Martyrdom Week : शहीदी सप्ताह की थाह
बस्तर में फिर लाल आतंक सिर उठाने की कोशिशें करने लगा है। शहीदी सप्ताह मनाने तेलंगाना से बड़ी तादाद में नक्सलियों ने बॉर्डर पार कर छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया। यहां 64 फीट उंचा स्मारक बनाया गया।
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10 घंटे तक चले उनके कार्यक्रमों में 12 हजार से अधिक ग्रामीणों ने हिस्सा लिया। इनमें 50 लाख से लेकर 1 करोड़ तक के ईनामी माओवादी लीडर भी शामिल बताए जा रहे हैं।
बस्तर का स्तर नीचे गिराने की फिराक में लगे नक्सली क्या फिर से सिर उठाने लगे हैं ? कहीं ये माओवादी बस्तर में फिर से नश्तर चलाने के लिए तो नहीं इकट्ठे हुए हैं ? क्या हमारा इंटेलिजेंस फेल हो गया है ? ये वो सवाल है जिसका जवाब हर छत्तीसगढ़िया जानना चाहता है।
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सरकार की बेहतरीन नीतियों का फायदा अब धरातल पर दिखाई देने लगा है। बड़ी तादाद में माओवादी अब सरेआम समर्पण करने लगे हैं।
इससे नक्सलियों के माथे पर बल पड़ गए हैं। भोले-भाले आदिवासियों को बरगला कर ये माओवादी पहले अपना उल्लू सीधा किया करते थे।
इस बार भी माओवादी ग्रामीणों की आड़ लेकर खिलवाड़ कर रहे हैं। लोग हमारे इंटेलिजेंस पर सवाल उठा रहे हैं। तो एक बात तो बिल्कुल साफ है कि बस्तर में नक्सलियों का नेटवर्क हमसे ज्यादा तगड़ा है।
उसके पीछे का सबसे अहम कारण है उनकी भाषा। बाहरी राज्यों से आए अफसर, बीएसएफ के जवान हों या फिर पुलिस इनको वहां की स्थानीय भाषा, गोंड़ी या फिर हल्बी की समझ कतई नहीं है।
नक्सलियों का खुफिया सिस्टम इतनी तेजी से काम करता है कि किसी को कानोंकान खबर तक नहीं होती । लगातार बैकफुट पर चले गए नक्सलियों को अब लगने लगा था कि छत्तीसगढ़ उनके हाथ से निकल जाएगा।
ऐसे में वे एक बार अपनी धमक दिखाकर कुछ बड़ा करने की फिराक में होंगे। जब कि असलियत ये भी है कि अब बस्तर में नक्सलवाद आखिरी सांसें गिन रहा है। नक्सलियों को भर्ती करने के लिए छत्तीसगढ़िया नौजवान तक नहीं मिल रहे हैं।
कुछ दिनों पहले ग्रामीणों ने नक्सलियों को सरेआम गांव से बाहर खदेड़ा था। बड़ी तादाद में नक्सलियों के सरेंडर के डर से घबराए माओवादियों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए ऐसा किया है।
इसमें किसी को भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
इसका मतलब ये भी नहीं लगाया जाना चाहिए कि वहां पर तैनात इतने सारे बेहद काबिल अफसर, इतने हाइली ट्रेंड जवान, इतनी सारी व्यवस्थाएं आरती करने के लिए रखी हुई हैं।
अलबत्ता इसके पीछे सुरक्षाबलों की कोई बड़ी रणनीति काम कर रही होगी। इसको वेट एंड वॉच कहा जाता है। तेलंगाना से आए लीडर्स और नक्सलियांे के पैरोकार अपनी सफलता के कितने भी ढोल पीट लें।
वहां मौजूद नक्सलियों की हताशा उनके हाव भाव से साफ- साफ दिखाई दे रही है। हमारे सुरक्षाबलों के जज्बे का खौफ, हमारी सरकार की नीतियों की पीड़ा, सब कुछ दिखाई दे रहा था।
इससे एक बात ये भी सामने आ गई कि छत्तीसगढ़ में माओवाद आखिरी सांसें गिन रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है।