Politics latest update : क्या नीतिश को माना जाएगा विपक्षी चेहरा ?

Politics latest update :

बलबीर पुंज

Politics latest update : क्या नीतिश को माना जाएगा विपक्षी चेहरा ?

Politics latest update : रिपोर्ट की माने, तो इस बार नीतीश इस बात से आशंकित थे कि कहीं उनकी स्थिति महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे जैसी न हो जाए। सच तो यह है कि नीतीश की प्रधानमंत्री बनने की लालसा सर्वविदित है। इस पृष्ठभूमि में क्या विपक्षी चेहरे के रूप में अति-महत्वकांशी राहुल गांधी, लालू-तेजस्वी, ममता बनर्जी, के.चंद्रशेखर राव, अखिलेश यादव आदि नीतीश कुमार को स्वीकार करेंगे?- इसकी संभावना बहुत ही कम है।

Politics latest update : बिहार में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता नीतीश कुमार ने बुधवार को आठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से एक बार फिर संबंध तोडक़र नीतीश ने दोबारा अपनी चिर-राजनीतिक प्रतिद्वंदी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ कांग्रेस, वामपंथी दलों सहित 7 पार्टियों के सहयोग से सरकार बनाई है। यह ठीक है कि राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता। फिर भी कुछ ऐसी सीमाएं होती है, जिनका अतिक्रमण- राजनीतिक बेईमानी और अवसरवाद की पराकाष्ठा ही कहलाएगा।

https://jandhara24.com/news/102083/international-yoga-day-many-celebrities-including-home-minister-sahu-mp-saroj-pandey-did-yoga-gave-these-messages/
Politics latest update : बिहार में नीतीश कुमार का उदय राजद संस्थापक मुखिया लालू प्रसाद यादव के परिवारवाद और उनके शासन में भ्रष्टाचार-जंगलराज के विरुद्ध हुआ था। ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक जीवन के अंतिम पड़ाव में नीतीश ने इन दोनों विकृतियों के साथ समझौता कर लिया है। 26 वर्षों में यह दूसरी बार है, जब नीतीश भाजपा से अलग हुए है। समता पार्टी के दौर से ही एक सहयोगी के रूप में नीतीश ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। अब तक आठ बार वे मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं, जिसमें पांच बार (वर्ष 2000, 2005, 2010, 2017 और 2020) भाजपा, तो दो बार (2015 और 2022) राजद-आदि उनके सहयोगी रहे है।

Politics latest update : बिहार में राजद की राजनीति चार बिंदुओं से परिभाषित है। पहला- परिवारवाद। भारतीय राजनीति में नेहरू-गांधी वंश के बाद विकृत वंशवादी परंपरा का दूसरा बड़ा उदाहरण लालू प्रसाद यादव हैं। वर्ष 1997 में घोटाले के कारण जब लालू को बिहार की कुर्सी छोडऩी पड़ी, तब उन्होंने अनुभवहीन और घर-परिवार की जिम्मेदारी तक सीमित अपनी अशिक्षित पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का राजकाज सौंप दिया। यही नहीं, जब 2013 में लालू दोषी ठहराए गए, तब भी राजद में सत्ता के केंद्र को अपने परिवार के अधीन रखने हेतु उन्होंने अपने नौंवी पास छोटे पुत्र तेजस्वी को आगे कर दिया, जिससे उनके 12वीं पास पुत्र तेजप्रताप के नाराज़ होने की खबरें आए दिन मीडिया की सुर्खियां बनती रहती है।

Those who are not trapped have to be trapped : जो नहीं फंसे हैं उनको फंसाना है

Politics latest update : राजद की राजनीति घोर-जातिवाद और इस्लामी कट्टरवाद से सहानुभूति रखने पर आधारित है। लालू के नेतृत्व में कभी पार्टी ने यादव-मुस्लिम समीकरण पर काम किया, तो कभी ‘भूरा-बाल साफ़ करो’ (भूमिहार-ब्राह्मण-राजपूत-लाला) की जातिवादी राजनीति (हिंसा सहित) को पुष्ट किया। जो बिहार की राजनीति से परिचित है, उन्हें पता है कि नब्बे के दशक में इस नारे ने प्रदेश को किस तरह जातिवादी हिंसा की आग में झोंक दिया था। इसके प्रभाव से बिहार आज भी मुक्त नहीं हो पाया है। मुस्लिम तुष्टिकरण के मकडज़ाल में फंसकर राजद ने न केवल मोहम्मद शहाबुद्दीन (दिवंगत) जैसे इस्लामियों का खुला समर्थन किया, अपितु उसे कई बार विधायिका तक भी पहुंचाया।

Politics latest update : बात केवल यही तक सीमित नहीं। जब 27 फरवरी 2002 को गुजरात स्थित गोधरा रेलवे स्टेशन के निकट जिहादियों की भीड़ ने ट्रेन के एक डिब्बे में 59 कारसेवकों को जिंदा जला दिया था, जिनका ‘अपराध’ केवल यह था कि वो अयोध्या की तीर्थयात्रा से लौटते समय ‘जय श्रीराम’ का नारा लगा रहे थे- तब वर्ष 2004-05 में रेलमंत्री रहते हुए लालू ने जांच-समिति का गठन करके यह स्थापित करने का प्रयास किया था कि गोधरा कांड मजहबी घृणा से प्रेरित न होकर मात्र केवल हादसा था। बाद में समिति की इस रिपोर्ट को गुजरात उच्च-न्यायालय ने निरस्त कर दिया। इस प्रकार की जातीय-मजहबी राजनीति को लालू के उत्तराधिकारी भी आगे बढ़ा रहे है।

Politics latest update : राजद का तीसरा और चौथा राजनीतिक आधार- बेलगाम भ्रष्टाचार और अपराधियों को संरक्षण है। लालू परिवार का भ्रष्टाचार-कदाचार के मामलों से गहरा संबंध है। प्रसिद्ध चारा घोटाले में लालू अन्य दोषियों की भांति सजायाफ्ता है। आईआरसीटीसी घोटाला मामले में लालू, राबड़ी, तेजस्वी, मीसा, तेजप्रताप सहित 14 आरोपित है, जोकि फिलहाल जमानत पर बाहर है। इसके अतिरिक्त, आय से अधिक संपत्ति के साथ बेनामी लेने-देन कानून के अंतर्गत एक हजार करोड़ रुपये के जमीन सौदे और कर चोरी को लेकर लालू-राबड़ी और उनके परिवार के कई सदस्यों पर मामले दर्ज है।

Politics latest update : कानून-व्यवस्था के मामले में राजद का ट्रैक-रिकॉर्ड गर्त में रहा है। लालू-राबड़ी के शासनकाल में 1990-2005 के बीच बिहार अपहरण, हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, रंगदारी और भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गया था। अपराधियों की राजनेताओं, नौकरशाहों, भ्रष्ट पुलिसकर्मियों-अधिकारियों से सांठगांठ ऐसी थी कि प्रदेश की ‘आर्थिक-गतिविधि’ को फिरौती-अपहरण जैसे ‘उद्योगों’ से गति मिल रही थी। इस संबंध में कई किस्से-कहानियां आज भी चर्चित है। इन सब तत्वों ने मिलकर बिहार को बीमारू-पिछड़ा राज्य बना दिया, जिससे वह आज भी प्रभावित है।

Politics latest update : वास्तव में, इस स्थिति के लिए सनातन संस्कृति विरोधी वामपंथी चिंतन जिम्मेदार है, जिसने राष्ट्रीय राजनीति को छद्म-सेकुलरवाद के नाम पर सर्वाधिक विकृत और कलंकित किया है। दशकों से यह जमात लोगों को ‘सेकुलर प्रमाणपत्र’ देकर अपना भारत-हिंदू विरोधी एजेंडा आगे बढ़ा रहा है। यह भारतीय राजनीति पर कुठाराघात ही है कि इस्लाम के नाम पर भारत के रक्तरंजित विभाजन और पाकिस्तान के जन्म में जिस एकमात्र भारतीय राजनीतिक वर्ग- वामपंथियों ने महती भूमिका निभाई, वह आज भी इस्लामी आतंकियों-अलगाववादियों से न केवल सहानुभूति रखता है, साथ ही वैचारिक समानता के कारण टुकड़े-टुकड़े गैंग, शहरी नक्सलियों और माओवादियों का समर्थन भी करता है।

Politics latest update : उसी रुग्ण वामपंथ और छद्म-सेकुलरवाद प्रदत्त राजनीति से ग्रस्त होकर नीतीश कुमार ने वर्ष 2013 में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करते हुए भाजपा से गठबंधन तोडक़र लालू यादव के नेतृत्व ‘महागठबंधन’ से हाथ मिलाया था, जो राजद के शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार-अमियमितता के गंभीर आरोप लगने के बाद 2017 में टूट गया। वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता ने घोर जातिवादी-सांप्रदायिक राजनीति नकारा था। किंतु लगभग दो वर्ष बाद नीतीश बाबू ने पलटी मारते हुए भाजपा से नाता तोडक़र उसी राजनीति के पुरोधाओं से फिर गठबंधन कर लिया।

मीडिया रिपोर्ट की माने, तो इस बार नीतीश इस बात से आशंकित थे कि कहीं उनकी स्थिति महाराष्ट्र के उद्धव ठाकरे जैसी न हो जाए। सच तो यह है कि नीतीश की प्रधानमंत्री बनने की लालसा सर्वविदित है। इस पृष्ठभूमि में क्या विपक्षी चेहरे के रूप में अति-महत्वकांशी राहुल गांधी, लालू-तेजस्वी, ममता बनर्जी, के.चंद्रशेखर राव, अखिलेश यादव आदि नीतीश कुमार को स्वीकार करेंगे?- इसकी संभावना बहुत ही कम है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU