Mamta scared ममता डर गईं या कोई रणनीति है?

Mamta scared

अजीत द्विवेदी

Mamta scared ममता डर गईं या कोई रणनीति है?

Mamta scared पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के तेवर नरम पड़ गए हैं। वे भाजपा के खिलाफ बयान अब भी दे रही हैं लेकिन उस तरह से लड़ नहीं रही हैं, जिसके लिए वे जानी जाती हैं। उनकी राजनीति में बदलाव यह आया है कि केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों, सीबीआई और ईडी के दुरुपयोग के खिलाफ लड़ते लड़ते अब वे प्रधानमंत्री को क्लीन चिट देने लगी हैं।

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Mamta scared  वे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की भी तारीफ करने लगी हैं और इतना ही नहीं, जिस कारोबारी के खिलाफ देश का समूचा विपक्ष एकजुट होकर हमला कर रहा है उसे हजारों करोड़ रुपए का काम भी दे रही हैं। तभी सवाल है कि वे केंद्र सरकार की एजेंसियों से डर गई हैं या किसी खास मकसद से उन्होंने अपनी रणनीति बदली है?
यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि ममता बनर्जी ने पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रति नरमी दिखाई। उन्होंने कहा कि आरएसएस में सारे लोग बुरे नहीं हैं, बल्कि बहुत से लोग अच्छे हैं, जो भाजपा की राजनीति को पसंद नहीं करते हैं। अब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति नरमी दिखाई है।

Mamta scared उन्होंने विधानसभा में कहा कि उनको नहीं लग रहा है कि विपक्षी नेताओं के खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर हो रही है। उन्होंने मोदी को इस विवाद से दूर करते हुए कहा कि यह काम अमित शाह का हो सकता है क्योंकि सीबीआई अब प्रधानमंत्री को नहीं, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री को रिपोर्ट करती है। ममता ने कहा कि भाजपा के कुछ नेता अपने स्वार्थ के लिए साजिश रच कर सीबीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं।

Mamta scared यह भी खबर है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने गौतम अडानी की कंपनी अंडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड को पूर्वी मिदनापुर के ताजपुर में डीप सी पोर्ट बनाने का 25 हजार करोड़ रुपए का ठेका दिया है। पिछले दिनों हल्दिया के श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट पर एक डॉक के मेकेनाइजेशन का 298 करोड़ रुपए का एक ठेका भी उनकी कंपनी को मिला था।

Mamta scared ममता की इस राजनीति से दो निष्कर्ष निकलते हैं। पहला और प्रत्यक्ष निष्कर्ष तो यह है कि ममता बनर्जी कुछ राहत हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को विवाद से अलग कर रही हैं। ममता का पूरा परिवार केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में है। उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी से तो ईडी की पूछताछ हो रही है, अभिषेक की पत्नी और ससुराल के कई लोग केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं।

Mamta scared पार्टी के दर्जनों नेताओं के ऊपर सीबीआई और ईडी की जांच की तलवार लटक रही है। ध्यान रहे कांग्रेस और तमाम विपक्षी पार्टियों का हमला प्रधानमंत्री मोदी पर है और उसके बाद अमित शाह निशाने पर हैं। लेकिन ममता ने मोदी को छोड़ कर शाह को निशाना बनाया है और कुछ अज्ञात भाजपा नेताओं पर निशाना साधा है।

Mamta scared ममता के इस बयान का एक दूसरा निष्कर्ष यह भी निकलता है कि वे रणनीति के तहत ऐसे बयान दे रही हैं। वह रणनीति व्यापक हिंदू समाज को यह मैसेज देना है कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ नहीं हैं। ऐसा लग रहा है कि उनको जमीनी फीडबैक मिली है कि मोदी की लोकप्रियता कम नहीं हो रही है और मोदी पर हमला करने से बहुसंख्यक हिंदू समाज नाराज होता है। ऐसा लगता है कि इसी रणनीति के तहत उन्होंने आरएसएस के प्रति भी नरमी दिखाई थी। इसके आगे का काम विपक्षी पार्टियां खुद कर दे रही हैं।

Mamta scared जब ममता बनर्जी ने आरएसएस के प्रति नरमी दिखाई तो कांग्रेस और लेफ्ट के नेताओं ने याद दिलाया कि ममता ने 2003 में आरएसएस के कार्यक्रम में हिस्सा लिया था और उसे देशभक्त संगठन बनाया था। उनके अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहने का मुद्दा भी विपक्ष ने उठाया। कांग्रेस और लेफ्ट के इस प्रचार से ममता का मकसद पूरा हो गया। संघ के स्वंयसेवकों से लेकर हिंदुओं के एक बड़े तबके में यह बात पहुंच गई कि ममता उनकी अपनी हैं और जरूरत पडऩे पर वे संघ व भाजपा के साथ जा सकती हैं।

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Mamta scared इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए ममता ने मोदी के प्रति नरमी दिखाई है। उन्होंने मोदी समर्थकों को यह मैसेज दिया है कि ममता के लिए मोदी अछूत नहीं हैं।

ममता के लिए ऐसा करना इसलिए जरूरी लग रहा है कि क्योंकि देश के मतदाता लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अलग अलग तरीके से मतदान करना सीख गए हैं। वे दोनों चुनावों में अलग अलग पार्टियों को वोट करते हैं। बिहार, झारखंड, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में यह ट्रेंड देखने को मिला है।

Mamta scared इसलिए ममता को अंदेशा है कि विधानसभा में भले उनको छप्पर फाड़ सीटें मिली हैं लेकिन लोकसभा में तस्वीर बदल सकती है। आखिरी 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 18 सीटें जीत ली थीं, जबकि उस समय प्रदेश के मतदाताओं का उतना ध्रुवीकरण भी नहीं हुआ था, जितना अब हो गया है। अगर हालात ऐसे ही रहते हैं तो हैरानी नहीं होगी कि भाजपा पश्चिम बंगाल में फिर बहुत अच्छा प्रदर्शन करे।

Mamta scared तभी ममता बनर्जी हिंदू मतदाताओं को साधने वाले दांव चल रही हैं। उनको पता है कि कांग्रेस और लेफ्ट का अस्तित्व काफी हद तक खत्म हो चुका है इसलिए मुस्लिम मतदाताओं के सामने तृणमूल के अलावा कोई विकल्प नहीं है। ममता चाहे संघ की तारीफ करें या मोदी की, मुस्लिम उन्हीं को वोट देंगे। इसलिए वे बहुसंख्यक हिंदू वोट की चिंता में हैं। आने वाले दिनों में वे बंगाली अस्मिता का दांव भी चलेंगी और पहले बांग्ला प्रधानमंत्री की उम्मीद भी जगाएंगी।

Mamta scared इस तरह वे एक तीर से दो शिकार करने का प्रयास कर रही हैं। वे अपनी पार्टी के नेताओं और परिवार के सदस्यों को केंद्रीय एजेंसियों से बचाने की कोशिश कर रही हैं तो दूसरी ओर बहुसंख्यक हिंदुओं को मैसेज दे रही हैं कि वे हिंदू विरोधी नहीं हैं। यह काम अपनी तरह से उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने भी किया है। केंद्रीय एजेंसियों की चिंता में उन्होंने भी लडऩे-भिडऩे वाले तेवर छोड़ कर भाजपा के अनुकूल राजनीति की। उत्तर प्रदेश में वे भाजपा के बहुत काम आईं।

उन्होंने समाजवादी पार्टी या कांग्रेस से तालमेल नहीं किया और प्रदेश की सभी सीटों पर इस तरह से उम्मीदवार उतारे, जिससे भाजपा विरोधी वोट बंट गए। इसका बड़ा फायदा भाजपा को हुआ।
हालांकि उनकी रणनीति ममता बनर्जी की तरह नहीं है क्योंकि मायावती ने अपना नुकसान करके भाजपा को फायदा पहुंचाया है, जबकि ममता अपने फायदे के लिए यह दांव चल रही हैं। कई बरस तक अरविंद केजरीवाल ने इस तरह की राजनीति की थी। वे नरेंद्र मोदी पर निशाना नहीं साधते थे।

उनको पता था कि हिंदुओं का बड़ा तबका सबके बावजूद मोदी का प्रशंसक है। उसे ध्यान में रख कर केजरीवाल ने 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव तक राजनीति की और उसके बाद मोदी विरोध का तेवर अख्तियार किया। बहरहाल, चाहे ममता हों, मायावती हों या केजरीवाल हों, जब चुनाव जीतना नेताओं का एकमात्र मकसद बन जाता है तो वैचारिक प्रतिबद्धता की उम्मीद नहीं जा सकती है। दुर्भाग्य यह है कि इतने समझौते के बावजूद भी चुनाव जीतने की गारंटी नहीं होती है।

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