Polluted water प्रदूषित जल : आखिर, समाधान क्या है?

Polluted water

मोहम्मद शहजाद

Polluted water प्रदूषित जल : आखिर, समाधान क्या है?

Polluted water केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय का हाल में चौंकाने वाला खुलासा किया है। इसके अनुसार देश की 80 प्रतिशत आबादी जहरीला पानी पी रही है।

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मंत्रालय के जरिए राज्य सभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 29 राज्यों के 491 जिलों के ग्राउंड वॉटर में आयरन और 25 राज्यों के 209 जिलों में आर्सेनिक की मात्रा तय मानक से अधिक है। 18 राज्यों के 162 जिलों के भूजल में यूरेनियम, 16 राज्यों के 62 जिलों में क्रोमियम और 11 राज्यों के 29 जिलों में कैडमियम की मात्रा तय मानक से ज्यादा पाई गई है।
आंकड़ों के मुताबिक, 671 इलाके फ्लोराइड, 814 इलाके आर्सेनिक, 14079 क्षेत्र आयरन, 517 क्षेत्र नाइट्रेट और 111 क्षेत्र भारी धातु से दूषित हैं। पानी में इन धातुओं के तय मानक से ज्यादा मात्रा में पाए जाने का मतलब है कि ये पानी को जहरीला कर रही हैं। इससे पेट दर्द और उल्टी दस्त से लेकर चर्म रोग, गुर्दे, लीवर, हड्डी और नर्वस सिस्टम से संबंधित बीमारियां, ट्यूमर, अल्जाइमर और कैंसर जैसी गंभीर बीमरियां तक हो सकती हैं।

चौंकिए मत! क्योंकि यह किसी और की करतूत का नतीजा नहीं है। यह सब-कुछ हमारा-आपका किया-धरा है। ‘जल ही जीवन है’-इस सुविचार को हम बचपन से सुनते आए हैं, लेकिन क्या कभी इस ओर हमने ध्यान दिया। नहीं ना! बस केवल उसका दोहन करते रहे। तभी तो नौबत आज यहां तक आ पहुंची है। जलवायु परिवर्तन के नतीजे अभी तक तो प्रदूषण इत्यादि के रूप में हमारी धरा पर ऊपर-ऊपर ही नजर आते थे लेकिन अब इनका प्रभाव धरती की गहराई में मौजूद ग्राउंड वाटर तक पहुंच गया है। गौरतलब है कि भारत की आधी से ज्यादा आबादी गांवों में रहती है।

अमूमन माना जाता है कि गांव के लोगों को सबसे शुद्ध हवा-पानी मयस्सर है। जल शक्ति मंत्रालय के ताजा आंकड़े इस धारणा को भी झुठलाते प्रतीत होते हैं। इसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों की तस्वीर तो और भी भयावह है क्योंकि इन इलाकों में पीने के पानी का मुख्य स्रेत यही भूजल है। यहां के लोग सीधे हैंडपंप, कुआं, बोरवेल और नदी-तालाब से पानी लेकर पी रहे हैं, जिन्हें शुद्ध करने का कोई माध्यम नहीं है। इसलिए ग्रामीण जहरीले पानी को गटकने के लिए विवश हैं। इसके बरक्स कुछ हद तक शहरों में भूजल सीधे पीने के लिए सप्लाई नहीं होता। उन्हें जल संयत्रों द्वारा संशोधित करके पीने का पानी घरों में सप्लाई किया जाता है। कुछ घरों में लोग निजी वॉटर प्यूरिफॉयर और आरओ लगवाकर दूषित पानी से अपनी सुरक्षा करते हैं। धनाढ्य लोगों के नसीब में बोतलबंद पानी भी है। यह खुशनसीबी चंद लोगों के भाग्य में ही है क्योंकि अधिकतर लोग आरओ और बोतलबंद पानी का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं।

शहरों में औद्योगिक गतिविधियां अधिक होने से यहां ग्राउंड वॉटर में इन जहरीली धातुओं की मात्रा ग्रामीण क्षेत्रों से भी ज्यादा पाई जाती है। ऐसे में यहां के लोग खराब क्वालिटी के प्यूरिफायर प्लांट से शोधित पानी को सस्ती दरों में लेकर पीने को मजबूर हैं। अभी तो कम से कम यह जहरीला पानी हलक तर करने के लिए मिल भी जा रहा है। भविष्य में पता नहीं यह भी नसीब होगा या नहीं क्योंकि इस साल देश-दुनिया में पड़ी भीषण गर्मी का असर पूरे देश के भूजल स्तर पर पड़ा। इस दौरान देश के ज्यादातर हिस्सों में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया। इससे साफ है कि ‘जल बचाएं, भविष्य बचाएं’ जैसी बातों को भी हमने जीवन का ध्येय वाक्य बनाने की बजाय केवल नारे के रूप में ही लिया।

अजीब बात है कि हमारी सिंधु घाटी की प्राचीन सभ्यता विशेषकर धोलावीरा से जल संरक्षण और प्रबंधन के बेहतरीन प्रमाण मिलते हैं, लेकिन हमारी आज की आधुनिक सभ्यता के लोग इससे बेपरवाह नजर आते हैं। बरसों से वष्रा जल संचयन की बातें हो रही हैं, लेकिन जमीनी सतह पर इसका कोई असर नजर नहीं आता। कहने को तो जल संसाधन मंत्रालय हमेशा से केंद्र सरकार के अधीन रहा है। उसमें नदी विकास और गंगा संरक्षण भी जुड़ गया है। अब तो विधिवत अलग जल शक्ति मंत्रालय है। राज्यों के भी इसके लिए अलग मंत्रालय और विभाग हैं। केंद्र की परियोजनाओं एवं यूनिसेफ के वॉटर, सैनिटेशन एंड हाईजीन (वॉश) कार्यक्रम के तहत हजारों एनजीओ काम कर रहे हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन-पात है।

Not right waste of time सही नहीं वक्त की बर्बादी
केंद्र सरकार ने अगस्त, 2019 में जल जीवन मिशन लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य 2024 तक देश के ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर तक पीने का पानी टोंटी के जरिए पहुंचाना है। देश के 19.15 करोड़ ग्रामीण घरों में से 9.81 करोड़ घरों तक टैप वॉटर सप्लाई हो चुकी है यानी लगभग आधे लक्ष्य की प्राप्ति हो चुकी है। इसके अतिरिक्त अक्टूबर, 2021 में अमृत 2.0 स्कीम भी शुरू की गई है। इसके जरिए अगले पांच बरसों में सभी शहरों को टैप वॉटर सप्लाई करने का लक्ष्य है। नि:संदेह ये आंकड़े सुकून देने वाले हैं, लेकिन असल सवाल अब भी वही है कि इस पानी को सप्लाई करने वाले स्रेत-भूजल-के संरक्षण के लिए क्या किया जा रहा है?

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