(Modi on the path of Nehru) मोदी नेहरू की राह पर

(Modi on the path of Nehru)

डॉ. दिलीप चौबे

(Modi on the path of Nehru) मोदी नेहरू की राह पर

(Modi on the path of Nehru) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विदेश नीति के मामले में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अनुसरण करते दिखाई देते हैं।

मोदी सरकार भले ही घरेलू और विदेश नीति के मामले में पं. नेहरू की सार्वजनिक रूप से आलोचना करती रही है। लेकिन बहुत से मामलों में उन्हीं की नीतियों को नये परिप्रेक्ष्य में आगे बढ़ा रही है।

(Modi on the path of Nehru) दुनिया के विकासशील और कम विकसित देशों के ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन का आयोजन ऐसा ही एक उदाहरण है। करीब 7 दशक पहले पं. नेहरू ने एशिया की एकता को कायम करने के लिए 1955 में इंडोनेशिया के बांडुंग में ऐसे ही सम्मेलन का आयोजन किया था। यह आंदोलन गुटनिरपेक्ष आंदोलन का आधार बना था।

इस सम्मेलन में मिस्र के नेता नासिर और चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने भाग लिया था। लेकिन एशिया के नेता के रूप में भारत और पं. नेहरू उभरे थे। इस सम्मेलन में एशिया ने अमेरिका के नेतृत्व में कायम सुरक्षा गठबंधन का विरोध किया गया था। नेताओं ने एशिया को उप-निवेशवाद और नव-साम्राज्यवाद से पूरी तरह मुक्त करने का बीड़ा उठाया था।

(Modi on the path of Nehru) अमेरिका और पश्चिमी देश बांडुंग सम्मेलन की भावना और प्रस्तावों को असफल बनाने के लिए लामबंद हो गए थे। यह इतिहास की त्रासदी है कि 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के कारण एशिया की एकता का सपना खंडित हो गया।

नरेन्द्र मोदी यूक्रेन युद्ध से दुनिया में पैदा हुई अस्थिरता और आर्थिक संकट के बीच ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं। इसमें 120 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों को निमंतण्रभेजा गया है। सबकी नजर इस बात पर होगी कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस शिखर सम्मेलन में शामिल होते हैं या नहीं।

(Modi on the path of Nehru) यदि वह निमंतण्रस्वीकार करते हैं तो सम्मेलन का महत्त्व और प्रभाव बहुत बढ़ जाएगा। बांडुंग सम्मेलन को लेकर पश्चिमी देशों के कूटनीतिज्ञों ने आलोचना की थी कि यह पूरब को पश्चिम के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास है। ग्लोबल साउथ सम्मेलन के बारे में भी आलोचक कह सकते हैं कि यह दक्षिण (विकासशील और कम विकसित देश) को उत्तर (विकसित देश) के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास है।

अमेरिका और पश्चिमी देश यह चाहेंगे कि इस सम्मेलन में यूक्रेन युद्ध के संबंध में रूस पर दोषारोपण किया जाए। सम्मेलन के मेजबान भारत में यूक्रेन युद्ध के बारे में अभी तक रूस की निंदा नहीं की है। वास्तव में भारत पूरे संकट के लिए अमेरिका और यूरोपीय देशों को कम दोषी नहीं मानता।

(Modi on the path of Nehru) प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर यूक्रेन युद्ध के कारण ग्लोबल साउथ पर पड़ रहे प्रतिकूल असर की चर्चा करते रहे हैं। ऊर्जा, खाद्यान्न और उर्वरक की कीमतों में बढ़ोतरी का सबसे अधिक बुरा असर इन्हीं देशों पर पड़ रहा है। खाद्यान्न कीमतों में बढ़ोतरी और इनकी आपूर्ति में बाधा के कारण अफ्रीकी देशों में भुखमरी का संकट मंडरा रहा है।

अमेरिका और पश्चिमी देशों की प्राथमिकता युद्ध के मैदान में रूस को हराना है। यूक्रेन को अरबों रुपये की आर्थिक सहायता का ‘निवेश’ रूस को कमजोर करने के लिए है। इन देशों को इस बात की कोई चिंता नहीं है कि ग्लोबल साउथ को संकट से कैसे बचाया जाए।

जी-20 के बाली शिखर सम्मेलन के समय से दुनिया में भारत के बढ़ते असर की चर्चा हो रही है। पश्चिमी देशों के नेताओं और मीडिया को भी कहने पर मजबूर होना पड़ा है कि दुनिया में एक नई महाशक्ति का उदय हो गया है। यह नई महाशक्ति भारत है। यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में भारत ने भारी दबाव के बावजूद तटस्थ भूमिका निभाई है।

इस भूमिका को ग्लोबल साउथ में सराहा गया है। यहां तक कि चीन में भी धारणा बन रही है कि भारत उसके खिलाफ अमेरिका की रणनीति का मोहरा नहीं बनेगा। इससे भारत-चीन सीमा पर अनुकूल असर पड़ेगा। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने ग्लोबल साउथ के देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की थी जबकि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने वैक्सीन का अपना जखीरा साझा करने से इनकार कर दिया था।

वैक्सीन कूटनीति ग्लोबल साउथ शिखर वार्ता की सफलता का एक आधार बनेगी। सम्मेलन में यूक्रेन युद्ध को यथाशीघ्र समाप्त करने के लिए रूस और अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिमी देशों पर भी राजनीतिक और नैतिक दबाव डाला जा सकता है।

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