Money is god in india : पैसा भारत में ईश्वर है !

Money is god in india :

हरिशंकर व्यास

Money is god in india : पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं!

Money is god in india :
Money is god in india : पैसा भारत में ईश्वर है !

Money is god in india : भाजपा के दिवंगत सांसद दिलीप सिंह जूदेव ने एक बार डायलॉग बोला था- पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं! वे एक स्टिंग ऑपरेशन में पैसे ले रहे थे और छिपे हुए कैमरे के सामने कह रहे थे कि पैसा खुदा तो नहीं पर खुदा से कम भी नहीं। उन्होंने जाने-अनजाने में भारत की हकीकत बताई।

Money is god in india : सचमुच पैसा खुदा से कम नहीं है। भारत में पैसा सत्ता की चाबी है। वह चुनाव जीतने की कुंजी है। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स, एडीआर ने कई चुनावों का अध्ययन करके बताया है कि करोड़पति उम्मीदवार के चुनाव जीतने की संभावना लखपति उम्मीदवार से कई गुना ज्यादा होती है। तो सोचें, अरबपति उम्मीदवार के जीतने की संभावना कितनी ज्यादा हो जाती होगी?

Money is god in india : जिसके पास जितना ज्यादा पैसा है उसके चुनाव जीतने की संभावना उतनी ज्यादा है। यह बात जितनी उम्मीदवार के बारे में सही है उतनी ही पार्टियों के बारे में भी सही है। एडीआर ने ही कर्नाटक के पिछले विधानसभा चुनाव का अध्ययन करके अनुमान जताया था कि चुनाव में सभी पार्टियों को मिला कर कुल खर्च 10 हजार करोड़ रुपए का हुआ है।

Money is god in india : सोचें, 224 विधानसभा और 28 लोकसभा सीट वाले राज्य का चुनावी खर्च अगर 10 हजार करोड़ रुपए है तो 545 लोकसभा सीट के चुनाव का खर्च क्या होगा? अगर सीटें के अनुपात में उसी आंकड़े को 20 गुना कर दें तो लोकसभा चुनाव का मोटा-मोटी खर्च दो लाख करोड़ रुपए होगा।

Money is god in india :
Money is god in india : पैसा भारत में ईश्वर है !

Money is god in india : यह एक कंजरवेटिव अनुमान है। वास्तविक खर्च इससे काफी ज्यादा हो सकता है। अब सोचें कि इसमें सबसे ज्यादा खर्च कौन करेगा? जाहिर है, जिसके पास सत्ता है उसके पास सबसे ज्यादा पैसा है और वहीं सबसे ज्यादा खर्च करेगा।
अब सवाल है कि पैसा किस चीज पर खर्च होगा? पैसा प्रचार पर खर्च होगा, पैसा विज्ञापनों पर खर्च होगा, पैसा सोशल मीडिया पर खर्च होगा, पैसा चुनाव मशीनरी के ऊपर खर्च होगा और पैसा मतदाताओं के ऊपर भी खर्च होगा।

Money is god in india : अब चुनाव सिर्फ पार्टी कार्यकर्ता की मेहनत और उसके जुनून के दम पर नहीं लड़ा जाता है। अब पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी चुनाव प्रचार में उतरने के लिए पैसा चाहिए। जो नारे लगाने जाएगा और जुलूस में शामिल होगा उसे भी गाड़ी में पेट्रोल-डीजल चाहिए और नकद पैसे भी चाहिए।

जो वोटिंग कराने के लिए पोलिंग एजेंट बनेगा उसे भी पैसा चाहिए और काउंटिंग एजेंट को भी पैसा चाहिए। राजनीतिक प्रतिबद्धता और निष्ठा के साथ साथ पैसे का बड़ा रोल हो गया है।

पहले पार्टियां सिर्फ अपना प्रचार करती थीं और वह भी बहुत सीमित साधनों में। लेकिन अब अपना प्रचार करने के साथ साथ विरोधियों के प्रचार को पंक्चर भी करना होता है। विरोधी पार्टियों के नेताओं को बदनाम करना होता है और उनकी साख खराब करनी होती है।

यह बड़ा काम होता है, जो सोशल मीडिया के जरिए किया जा रहा है। न्यूज चैनलों और अखबारों में विज्ञापन देने से ज्यादा का बजट सोशल मीडिया के प्रबंधन का होता है। यूट्यूब से लेकर फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर अपना प्रचार करना होता है और विरोधियों के खिलाफ दुष्प्रचार करना होता है।

पार्टियों ने हजारों की संख्या में अपने साइबर सोल्जर रखे हैं, जिनका काम पार्टी की आईटी सेल के बनाए झूठे-सच्चे पोस्ट को वायरल कराना होता है। उन्हें इसके पैसे मिलते हैं।

दो-ढाई दशक पहले प्रचार के जिस तरीके को कारपेट बॉम्बिंग बोलते थे, उसका तरीका अब बहुत बदल गया है। पहले नेता का हेलीकॉप्टर से उतरना प्रचार का सबसे महंगा तरीका होता था। अब ऐसा नहीं है। अब नेता 3डी में अवतरित होते हैं। लोकसभा के अपने पहले चुनाव में ही नरेंद्र मोदी ने इस तकनीक का इस्तेमाल किया। अब नेता एक साथ कई जगह मंच पर अवतरित हो सकते हैं।

अब पार्टियां अपनी रैलियों को कवर करने के लिए मल्टी कैमरा सेटअप लगा रही हैं और सीधे सेटेलाइट फीड ले रही हैं, जिन्हें संपादित करके खास स्वरूप देकर चैनलों और सोशल मीडिया टीम को भेजा जा रहा है।

पैसे का इस्तेमाल सिर्फ प्रचार के लिए नहीं है, बल्कि विरोधियों को कमजोर करने के लिए भी है। करोड़ों रुपए देकर विपक्षी पार्टियों के नेता तोड़े जा रहे हैं, उनसे दलबदल कराई जा रही है। हर उम्मीदवार को प्रचार के लिए करोड़ों रुपए दिए जा रहे हैं। हर छोटा-बड़ा नेता हेलीकॉप्टर से प्रचार कर रहा है।

प्रचार करने वाले कार्यकर्ताओं को बेहिसाब पैसे दिए जा रहे हैं। मतदाताओं को लुभाने का अलग बजट होता है। चुनाव से पहले करोड़ों-करोड़ रुपए की शराब बांटी जाती है। हर मतदान से पहले चुनाव आयोग की टीम सैकड़ों करोड़ रुपए नकद और सैकड़ों करोड़ रुपए की शराब व अन्य सामग्री जब्त करती है, जो मतदाताओं के लिए रखी गई होती है। पार्टियां मतदाताओं को पैसे और उपहार देती हैं।

महिलाओं के बीच साड़ी-बिंदी बांटी जाती है तो पुरुषों को शराब पिलाई जाती है। महंगे फोन और दूसरे उपहार दिए जाते हैं। राजनीति में पैसे के खेल ने सिर्फ नेताओं को भ्रष्ट नहीं बनाया, बल्कि मतदाताओं को भी भ्रष्ट बनाया है। राजनीति और चुनाव की पवित्रता को नष्ट किया है।

also read : White papers : श्वेत पत्र जारी हो

सोचें, कुछ समय पहले तक पार्टी का कार्यकर्ता प्रचार के लिए भी सिर्फ जरूरत भर के पैसे लेता था। भाजपा और उसके पूर्ववर्ती अवतार जनसंघ की बात करें या वामपंथी पार्टियों की बात करें तो कार्यकर्ता अपने घर से खाकर चुनाव प्रचार करते थे।

यानी कार्यकर्ता भी पैसा नहीं लेते तो मतदाताओं के पैसा लेने के बारे में सोचा ही नहीं जा सकता है। लेकिन अब! पिछले दिनों तेलंगाना में एक सीट पर उपचुनाव हुआ तो खबर फैली की एक पार्टी मतदाताओं में पैसे बांट रही है तो उसके अगले ही दिन सैकड़ों-हजारों की संख्या में आम नागरिक पार्टियों के कार्यालयों के सामने धरने पर बैठ गए कि उन्हें पैसे मिलेंगे तभी वे मतदान के लिए जाएंगे।

यह दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए शर्म का दिन था। लेकिन अफसोस की बात है कि पार्टियों ने चुनाव को पैसे का ऐसा खेल बना दिया है कि कोई उससे अछूता नहीं है।

also read : https://jandhara24.com/news/108762/corona-update-today-in-chhattisgarh-the-deepening-crisis-of-corona-has-come-to-the-fore/

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU