Mahua : महुआ धड़ाम, समर्थन मूल्य से 1100 रुपए नीचे

Mahua :

राजकुमार मल

Mahua : 50 हजार टन का स्टॉक, राह देख रहा मांग की

Mahua : भाटापारा- समर्थन मूल्य से काफी नीचे चल रहे महुआ में और टूट के प्रबल आसार बन रहे हैं। उम्मीद थी निर्यात ऑर्डर से, लेकिन अब वह भी हताश ही कर रही है। घरेलू मांग वैसे भी बेहद कमजोर है। ऐसे में बंपर स्टॉक गले की फांस बनता नजर आ रहा है।

Mahua : मौसम का पूरा साथ मिला। सरकार की योजना ने भी संग्रहण को बढ़ाने में खूब मदद की। क्वालिटी बनाए रखने की गरज से नेट कलेक्शन जैसी परिष्कृत तकनीक का सहारा लिया गया।

यह सब ऐसे मजबूत कारक रहे, जिसने संग्रहण को लेकर रुझान बढ़ाया। अंत में बारी थी समर्थन मूल्य पर महुआ खरीदी की।

भाव भी अच्छा था, इसलिए छत्तीसगढ़ में लगभग 50000 टन महुआ का संग्रहण किया जा सका। अब सभी कवायद पर पानी फिर रहा है क्योंकि मांग लगातार नीचे आ रही है और भाव निरंतर टूट रहें हैं। आसार और गिरावट के बने हुए हैं।

समर्थन मूल्य से नीचे

Mahua : वनोपज में महुआ का बेहतर भविष्य को देखते हुए सरकार ने इस बार समर्थन मूल्य पर महुआ की खरीदी की थी। 3300 रुपए क्विंटल का भाव अच्छा था।

इसलिए ओपन मार्केट ने भी इसी के आसपास की कीमत पर खरीदी की थी लेकिन अपेक्षित मांग के अभाव के बीच भाव अब 2200 से 2500 रुपए क्विंटल पर बोला जा रहा है।

इसके बाद भी मांग नहीं है। अब लगभग 50 हजार टन का स्टॉक गले की फांस बन चुका है।

उपभोक्ता राज्यों की खरीदी बंद

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Mahua :  बिहार और झारखंड हमेशा से महुआ के बड़े खरीददार प्रांत रहे हैं लेकिन इन राज्यों से मांग जरा भी नहीं है।

रही-सही कसर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और उड़ीसा जैसे राज्य पूरे कर रहे हैं, जहां का महुआ छत्तीसगढ़ की तुलना में 100 से 200 रुपए क्विंटल नीचे है।

स्थिति जैसी बनती नजर आती है उसे देखकर ओपन मार्केट, भाव में और गिरावट की धारणा व्यक्त कर रहा है।

बनती हैं यह सामग्रियां

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महुआ से शराब बनाने का चलन पहले से रहा है लेकिन अनुसंधान में सफलता के बाद जूस, चॉकलेट, जैम, कुकीज और लड्डू भी बनाया और बेचा जा रहा है।

महामारी के दौर में इससे सैनिटाइजर भी बनाया गया। जशपुर में सैनिटाइजर बनाने की यूनिट भी संचालन में है लेकिन वहां से भी मांग नहीं निकल रही है।

इसलिए ओपन मार्केट के सामने रिकॉर्ड भंडारण मुसीबत बनी हुई है, तो लगाई गई पूंजी की वापसी भी अनिश्चितता के भंवर में है।

रिकॉर्ड फसल और संग्रहण। निर्यात सौदा में मात्रा का कम होना और घरेलू मांग शून्य होने की वजह से महुआ की कीमत टूट रही है। धारणा और मंदी के बन रहें हैं।
– सुभाष अग्रवाल, संचालक, एसपी इंडस्ट्रीज, रायपुर

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