Nature प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से विकास की ये अंधी दौड़ हमें कहां ले जाएगी ?

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Nature प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से

Nature आदिवासियों को प्रकृति उपासक कहा जाता है क्योंकि वे उसके सबसे करीब होते हैं, उसी की गोद में जीते हैं, बढ़ते हैं और उसी में गुम हो जाते हैं। लेकिन पूरा समाज जिस तेजी से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के लिए अमादा है इसके चलते इनका जीवन सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। इस बाहरी हस्तक्षेप के चलते दुनियाभर में बहुत बड़े पैमाने पर लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। जंगलों में निवास करने वाले ये लोग अपनी जरूरत के हिसाब से प्राकृतिक संसाधन को लेते हैं और उसे समृद्ध करने की कोशिश करते हैं लेकिन इसके ठीक उलट तथाकथित सभ्य समाज अंधाधुंध तरीके से प्राकृतिक संसाधन के लिए जंगलों की कटाई और खनन कर रहा है।

Nature हमारे जीवन को गति देने में जमीन के ऊपर पाए जाने वाले वस्तुओं के साथ ही जमीन के भीतर मिलने वाले खनिजों का अहम योगदान है। फिर वो तेल हो या फिर अयस्क, कोयला, तांबा, सोना, चांदी आदि हों, इन प्रमुख खनिजों के साथ ही गौण खनिज रेत, गिट्टी, पत्थर का भी जमकर खनन हमारे चारों तरफ हो रहा है। मनुष्य अपनी आवश्यकता का लगातार विस्तार कर रहा है। इसके चलते प्राकृतिक खनिज पर भी हमारी निर्भरता भी बढ़ी है। कहीं न कहीं पूरी दुनिया में जमीन के भीतर दबे इन खजानों को हथियाने की होड़ चल रही है। रूस ने जिस तरह यूक्रेन पर हमला किया उसके बाद भी उसे दुनिया की कई ताकत मिलकर अलग-थलग नहीं कर पाए इसकी बड़ी वजह रशिया के पास मौजूद तेल औऱ गैस का भंडार है। पुतिन ने गैस पाइप लाइन बंद करने की धमकी भी दी।
यूरोपीय संघ अपनी ज़रूरत की आधी गैस, कोयला और तकऱीबन एक तिहाई तेल के लिए रूस पर निर्भर है, ऐसे में वो चाहकर भी रशिया के साथ संबंध विच्छेद नहीं कर सकता। कह सकते हैं कि जिसकी जमीन के नीचे जितना खनिज भंडार होगा वो उतना ही शक्तिशाली होगा।

Nature विशेषज्ञ दुनिया में ऊर्जा परिवर्तन के लिए कम से कम 17 खनिजों को अहम मानते हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि इन 17 खनिजों में से सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है लिथियम, निकल, कोबाल्ट, तांबा, ग्रेफाइट। कह सकते हैं कि जिस तरह 20वीं सदी को बदलने में तेल ने अहम भूमिका निभाई, उसी तरह 21वीं सदी में इन 17 खनिजों की अहम भूमिका रहेगी और ये ही मानव जीवन में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। ऐसे में जिन देशों के पास ये 17 खनिजों में किसी का भी भंडार होगा वो रेस में आगे आएगा।

Nature अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से अगर हम स्थानीय हालात पर नजर डालें तो हमें गौण खनिज की लूट चारों तरफ नजर आएगी। आज प्रदेश की तमाम छोटी बड़ी नदियों के गर्भ से वैध औऱ अवैध तरीके से बड़े पैमाने पर रेत उत्खनन हो रहा है। खनन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे प्रशासन और कोर्ट के आदेशों को हवा में उड़ा दे रहे हैं जैसे अतंर्राष्ट्रीय मामले में खनिज संपन्न राष्ट्र कई मामलों में मनमानी करते हैं। ठीक उसी तरह स्थानीय माफिया अपनी दादागिरी से बाज नहीं आते। छत्तीसगढ़ के साथ ही पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में तो खनन माफियाओं ने कई बार पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों पर भी हमला कर दिया है। प्राकृतिक संसाधनों के लुटेरों के निशाने पर हमारे जंगल भी आते हैं। जंगलों में भी कई तरह के माफिया काम करते हैं।

Nature हमारा राज्य छत्तीसगढ़ खनिज और जंगल दोनों क्षेत्र में धनी है। इससे सरकारों को मोटी रॉयल्टी मिल रही है, लेकिन प्राकृतिक स्त्रोतों के दोहन का दुष्परिणाम भी यहां के लोगों को झेलना पड़ा है। खनिज की तलाश में इसकी आपूर्ति के लिए आज जंगलों को काटा जा रहा है इससे यहां रहने वाले वन्य प्राणी, यहां रहने वाले लोगों के सामने एक अलग तरह का संकट खड़ा हो गया है। छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से 28 तरह के खनिजों का भण्डार है इसमें 52

Nature अरब टन कोयला, 2.7 अरब टन उच्च गुणवत्ता वाला लौह अयस्क शामिल है। हमें भविष्य के लिए इन खनिजों को सहेजना भी है। साथ ही कोशिश होनी चाहिए कि इससे मिलने वाले लाभ का हिस्सा उन लोगों को भी मिले जिनकी बस्ती जिनका घर इसे पाने के लिए उजड़ रहा है।
प्रसंगवश: विनोद कुमार शुक्ल की कुछ पंक्तियां-

जंगल का चंद्रमा
असभ्य चंद्रमा है
इस बार पूर्णिमा के उजाले में
आदिवासी खुले में इकठ्ठे होने से
डरे हुए हैं
और पेड़ों के अंधेरे में दुबके
विलाप कर रहे हैं
क्योंकि एक हत्यारा शहर
बिजली की रोशनी से
जगमगाता हुआ
सभ्यता के मंच पर बसा हुआ है

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