now stand up भारत के आर्थिक भविष्य को लेकर आशंकित
now stand up जिस देश की आर्थिक वृद्धि में निजी उपभोग का योगदान 60 प्रतिशत है, उसके लिए यह खतरे की घंटी है। चूंकि कंपनियां कारोबार के नियम जानती हैं, इसलिए वे इस रूझान से चिंतित हैँ।
now stand up देश के कॉरपोरेट सेक्टर का एक बड़ा वो हिस्सा भी भारत के आर्थिक भविष्य को लेकर आशंकित है, जो फिलहाल मजे में है और जिसकी संपत्ति अभी बढ़ रही है। उसकी राय है कि अभी जो चमक है, वह टिकाऊ नहीं है।
now stand up इसकी वजह यह है कि उपभोग और मांग का जमीनी आधार टूट रहा है। इस सेक्टर के बड़े अधिकारियों की ये राय अमेरिकी वेबसाइट ब्लूमबर्ग की एक स्टोरी में सामने आई है। ब्लूमबर्ग ने अपनी इस स्टोरी का भडक़ाऊ किस्म का यह शीर्षक दिया है: ‘लग्जरी उत्पादों की बढ़ती मांग से बेनकाब हुई बढ़ती गैर-बराबरी।’
now stand up इस स्टोरी ने भारतीय बाजार के इस ट्रेंड पर फिर रोशनी डाली है कि महंगी उपभोक्ता सामग्रियों की बिक्री में तेजी है, जबकि उसी उत्पाद की शुरुआती कीमत वाली सामग्रियां नहीं बिक रही हैँ। मसलन, डेढ़ लाख कीमत वाले फ्रीज तो खूब बिक रहे हैं, लेकिन 25 हजार से 75 हजार वाले फ्रीज के खरीदार गायब हैँ। यानी कम आमदनी वाले ग्राहक हाशिये पर चले गए हैं और चार-पांच साल पहले की तरह उपभोग की उनकी क्षमता नहीं बची है।
now stand up तो कंपनी अधिकारियों ने उचित ही यह कहा है कि जिस देश की आर्थिक वृद्धि में निजी उपभोग का योगदान 60 प्रतिशत है, उसके लिए यह खतरे की घंटी है। चूंकि कंपनियां कारोबार के नियम जानती हैं, इसलिए वे इस रूझान से चिंतित हैँ। वैसे ये साधारण नियम तो सरकार के मंत्री और अधिकारी भी जरूरत जानते होंगे।
लेकिन वर्तमान सरकार में उन्हें मुख्य जिम्मेदारी हेडलाइन मैनेजमेंट की सौंपी गई है। इसलिए वे निराशानजक आर्थिक आंकड़ों के भीतर भी उम्मीद जगाने वाले तथ्य ढूंढने और उसके आधार पर खुशहाली का नैरेटिव प्रचारित करने में जुटे रहते हैँ। अगर यह साफ है कि सरकार का ये तरीका वर्तमान के साथ-साथ देश के भविष्य को भी बिगाड़ रहा है।
now stand up अब बढ़ती महंगाई के कारण लोगों की वास्तविक आय और घट रही है। इस कारण उन्हें अपनी आमदनी का अपेक्षाकृत अधिक हिस्सा भोजन जैसी बुनियादी जरूरत पर खर्च करना पड़ रहा है। ऐसे में वे बाकी चीजों का उपभोग कैसे करेंगे यह कान खड़े कर देने वाली हालत है। लेकिन क्या अब सरकार के कान खड़े होंगे