Non-Gandhi president गैर गांधी अध्यक्ष के साथ कैसे निभेगी?

Non-Gandhi president

हरिशंकर व्यास

Non-Gandhi president  गैर गांधी अध्यक्ष के साथ कैसे निभेगी?

Non-Gandhi president सोनिया गांधी सक्रिय राजनीति में उतरने के साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष बन गई थीं। राहुल गांधी जब सक्रिय राजनीति में उतरे तो उनकी मां की अध्यक्षता में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव जीत कर केंद्र में सरकार बनाई थी। इस तरह पिछले 24 साल में कांग्रेस की वास्तविक सत्ता और कानूनी सत्ता दोनों सोनिया और राहुल गांधी के हाथ में रही है। पहली बार हो रहा है कि कोई गैर गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष बन रहा है।

Non-Gandhi president यानी कानूनी रूप से, संवैधानिक रूप से कांग्रेस की सत्ता किसी और नेता के हाथ में जाने वाली है। 19 अक्टूबर को कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिलेगा। तभी सवाल है कि नए अध्यक्ष के साथ गांधी परिवार की कैसी निभेगी? क्या सब कुछ पहले की तरह चलता रहेगा या राजनीति में उतार-चढ़ाव आएंगे?

Non-Gandhi president ऐसा नहीं है कि पहली बार कोई गैर गांधी अध्यक्ष बन रहा है। पहले भी गांधी परिवार से बाहर के लोग कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं लेकिन एक-दो अपवादों को छोड़ दें तो उस अवधि में गांधी परिवार के सदस्य प्रधानमंत्री थे। इसलिए उनकी सत्ता को कोई चुनौती नहीं थी।

Non-Gandhi president असली दिक्कत तो तब है, जब पार्टी सरकार में नहीं है। गांधी परिवार का कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री नहीं है और कांग्रेस अध्यक्ष भी नहीं रहेगा। जब ऐसी स्थिति थी तब परिवार के लिए मुश्किल समय था और कैसे सोनिया गांधी ने पार्टी फिर वापस हासिल की यह भी हाल के इतिहास की बात है।

ऐसी स्थिति तब थी जब पीवी नरसिंह राव कांग्रेस अध्यक्ष भी थे और प्रधानमंत्री भी थे। वे 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद आए चुनाव नतीजों के बाद प्रधानमंत्री बने थे और कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। राव 1996 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे थे। और सब जानते हैं कि 1991 से 1996 तक का समय सोनिया गांधी के परिवार के लिए कितना भारी गुजरा था।

नरसिंह राव के कार्यकाल में परिवार पूरी तरह से हाशिए में चला गया था। हालांकि परिवार के प्रति निष्ठावान नेताओं ने राव के खिलाफ बगावत की और अलग पार्टी भी बनाई लेकिन उससे नरसिंह राव की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

राव के साथ परिवार के संबंध कैसे रहे थे, यह उनके निधन के बाद पता चला, जब उनका पार्थिव शरीर पार्टी मुख्यालय में नहीं ले जाने दिया गया। बहरहाल, उसके बाद सीताराम केसरी अध्यक्ष हुए थे और उनके साथ भी सोनिया गांधी के परिवार के संबंध बहुत अच्छे नहीं थे।

सीताराम केसरी के अध्यक्ष रहते 1998 के लोकसभा चुनाव हुए थे और तब सोनिया गांधी कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करना चाहती थीं और केसरी इसके लिए तैयार नहीं थे। केसरी का करीब दो साल का कार्यकाल भी परिवार के लिए अच्छा नहीं रहा था।

तभी 1998 का चुनाव हारते ही कांग्रेस में परिवार के प्रति निष्ठावान नेता सक्रिय हुए और मार्च में केसरी को हटा कर सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाया गया। अब 24 साल बाद फिर वहीं संयोग है, जो नरसिंह राव और सीताराम केसरी के समय था। कोई गैर गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष बन रहा है और नेहरू गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री नहीं है।

हालांकि तब से अब में फर्क यह है कि तब सोनिया गांधी को राजनीति का कोई अंदाजा नहीं था और राहुल और प्रियंका गांधी तब बच्चे थे। अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस की राजनीति को कंट्रोल करने वाले हैं। इसके बावजूद यह सवाल है कि गैर गांधी अध्यक्ष के साथ परिवार की केमिस्ट्री कैसी रहेगी? नया अध्यक्ष स्वतंत्र रूप से काम करेगा या वह सिर्फ रबर स्टैंप रहेगा?

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