Margins : हाशिये पर हैं मुंशी प्रेमचन्द और किसान

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Margins : चेहरा बदल गया है मगर किसानों का भला नहीं हुआ

Margins :  गोरखपुर .एक सदी पूर्व भारतीय ग्राम समाज को विषय वस्तु बनाकर कथा जगत में अपनी लेखनी से आन्दोलन पैदा करने वाले मुंशी प्रेमचन्द और उनका प्रिय किसान दोनों आज हाशिए पर है। किसान कभी आन्दोलनजीवी नहीं था वह श्रमजीवी था।

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Margins : एक सदी पूर्व मुंशी प्रेमचन्द ने जब गोरखपुर को अपनी रचनाओं की कर्मभूमि बनाया तो उपन्यासों और कहानियों की श्रृखला में उन्होंने किसान को मुख्यधारा में लाकर खडा कर दिया मगर एक सदी बाद पूर्वांचल के साथ-साथ देश में इतना परिवर्तन हो गया कि मुख्यधारा से मुशी प्रेमचन्द भी दूर जा चुके हैं, उनका साहित्य भी किनारे पड गया है और उनका किसान भी अब विखराव का शिकार है।

उस समय सामंतवाद से पीडित और शोषित किसान को साहित्य की विषय वस्तु मुंशी प्रेमचन्द ने बनाया था आज सामन्तवाद की जगह पूंजीवाद ने ली है। शोषण करने वाले का चेहरा बदल गया है मगर किसानों का भला नहीं हुआ है।


केन्द्र सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का कार्यक्रम तैयार किया, किसानों के लिए नये नियम भी बनाये मगर विपक्ष दलों ने इसे काला कानून बता दिया। किसान राजनीति के शिकार हो गये जिसका परिणाम यह हुआ कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गयी एक सार्थक पहल कहीं न कहीं विघ्न की शिकार हो गयी।


मुंशी प्रेमचन्द अपने बाल्यजीवन में अपने पिता के साथ गोरखपुर और बस्ती में रहे तथा फिर अपने कहानी के लेखन की शुरूआत भी यहीं से किया। उन्होंने कहानियों में रूढवादिता को समाप्त कर उसे बागी तेवर दिया। वह अपनी अंतिम कहानी कसन को जहां छोडा था वहीं से फिर प्रगतिशील आन्दोलन का आरम्भ होता है। उन्होंने बहुत से उपन्यास रंगभूमि, सेवा सदन और प्रेम आश्रय आदि कहानियां गोरखपुर में लिखी इसीलिए उनका इस क्षेत्र से विशेष जुडाव था।

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प्रेमचन्द जी जहां निवास करते थे वह स्थान अब यहां प्रेम चन्द पार्क बन गया है जहां पर उनके पुण्य तिथि और जन्मदिन पर साहित्यकारों द्वारा विभिन्न तरह के आयोजन करके उन्हें याद किया जाता है।
गोरखपुर छोडे मुंशी प्रेम चन्द को एक सदी बीत गयी लेकिन उनके उपन्यास और कहानियों में जिस गोरखपुर की झलक आती है वह आज भी कहीं न कहीं इस क्षेत्र में मौजूद है क्योंकि इस क्षेत्र का औद्योगिक विकास बहुत तेजी से नहीं हो सका।

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