चवन्नी की महिमा को अर्थशास्त्र की धुरी कहा।

देहरादून से आये देश के जाने माने कवि राजेश सकलानी ने  जब पीले ने कहा,हमसे उम्मीद करो तेज रंग का फूल खिला ,भरोसे की कुछ बातें,डिलीवरी बॉय,ज़ुल्म देखकर शीर्षक की कविताएं पढ़ीं।जिसे खूब वाहवाही मिली।

बस्तर के कवि विजय सिंह ने  रग-रगा रंग की तरह की कविता में बस्तर की मिट्टी को रेखंकित करते हुए पंक्ति पढ़ी
मेरे बचपन में जंगल है, और कंधे में जंगल की हंसी उनके घर भात कविता में कवि बस्तर के प्रकृति जीवन और वनोपज को लेकर महिलाएं किस तरह से जीवन भरण पोषण करती है उसको  दर्शाया है।

जोशना बैनर्जी आडवाणी, आगरा ने दोस्त का प्रेमी,स्नानघर ,आदि कविताओं से मनुष्य के तात्कालिक चरित्र दर्शाने का प्रयास किया।उनकी कविताओ को काफी सराहना मिली।

शैलजा पाठक बैंगलोर ने लडकियां शीर्षक की कविता दाहिने,सोई हो क्या,औरतें कविताओं से मंत्र मुग्ध किया।औरतें कविता से दिवंगत औरतों की स्थिति को सुंदर ढंग से कविता में प्रस्तुत किया।

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