हरिशंकर व्यास
Political विपक्षी एकता आर्थिक भी हो
Political आमतौर पर विपक्षी पार्टियों के बीच राजनीतिक और चुनावी एकजुटता की बात होती है। हर चुनाव से पहले कहा जाता है कि पार्टियां एक दूसरे से सहयोग करें, एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार न उतारें, वोट काटने की राजनीति न करें आदि आदि। लेकिन इस राजनीतिक एकजुटता के साथ साथ आर्थिक एकजुटता भी जरूरी है। देश की कई पार्टियां हैं, जिसमें कांग्रेस भी शामिल है, जिनके पास बड़ा आधार है, संगठन है, नेता हैं लेकिन धन नहीं है। संसाधन नहीं है।
Political केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद चुनावी चंदे का रास्ता बंद कर दिया गया है। पार्टियों को मिलने वाला चंदा बंद सा है। इलेक्टोरल बांड के सिस्टम से जो चंदा मिलता है उसका 90 फीसदी भाजपा के खाते में जाता है। कॉरपोरेट के ऊपर निगरानी और अंकुश है कि वे विपक्षी पार्टियों को चंदा न दें। जहां विपक्षी सरकारें हैं वहा भी ठेके-पट्टे से कमाई या तो बंद या कम हो गई है क्योंकि केंद्रीय एजेंसियां सक्रिय हैं। लगभग सभी राज्यों में सरकारों के लिए धन का बंदोबस्त करने वाले कारोबारियों पर छापे पड़े हैं या जांच चल रही है।
Political ऐसे समय में जरूरी है कि जिन पार्टियों के पास संसाधन हैं वे दूसरी पार्टियों की मदद करें। सिर्फ राजनीतिक मदद या तालमेल पर्याप्त नहीं है। भाजपा का मुकाबला करने के लिए बेहिसाब संसाधन की जरूरत पड़ेगी। क्या किसी विरोधी पार्टी का दिल इतना बड़ा है कि वह दूसरी पार्टियों के लिए अपना खजाना खोले?
ध्यान रहे बिहार में नई पार्टी बनाने से पहले प्रशांत किशोर पदयात्रा कर रहे हैं और नई राजनीति की जमीन तलाश रहे हैं, उन्होंने कई बार कहा कि देश के कई राज्यों में उन्होंने नेताओं और पार्टियों की मदद की तो अब वे लोग उनकी मदद कर रहे हैं। सो, क्या प्रशांत किशोर की मदद करने वाली पार्टियां वैसी ही मदद दूसरी विपक्षी पार्टियों की कर सकती हैं?
सो यदि कोई बड़ा नेता इस बात की पहल करता है कि विपक्षी पार्टियों में एकजुटता बने। सबके लिए विन विन सिचुएशन हो तो साथ में संसाधनों का एक साझा कोष बनवाना भी जरूरी है। भाजपा मीडिया के ऊपर और सोशल मीडिया में बेहिसाब खर्च करती है। वह चुनाव प्रचार में पानी की तरह पैसा बहाती है।
विपक्षी पार्टियां उस तरह से तो नहीं कर सकती हैं लेकिन साझा कोष बना कर साझा प्रचार का जरूरत भर खर्च का इंतजाम कर सकती है ताकि सारी पार्टियां ठीक से चुनाव लड़ सकें। उनका प्रचार ठीक से हो। चुनाव का प्रबंधन भी ठीक से हो। तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि राज्यों की भाजपा विरोधी पार्टियां सक्षम हैं।
वे दूसरी पार्टियों की मदद कर सकती हैं। अगर तालमेल होता है तो झारखंड में जेएमएम कांग्रेस और राजद को लड़वा सकती है और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी चाहें तो कांग्रेस और लेफ्ट के लिए बंदोबस्त कर सकती हैं। राजनीति के साथ साथ संसाधनों के इंतजाम पर भी विरोधियों को ध्यान देना होगा।