Prime Minister Narendra Modi कद के अनुरूप कार्य

Prime Minister Narendra Modi

Prime Minister Narendra Modi अवधेश कुमार

Prime Minister Narendra Modi प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां हीराबेन सौ वर्ष की भरपूर जिंदगी जी कर विदा हुई हैं। इस कारण उनका जाना शोक में विह्वल होने का कारण नहीं हो सकता।
बावजूद प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह कितनी बड़ी क्षति है। इसका अनुमान वही लगा सकते हैं, जिनका अपना निजी परिवार नहीं हो। ऐसा व्यक्तिचाहे जितना बड़ा हो मां के चले जाने के बाद उसके सामने स्पष्ट हो जाता है कि अब उसका अपना कोई नहीं।

 गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक मोदी के मां के साथ समय बिताने पर दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि दोनों के बीच कितना गहरा लगाव था। भले मोदी जी के आंखों से आंसू टपकते नहीं दिखे हो पर अंतर्मन की वेदना कोई महसूस कर सकता है। हालांकि अपने चरित्र और संगठन के संस्कार के अनुरूप उन्होंने व्यवहार में इस वेदना को हावी नहीं होने दिया।

बतौर प्रधानमंत्री अपने सारे कार्यक्रम पूर्ववत रखे। वह चाहते तो आसानी से कार्यक्रमों को टाल सकते थे। इस पर कोई टीका-टिप्पणी भी नहीं होती और अस्वाभाविक भी नहीं माना जाता, लेकिन नेता की पहचान ऐसे ही समय होती है। एक ओर मां की चिता को अग्नि देना और दूसरी ओर वर्चुअल तरीके से रेल को हरी झंडी दिखाने के साथ परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास। इस भूमिका ने प्रधानमंत्री के कद को और ज्यादा उठाया है।

Prime Minister Narendra Modi वास्तव में मां हीराबेन के अस्पताल में भर्ती होने, मृत्यु, अंतिम संस्कार, मुखाग्नि से लेकर सरकारी कार्यक्रमों में भागीदारी में प्रधानमंत्री मोदी ने असीम संतुलन का परिचय दिया है। एक ओर पुत्र के रूप में मातृ ऋण से मुक्ति की पूरी अंतिम क्रिया और दूसरी ओर देश के प्रति दायित्व का संपूर्ण निर्वहन। जब हीराबेन मोदी की मृत्यु की खबर आई तो हमारे आपके मन में धारणा यही थी कि बड़े तामझाम और भारी भीड़ में शव यात्रा निकलेगी, देश के नेताओं की लंबी कतार वहां श्रद्धांजलि के लिए होगी आदि आदि। किंतु पहले मोदी जी ने सब को संदेश दिया कि अपने अपने यहां रहे और सारे तय कार्यक्रमों को अंजाम दें। उन्हें इसका आभास था कि इतना संदेश देने के बावजूद अगर अंतिम क्रिया जल्दी न की गई तब भी काफी बड़ी संख्या में लोग आ जाएंगे। 3:30 बजे भोर में मृत्यु की सूचना मिली और प्रधानमंत्री 7:30 में पहुंचे तथा परिवार एवं रिश्तेदारों की सीमित मंडली में अंतिम संस्कार किया। उच्च पदों पर कायम दूसरे नेताओं और शीर्ष व्यक्तित्व के लिए भी यह उदाहरण है।

वर्तमान राजनीति में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों में ऐसे उदाहरण कम ही होंगे जब अपने माता-पिता या निकटतम संबंधी की अंतिम क्रिया को इतने सरल साधारण ढंग से पूरा किया गया हो। ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसका अपनी मां के साथ गहरा लगाव न हो। इस मायने में हम कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का यदि अपनी मां के साथ इतना लगाव था तो इसमें विशेष कुछ भी नहीं। नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे। जाहिर है, उन्होंने परिवार का परित्याग किया और अघोषित रूप से प्रचारक संन्यस्त जीवन जीता है। वह भगवाधारी संन्यासी नहीं होता, लेकिन भाव यही रहता है कि संपूर्ण जीवन देश के लिए है जिसमें परिवार के उतना ही स्थान है जितना अन्य परिवारों के लिए। इस प्रकार के जीवन को निकट से देखने वाले लोग समझ सकते हैं की मोदी जी ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री रहते हुए मां के साथ संबंधों का जिस तरह निर्वहन किया वह सामान्य बात नहीं है।

प्रधानमंत्री को मां के बीमार पडऩे की जैसे सूचना मिली वह स्वयं भागे-भागे अस्पताल पहुंचे। वे नहीं भी जा सकते थे और दिल्ली से ही सारी जानकारी लेकर व्यवस्था कर सकते थे। आजकल ऐसा ही आमतौर पर किया जाता है। किंतु वहां जाकर उन्होंने जो संदेश दिया उसका लाखों लोगों के मन पर लंबे समय तक असर रहेगा और वह भी उन परिस्थितियों में ऐसा ही करेंगे। देश और समाज का काम करने वाले लोग भी ऐसा ही मानते हैं कि उनकी कोई दूसरी जिम्मेवारी नहीं लिस्ट ऑफ मोदी ने अपने व्यवहार से इस सोच को बदलने में भूमिका निभाई है। कहा गया है ‘नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गति:। नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा।।’ अर्थात मां के जैसा ना कोई छाया दे सकता है, न ही कोई आश्रय ही दे सकता है और मां के समान न ही कोई हमें सुरक्षा दे सकता है। मां इस पूरे ब्रह्मांड में जीवनदायिनी है और उसके जैसा कोई दूसरा नहीं है।’

Prime Minister Narendra Modi मोदी ने बिना कुछ बोले देश में मां के इस सम्मान को नये सिरे से प्रतिस्थापित करने कोशिश की। जब मोदी ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का आह्वान किया और बेटियों के साथ तस्वीरें शेयर करने की अपील की तब भी बड़ी आलोचना हुई। किंतु समाज में बेटियों के महत्त्व को नये सिरे से स्वीकारने में उस अभियान की बड़ी भूमिका रही है। कहा गया है कि अगर स्त्री न हो तो सृष्टि की रचना ही संभव नहीं होती। ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी सृष्टि की रचना नहीं कर सकते थे। किंतु यह कहावत पुस्तकों में सिमटी और हमारे समाज में स्त्रियां महत्त्वहीन होतीं गई। हमने देखा है कि माता-पिता को महत्त्व न दिए जाने के कारण भारत की परिवार परंपरा ध्वस्त हुई और इसका भयानक असर हुआ है।

Prime Minister Narendra Modi केवल कहने भर से कि संयुक्त परिवार की ओर लौटें यह संभव नहीं हो सकता। मां का अगर घर में सम्मान है तो नई पीढ़ी उसे देखकर अपने घर के बड़े बुजुगरे, मां-बाप, दादा-दादी सबका सम्मान करने लगती है। कारण, उन्होंने यही देखा। यह भाव धीरे-धीरे परिवारों से खत्म हो रहा था, इसलिए आने वाली पीढ़ी का भी अपने माता-पिता, दादा-दादी के साथ जुड़ाव नहीं होता था।

आठ वर्षो में नरेन्द्र मोदी ने मां के साथ व्यवहार की जो तस्वीरें हमारे सामने रखी उन्होंने सामूहिक रूप से भारत का मानस बदला है। लाखों की संख्या में नई पीढ़ी को घर के बड़े माता-पिता ही नहीं घर के बड़े बुजुगरे का सम्मान करने, उनके साथ भावनात्मक रूप से जुडऩे को प्रेरित किया है। जब मोदी मां का पैर धो कर उससे चरणामृत की तरह आंखों में लगा रहे थे तो क्या विरोधियों की तरह आम लोगों ने उसे नाटक माना? सच तो यह है कि इसे देखकर लाखों लोगों की हिचक दूर हुई। उन्हें लगा कि प्रधानमंत्री जो कर रहे हैं उसे हमें भी करना चाहिए। हजारों शब्दो से बड़ा एक आचरण होता है। मां के संदर्भ में मोदी ने यही उदाहरण प्रस्तुत किया।

 

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