अजय दीक्षित
Nature conservation प्रकृति संरक्षण या आधुनिक सुविधा ?
Nature conservation हर रोज पढऩे को मिलता है कि जरा सी बारिश से मेट्रो शहरों में सडक़ों पर नाव चलने लगीं । बेंगलुरु, या नई दिल्ली, या मुम्बई या चेन्नई ऐसे ही महानगरों में बारिश, सूखा, ऑंधी से तबाही हो गई । असल में हम प्रकृति के साथ सह अस्तित्व में रहना भूल गये हैं ! भारतीय जीवन सह अस्तित्व पर आधारित है । यह सह अस्तित्व मानव-मानव के बीच में ही नहीं, अपितु जड़, प्रकृति, वनस्पति, जगत, पशु, पक्षी जगत के साथ भी मानव के रिश्ते को लेकर है । अब वे बड़ी बूढिय़ॉं कहॉं रह गईं जो कहती थी कि रात्रि में पेड़ सोते हैं, उनके पत्ते और फूल मत तोड़ों । या हम पत्थर की भी पूजा करते थे, गंगा जी में मिलने वाले गोल पत्थरों को शिवलिंग कह कर सहेजते थे । पितृपक्ष में कौवों को भी भोजन परोसते थे ।
Nature conservation असल में गॉंधी इस अंधी आधुनिकता के विरोधी थे । हम आजकल बात बात पर गॉंधी को पूजते हैं । परन्तु कोई भी विदेशी मेहमान आता है तो उसे गॉंधी स्मारक पर ले जाते हैं । मुख्य अवसरों पर अल सुबह प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति गॉंधी समाधि पर पहुॅंचते हैं । तब रास्तों पर आवागमन रुक जाता था । एक अर्दली थाली में फूल की पंखुडिय़ॉं लिए खड़ा रहता था और यह राजनेता आदर भाव से फूल की पंखुडिय़ों को समाधि पर अर्पित करते हैं । ऐसे भी राजनेता हैं जो पंखुडिय़ों को आदर से अर्पित करने के बजाय फेंकते नजर आते हैं । यह पंखुडिय़ॉं सरकारी खजाने से खरीदी जाती हैं । हमारे राजनेताओं की मुक्ति भी एक सरकारी कार्यक्रम बन कर रह जाता है । राम धुन बजाई जाती है । हमें बड़ा ऐतराज होता है कि कश्मीरी बच्चे गॉंधी का प्रिय भजन — रघुपति राघव राजा राम । पतित पावन सीता राम ।
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम । सबको सन्मति दे भगवान ।।
क्यों नहीं गाते । भाजपा के कार्यकर्ता इस बात को लेकर बहुत चिन्तित हो जाते हैं । इन प्रवक्ताओं से जब पूछा जाता है कि क्या आप पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं, तो ये निरुत्तर हो जाते हैं । फिर कश्मीरी बच्चों की भाषा हिन्दी नहीं, कश्मीरी है । बच्चों से एकता का पाठ पढ़ाने के बजाय स्वयं कितना हिन्दू- मुसलमान करते हैं, सब कोई जानता है । मैं शायद मुद्दे से भटक गया । असल बात प्रकृति संरक्षण की हो रही थी । खबर है निकोबार द्वीप समूह में नेवी के लिए हवाई अड्डा बनाने के लिए वहॉं साढ़े आठ लाख पेड़ काटे जायेंगे । फिर से सुनिए — एक-दो पेड़ नहीं, सौ पचास पेड़ नहीं, हजार -दो हजार पेड़ नहीं –साढ़े आठ लाख –फिर से सुनिए — साढ़े आठ लाख पेड़ काटे जायेंगे ।
कहते हैं कि देश की सुरक्षा की दृष्टि से वहॉं किते जा रहे प्रोजेक्टों के कारण है । ग्रेट निकोबार आईलैण्ड में 12 से 20 हेक्टेयर के वनस्पति -गरान (द्वड्डठ्ठद्दह्म्श1द्ग) के साढ़े आठ लाख पेड़ों की आहुति दी जायेगी ।
वहॉं एक मिलिट्री और सिविल हवाई अड्डा बनाया जायेगा । वहॉं बन्दरगाह बनाया जायेगा, इन्टरनेशनल टान्स शिपमेन्ट टर्मिनल बनाया जायेगा, सोलर आधारित पावर प्लांट बनाया जायेगा, वहॉं एक शहर बसाया जायेगा । हवाई अड्डा नेवी के अधीन रहेगा जो सैनिक और आम जनता दोनों के उपयोग में आयेगा । यह बात गृह मंत्रालय के पत्रांक दिनांक 30 मार्च से मालुम पड़ी है ।
भारतीय सीमा में ग्रेट निकोबार द्वीप अन्तिम छोर है । इसी से इसका सामरिक महत्व है । बंगाल की खाड़ी और दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के बढ़ते कदम के लिए ये प्रोजेक्ट बहुत जरूरी है ।
ई.ए.सी.(एक्सपर्ट एपराइज़ल कमेटी) को जुलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, वाइल्ड लाइफ इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डिया और सलीम अली सेन्टर फॉर ऑरनियोलॉजी एण्ड नेचुरल हिस्ट्री यार्नि ंस्ढ्ढ, ङ्खढ्ढढ्ढ और स््रष्टह्रहृ का समर्थन प्राप्त है ।
भारत केन्द्रीय मंत्रालय पर्यावरण और वन को भी इन पेड़ों को काटे जाने पर कोई ऐतराज़ नहीं है । इनका कहना है कि सारे पेड़ एक साथ न काटे जायें । [ क्यों कमीशन खोरी धीरे-धीरे हो क्या ? ]
किसी को चिन्ता नहीं है इससे पर्यावरण को कितना नुकसान पहुॅंचेगा और पड़ोसी देश वर्मा, ऑस्ट्रेलिया, थाईलैण्ड आखिर कैसे अपना प्रबन्ध करते हैं ? इन क्षेत्रों के आदिवासियों का क्या होगा ? वे वैसे ही विलुप्त के प्रभाव में हैं । वनस्पति- गरान (द्वड्डठ्ठद्दह्म्श1द्ग) हमारी सम्पदा है । भारत की विशेषता है । परन्तु वर्तमान केन्द्रीय सरकार अपने ख्वाब के पर ढूंढ रही है ।