भाकपा (माले) रेड स्टार
New parliament नए संसद भवन में “हिंदूराष्ट्र के मंदिर” की बू आती है न कि “लोकतंत्र के मंदिर” की
New parliament मोदी द्वारा स्वयं संसदीय प्रक्रियाओं का उल्लंघन करते हुए और राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए नए संसद भवन का उद्घाटन किया गया। यह घटना,21 विपक्षी संसदीय दलों द्वारा बहिष्कार के बीच, कई मायनों में अगस्त 2020 में उनके द्वारा किए गए राम मंदिर भूमि पूजन के समान है। 2014 से भारतीय संविधान के मूल चरित्र को बदलने के लिए मोदी शासन के बार बार हस्तक्षेप करने के बावजूद, अभी भी संविधान के अनुसार, धर्म को राज्य से जुड़े मामलों को शामिल करने की अनुमति नहीं है और इस अर्थ में, पूरी उद्घाटन प्रक्रिया हिंदू रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों की ओर उन्मुख है।यह संविधान का घोर उल्लंघन है, अन्य धर्मों के विश्वासियों के लिए अपमान है और गैर-विश्वासियों के लिए एक चुनौती है। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा पूजा का आयोजन, उसके बाद प्रधानमंत्री द्वारा अधीनम संतों द्वारा सौंपे गए ‘सेंगोल’ (राजदंड) के सामने साष्टांग प्रणाम करना, जिसकी कोई ऐतिहासिक वैधता या दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है, इसको केंद्रबिंदु में रख चारों ओर गोएबेल्सियन उत्तर-सत्य प्रचार, और फिर इसे स्थापित करना, ये सभी एक हिंदुत्व राज्य स्थापना के सूचक हैं।
जबकि ये बहुसंख्यकवादी ईश्वरवादी अभिव्यक्तियाँ नए भवन के अंदर अत्यधिक मजबूत सुरक्षा घेरे में फल-फूल रही थीं, फासीवादी शासन के पास असंतोष की आवाज़ों को कुचलने में कोई हिचक नहीं होनी थी। जैसा कि पहले से घोषित महिला महापंचायत के तहत, नए संसद भवन की ओर बढ़ने की कोशिश करने वाली महिलाओं और संघर्षरत प्रसिद्ध पहलवानों के साथ मारपीट और उन्हें हिरासत में लेने में प्रकट होता है। महिला महापंचायत’ के मद्देनजर,समूचे दिल्ली में लगभग 10,000 पुलिस कर्मियों की तैनाती के साथ-साथ दो मेट्रो स्टेशनों – उद्योग भवन और केंद्रीय सचिवालय को बंद करने सहित कई प्रमुख सड़कों पर यातायात को पूरी तरह से अवरुद्ध करके अभूतपूर्व सुरक्षा तैनात की गई थी।
मोदी द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन दिवस के रूप में ‘सावरकर दिवस’ (28 मई) का चुनाव भी स्वतः स्पष्ट है। ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कट्टर समर्थक और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विश्वासघाती के रूप में, सावरकर जो कि हिंदुत्व के जनक हैं और जो चाहते थे कि मुसलमानों के खिलाफ खड़े होकर हिंदू अपनी “पुण्यभूमि” हासिल करें। सही सही कहा जाय तो,हिंदुत्व फासीवादियों के लिए, 28 मई को संसद भवन का उद्घाटन हिंदूराष्ट्र की दिशा में उनकी पागल गति में एक और बढ़ाया गया कदम है।
इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, हम सभी जनवादी, प्रगतिशील और फासीवाद-विरोधी ताकतों से अपील करते हैं कि वे सभी फासीवादी अभिव्यक्तियों का दृढ़ता से विरोध करते हुए व्यापक संभव फासीवाद-विरोधी एकता का निर्माण करके आरएसएस के नव-फासीवाद के खिलाफ चौतरफा हमले के लिए तैयार रहें। फासीवाद और नवउदारवाद के भौतिक और वैचारिक आधार के खिलाफ मजदूर वर्ग और सभी उत्पीड़ितों के दीर्घकालिक संघर्ष को खड़ा करने के साथ-साथ, आगामी विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी जनवादी और फासीवाद-विरोधी ताकतों को मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आगे आने का यही सही समय है।