Premchand’s stories : उपन्यास का आधार सामान्य जनजीवन है प्रेमचंद की कहानियां

Premchand’s stories : उपन्यास का आधार सामान्य जनजीवन है प्रेमचंद की कहानियां

Premchand’s stories : मनेन्द्रगढ़/ प्रेमचंद की कहानियां, उपन्यास का आधार सामान्य जनजीवन है इसलिए ये हमेशा समसामयिक हैं उनका असली नाम धनपत राय था लेकिन सरकारी नौकरी के कारण उन्होंने छद्म नाम प्रेमचंद के नाम से कहानियों का लेखन किया !

Premchand’s stories : कोरिया साहित्य व कला मंच द्वारा आयोजित प्रेमचंद जयंती के अवसर पर प्रेमचंद के जीवन पर प्रकाश डालते हुए सुषमा श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद ने हंस पत्रिका का प्रकाशन, संपादन किया जिसके लिए सरस्वती प्रेस खरीदा मगर घाटे के कारण बंद करना पड़ा बाद में राजेंद्र यादव ने इस पत्रिका का संपादन किया था !

Premchand’s stories : प्रेमचंद ने फिल्मों की पटकथा भी लिखी लेखन के अंतिम चरण में महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध,साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी,गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास और मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास था.

Premchand’s stories : इस अवसर पर संस्था की वरिष्ठ सदस्य और कार्यक्रमों के संचालन में सिद्धहस्त वीरांगना श्रीवास्तव ने उनकी प्रसिद्ध कहानी “बड़े घर की बेटी” का वाचन किया और बताया कि सम्मलित परिवार में किस तरह छोटी छोटी बातें बड़ा रूप ले लेती हैं और घर की बहुएँ कैसे परिवार की एकता बनाए रखने के लिए छोटे, बड़े त्याग करती हैं ताकि परिवार बिखरे न,वीरांगना ने वर्तमान स्थिति में कहानी का महत्व बताते हुए कहा कि आज जब एकल परिवार बढ़ रहे हैं तब हमारे घरों में ऐसी ही परिवार जोड़ने वाली बहुओं की जरूरत है, श्रीवास्तव ने कहा कि आज बच्चों को संस्कारित करने की बहुत आवश्यकता है ताकि वे अपने बड़ो का सम्मान करें और छोटे भाई बहनों से प्रेम करें ताकि परिवार एकता के सूत्र में बंधा रहे !

Premchand’s stories : इसके बाद संस्था की अल्पना चक्रवर्ती ने “दरवाजे पर मां” कहानी का वाचन किया जिसमें छोटे बच्चे की मनःस्थिति का बहुत सुंदर चित्रण है !

इस अवसर पर संस्था की संस्थापक सदस्य और क्षेत्र की सुख्यात साहित्यकार अनामिका चक्रवर्ती ने कहा कि प्रेमचंद जी जब सात वर्ष के थे तब उनकी माता आनंदी का देहांत हो गया था और पन्द्रह वर्ष की आयु में उनका विवाह कर दिया गया और जब वे सोलह वर्ष के थे !

तब उनके पिता जो डाक मुंशी थे अजायब राय का देहांत हो गया और र घर की सारी जिम्मेदारी उन पर आ गई श्रीमती चक्रवर्ती ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद का आरंभिक जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा,सौतेली माँ का व्यवहार, बचपन में शादी,माता पिता के देहांत पर पंडितों का कर्मकाण्ड, किसानों, बाबुओं के दुखी जीवन को बहुत नजदीक से देखा इन सबका प्रभाव उनके साहित्य पर पड़ा तभी वे अपने लेखन में बहुत सच्चा,मार्मिक चित्रण कर सके इसलिए उनका साहित्य आज भी सामयिक है उन्होंने दूसरा विवाह शिवरानी देवी से किया जो बालविधवा थीं !

जिन्होंने “प्रेमचंद घर में” नामक पुस्तक लिखी उनकी तीन संतानों में श्रीपत राय,अमृत राय और कमलादेवी श्रीवास्तव थीं पहले वे शिक्षक के पद पर नियुक्त हुए फिर आगे पढ़ाई करने के बाद वे स्कूल इंस्पेक्टर बने और 1921 में महात्मा गांधी के आह्वान पर सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और लेखन को ही जीविका बनाया !

इसके बाद चक्रवर्ती ने उनकी लघुकथा “देवी” का वाचन किया.चक्रवर्ती ने कहा प्रेमचंद के जीवन के संघर्षों का उनके लेखन पर पड़े प्रभाव के बारे में कहा कि उन्होंने जीवन की विसंगतियों को बहुत नजदीक से देखा था इसलिए उनका लेखन हमेशा समसामयिक है इसके बाद सुषमा श्रीवास्तव ने अपनी कविता रक्षाबंधन सुनाई….

“अबकी राखी आना तुम, तोहफे भले न लाना, अबकी राखी आना तुम”

कार्यक्रम के अंत में संस्था के संस्थापक सदस्य मृत्यन्जय सोनी ने प्रेमचंद की कहानी कफन पर अपने विचार रखते हुए कहा कि आज भी समाज में ऐसे लोग हैं जिनके लिए नशा और भूख की पूर्ति सबसे महत्वपूर्ण है इसके लिए वे किसी भी स्तर तक गिर जाते हैं !

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार गंगा प्रसाद मिश्र ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों से समाज को सीख भी मिलती है कि हमें समाज में किस तरह का व्यवहार करना चाहिए.

इस अवसर पर संस्था के साहित्यिक सदस्यों के अलावा शिक्षक अंजना त्रिपाठी,तुलिका राय, सुषमा दुबे भी उपस्थित रहीं !

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