प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से – इतिहास हो जाएगा संसद भवन   

Editor-in-Chief

Parliament House will become history from the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra

– सुभाष मिश्र

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – इतिहास हो जाएगा संसद भवन

आज देश को नया संसद भवन मिलने जा रहा है। सरकार का मानना है कि करीब 100 साल पुराने वर्तमान पार्लियामेंट हाउस अब समय के हिसाब से उतना उपयोगी नहीं रह गया है, इसमें कई तरह की दिक्कतें उभरकर सामने आ रही है। ऐसे में आज एडवांस टैक्नलॉजी के दौर में देश को नए भवन की जरूरत है। केंद्र सरकार का कहना है कि मौजूदा संसद भवन में सांसदों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। आजादी से पहले जब संसद भवन का निर्माण किया जा रहा था तब सीवर लाइनों, एयर कंडीशनिंग, अग्निशमन, सीसीटीवी, ऑडियो-वीडियो सिस्टम जैसी चीजों का खासा ध्यान नहीं रखा गया था। बदलते समय के साथ संसद भवन में इन्हें जोड़ा तो गया लेकिन उससे भवन में सीलन जैसी दिक्कतें सामने आ रही हैं। सदस्यों के लिए जगह कम पडऩे के साथ ही कर्मचारियों के लिए भी जगह की कमी पडऩे लगी है।
पुरानी संसद में जहां लोकसभा की क्षमता 552 सांसदों की है वहीं नए भवन में 888 सदस्यों के लिए बैठने की जगह होगी। वहीं राज्यसभा में वर्तमान भवन की राज्यसभा में 250 सांसदों की क्षमता है, वहीं नए भवन के अपर हाउस में 384 सदस्यों के लिए जगह होगी। गौरतलब है कि 2026 के बाद देश में जनगणना और परिसिमन जैसे कार्य होने के बाद सांसदों की संख्या बढ़ सकती है। इसके मद्देनजर सरकार की ये दलील वाजिब लगती है कि देश को नए संसद भवन की जरूरत है।
साथ ही दावा किया जा रहा है कि नए भवन में सांसदों के लिए कार्यालय आधुनिक सुविधाओं के साथ मिलेगी इसके अलावा पेपरलैस कार्य को बढ़ावा मिलेगा। पुराने संसद भवन को ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने काउसिंल हाउस के रूप में डिजाइन किया था। इसे बनाने में छह साल लगे थे। उस वक्त इस भवन में ब्रिटिश सरकार की विधान परिषद काम करती थी। तब इसे बनाने पर 83 लाख रुपये खर्च हुए थे, वहीं आज नए भवन को बनाने में करीब 862 करोड़ रुपये खर्च आया है।
हालांकि नए भवन के साथ कुछ विवाद भी जुड़ गए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नई संसद के उद्घाटन से पहले केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। नीतीश कुमार ने कहा है कि देश को नई संसद की जरूरत नहीं थी और सरकार ने केवल इतिहास बदलने के उद्देश्य से नई संसद का निर्माण करवाया। दरअसल जबसे ये बात सामने आई है कि इस भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी करेंगे उसके बाद से ही कई दलों ने विरोध के सुर तेज कर दिए हैं। 20 दलों ने लिखकर विरोध जताते हुए कहा है कि राष्ट्रपति मुर्मू को दरकिनार किया जा रहा है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों का तर्क है कि नई संसद का उद्घाटन राज्य के प्रमुख द्वारा किया जाना चाहिए, उनका नाम वरीयता के आधार पर होना चाहिए। इस तरह देखा जाए तो नंबर एक स्थान पर राष्ट्रपति हैं। दूसरे स्थान पर उपराष्ट्रपति फिर तीसरे नंबर पर प्रधानमंत्री आते हैं। जहां कुछ दल इसका विरोध कर रहे हैं वहीं कई विपक्षी दल ऐसे हैं जो इसमें सरकार के साथ खड़े हैं इनमें बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, जनता दल (सेक्युलर), बहुजन समाज पार्टी और तेलुगु देशम पार्टी का नाम प्रमुख है।
हालांकि पुरानी संसद भवन में आ रही दिक्कतों के मद्देनजर दो पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और सुमित्रा महाजन और वर्तमान अध्यक्ष ओम बिड़ला ने सरकार से अनुरोध किया था कि मौजूदा संसद का जीर्णोद्धार करने के बजाय एक नई संसद का निर्माण किया जाए। ऐसे में लोकतंत्र के इस मंदिर को नया बनाने की जरूरत को समझा जा सकता है। दरअसल नई संसद सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास के लिए मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना का हिस्सा है। इस प्रोजेक्ट में 20 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
उद्घाटन कौन करेगा के विवाद के साथ ही सेंगोल की स्थापना पर भी विवाद शुरु हो गया है। दरअसल केंद्र सरकार ने नए संसद भवन में सेंगोल को स्थापित करने का फैसला लिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नया संसद भवन हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोडऩे का सुंदर प्रयास है। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है। कांग्रेस ने इसे सेंगोल का अपमान बताया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर दावा किया था कि इस बात का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है कि माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित नेहरू ने सेंगोल को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक कहा था। जयराम रमेश ने कहा कि मद्रास प्रांत के एक धार्मिक प्रतिष्ठान ने अगस्त 1947 को पंडित नेहरू को यह राजदंड सौंपा था, लेकिन इसे सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित नहीं किया गया था। कांग्रेस ने ये भी कहा कि सेंगोल मामले को उठाकर भाजपा तमिलनाडु में राजनीतिक फायदा लेना चाहती है। वहीं, भाजपा का कहना है कि कांग्रेस ऐसा बोलकर तमिल और भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा का अपमान कर रही है। लोकतंत्र में विपक्ष का स्वर की भी अहमियत होती है तभी इसकी महत्ता है। उम्मीद की जानी चाहिए की लोकतंत्र के इस मंदिर में सत्ता पक्ष सदैव विपक्ष की बातों को भी अहमियत देगा। तभी सच्चे मायनों में देश में लोकतंत्र की जड़ें और मजबूत होगी।

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