National character नफरत के राष्ट्रीय चरित्र की जड़ असहमति!

National character

हरिशंकर व्यास

national character नफरत के राष्ट्रीय चरित्र की जड़ असहमति!

national character  भारत पहले कभी ऐसा नहीं था कि असहमति को नफरत का कारण बना दे। भारत कभी ऐसा नहीं था, जहां हिंदुत्व की विचारधारा नफरत फैलाने का कारण बने।

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national character  भारत कभी ऐसा भी नहीं था कि हिंदुत्व का एक मतलब एक व्यक्ति और उसकी विचारधारा बन जाए। लेकिन अब भारत ऐसा ही है। भारत के एक बड़े धर्मगुरू स्वामी अवि मुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने पिछले दिनों एक वीडियों में इस बदलाव की पीड़ा जाहिर की। उन्होंने कहा कि पहले हिंदू वह होता था, जो हिंदू धर्मशास्त्रों के नियमों, विनियमों को मानता था।

national character उन्हे अपने जीवन में उतारता था। लेकिन अब हिंदू वह है, जो हिंदुत्व को माने और हिंदुत्व का मतलब वह है, जो एक व्यक्ति कहे। उन्होंने आगे कहा कि पहले हिंदू ऋषि-मुनियों के बनाए सिद्धांतों को मानने वाला हिंदू होता था। जबकि आज एक व्यक्ति की विचारधारा को मानने वाला हिंदू कहलाता है।

national character यह अपने आप में बहुत बड़े खतरे का संकेत है। जब धर्म, देश, विचारधारा को एक व्यक्ति के साथ जोड़ दिया जाता है तो इस तरह के खतरे पैदा होते हैं। फिर उस व्यक्ति का विरोध करना या उससे असहमति प्रकट करना नामुमकिन होता है। भारत में यहीं हो रहा है।

आज चाहे हिंदू धर्म की बात हो, देशभक्ति की बात हो या सामान्य शासन-प्रशासन की भी बात हो किसी में भी प्रधानमंत्री की बात से असहमत नहीं हो सकते हैं। अगर आप असहमत होते हैं तो फिर आप हिंदू विरोधी, देश विरोधी, विकास विरोधी करार दिए जाएंगे।

मतलब यह हुआ कि भारत की बुद्धी में यह धारणा बना दी गई है कि हिंदू धर्म वह है, जो प्रधानमंत्री कहें। देशभक्ति वह है, जो प्रधानमंत्री कहें और विकास वहीं है, जो प्रधानमंत्री बताएं। यदि आप सहमत हैं तो सच्चे हिंदू हितैषी और देशभक्त हैं अन्यथा आप हिंदू और देश विरोधी हैं और आपको भारत में नहीं रहना चाहिए, पाकिस्तान चले जाना चाहिए।
यही है भारत के राष्ट्रीय चरित्र को बदलना।

सोचें, प्राचीन भारत में एक समय ऐसा था, जब तमाम बड़े ऋषि-मुनियों में मतभेद थे। यदि हम सिर्फ धर्म के दायरे की बात करें तो भारत में एक ही समय में आस्तिक और नास्तिक दोनों तरह के ऋषि थे। एक ही समय में शैव और वैष्णव दोनों तरह के ऋषि-मुनि हुए। उनमें घनघोर असहमति रही। एक समय में एकेश्वरवादी और अनेकेश्वरवादी भी रहे। इतना ही नहीं कर्मकांडी और तार्किक भी रहे। लेकिन कभी एक-दूसरे के प्रति नफरत का भाव नहीं रहा।

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इसी तरह आजादी की लड़ाई में कांग्रेस एक छाता, अंब्रेला संगठन था, जिसमें महात्मा गांधी से असहमत होने वाले अनेक नेता था। कांग्रेस में होमरूल मांगने वाले भी थे तो पूर्ण स्वराज की मांग करने वाले भी थे। हिंसा का सहारा लेने वालों के समर्थक थे तो अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले भी थे। नरमपंथी और गरमपंथी भी थे।

पूंजीवादी और समाजवादी भी थे। लेकिन तमाम वैचारिक और कामकाज के तौर-तरीकों की असहमति के बावजूद सब एक साथ काम करते थे। एक साथ रहते थे। वे एक-दूसरे से नफरत नहीं करते थे, बल्कि एक-दूसरे का मान-सम्मान करते थे।

आज ऐसा नहीं है। आज यदि आप वैचारिक विरोधी हैं तो आपको दुश्मन मान कर आपसे नफरत की जाएगी। आपको बदनाम करने के लिए कुछ भी किया जाएगा। आपके पीछे लंगूरो की ट्रोल टीम छोड दी जाएगी। आपकी छवि बिगाड़ी जाएगी। आपके बारे में झूठी-सच्ची खबरें चलाई जाएंगी।

आपकी फोटोशॉप की गई तस्वीरों से आपको बदनाम किया जाएगा। आपकी वीडियो काट-छांट कर उन्हे इस तरह दिखाया जाएगा, जिससे आप उपहास या नफरत का पात्र बनें। ऐसा नहीं है कि इस तरह सिर्फ राजनीतिक विरोधियों को निपटाया जाता है। बल्कि वैचारिक विरोधियों के साथ भी होता है।

पार्टी के भीतर के विरोधियों, आलोचकों के साथ होता हौ। यदि आप मीडिया में कुछ विरोध में लिख रहे हैं तो आपके साथ भी होगा और यदि आप जज हैं और कोई प्रतिकूल टिप्पणी कर दी है तो आप भी निशाना बनेंगे। याद करें कैसे भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयान पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने टिप्पणी की थी तो जवाब में उनको कैसे निशाना बनाया गया था। सीपीएम के नेताओं और ‘एनडीटीवी’ के मालिकों व ‘द हिंदू’ के संपादक के साथ कहीं छुट्टी मनाते पांच-छह लोगों की एक फोटो वायरल की गई थी और दावा किया गया था कि इसमें एक वो जज भी हैं, जिन्होंने नूपुर शर्मा पर टिप्पणी की है।

सोचें, नीतीश कुमार कितने बरस तक भाजपा के साथ रहे हैं? वे 1995 के बाद से भाजपा के साथ हैं। वे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री थे। उनके नाम व चेहरे पर भाजपा को बिहार में सत्ता मिली। पिछले 27 साल में वे सिर्फ चार साल भाजपा से अलग रहे। लेकिन 23 साल साथ रहे नीतीश कुमार के खिलाफ, आज जिस तरह का अभियान चल रहा है वैसा जन्म जन्मांतर से दुश्मन रहे व्यक्ति के साथ भी नहीं सोचा जा सकता।

इसी तरह दशकों तक साथ रही शिव सेना के नेता उद्धव ठाकरे के खिलाफ अभियान चल रहा है। उनको बरबाद कर देने के अंदाज में काम किया जा रहा है।

सोचें, ये ऐसे राजनीतिक विरोधी हैं, जो हाल के दिन तक साथ थे। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कांग्रेस जैसी जन्मजात विरोधी पार्टी के नेताओं के साथ आज की सत्ता किस सीमा तक जा कर बरताव कर रही है। दूसरी खास बात यह है कि आप तभी अपने मान जाएंगे।

जब आप भक्त बने। बुद्धी-सत्य को मिटा कर कीर्तन करें। मोदीजी की भक्ति, उनसे सहमति सौ फीसदी और संपूर्ण होनी चाहिए। अगर आप 99 बातों से सहमत हैं और एक बात पर भी असहमति जाहिर कर दी तो फिर आप दुश्मन करार दिए जाएगे। नफरत के काबिल होंगे। आप देशद्रोही, हिंदू दुश्मन घोषित।

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