(Jandhara Multimedia) हर दौर में बदलते हैं प्रेम के मायने

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(Jandhara Multimedia) प्रेम का पर्याय है स्त्री विषय पर टॉक शो का आयोजन

एमिटी यूनिवर्सिटी ऑडिटोरियम में जनधारा मल्टीमीडिया का कार्यक्रम

(Jandhara Multimedia) रायपुर। जनधारा मल्टीमीडिया ग्रुप का टीवी 27 की और से प्रेम का पर्याय है स्त्री विषय पर टॉक शो का आयोजन किया गया। कार्यक्रम एमिटी यूनिवर्सिटी में आयोजित किया गया था। प्रेम का पर्याय है स्त्री विषय पर वक्ताओं ने अपनी बात रखी।

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वक्ताओं ने कहा प्रेम किसी से भी हो सकता है लेकिन प्रेम को प्रेम के नजरिए से देखा जाना चाहिए। प्रेम में किसी प्रकार से बंधन नहीं होना चाहिए, न ही प्रेम करने वालों के साथ तिरस्कार होना चाहिए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्मश्री शमशाद बेगम रहीं, वहीं वक्ता के रूप में कहानिकार जया जधवानी, नेहा श्रीवास्तव, फैशन डिजाइनर सुमनदीप कौर, पुलिस अफसर राजश्री मिश्रा मौजूद रहे।

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(Jandhara Multimedia) जनधारा मल्टीमीडिया ग्रुप के प्रधान संपादक सुभास मिश्र, ग्रुप एडिटर अभय किशोर, डायरेक्टर सुरुचि मिश्रा धनेरवाल, सीईओ सौरभ मिश्र, मैनेजिंग एडिटर आशीष तिवारी, एमिटी यूनिवर्सिटी के पब्लिक रिलेशन एंड लाइजनिंग डायरेक्टर डॉ शिवम अरुण पटनायक, प्राध्यापक व छात्रों के साथ जनधारा मल्टीमीडिया के ग्रुप मेंबर मौजूद रहे।

(Jandhara Multimedia) इस अवसर पर प्रधान संपादक सुभाष मिश्र ने कहा प्रेम का पर्याय स्त्री है पर जब भी मैं कुछ सोचता हूं तो मेरे मन मस्तिष्क में मेरी मां नजर आती है क्योंकि उन्ही से हमारा अस्तित्व है। स्त्री को हम इग्नोर करते हैं यह घृणा करते हैं क्योंकि हमारा समाज और लोग ऐसे ही हैं। उन्होंने कहा कि हमारे समाज में लोग महिलाओं के बारे में बहुत बातचीत करते हैं लेकिन जब बराबरी की बात होती है तो हक देने से मुकर जाते हैं। वहीं डॉ शिवम पटनायक ने कहा कि एमिटी यूनिवर्सिटी में पहली बार ऐसा संयोग है की जब मंच पर इतने सारी स्त्रियां एक साथ बैठी हों और कार्यक्रम को लीड कर रही हो।

उन्होंने कहा की महिलाएं समाज में प्यार और ममता की मूर्ति होती है। चाहे वह मां, बीबी, बहन, या फिर जिस रूप में उनको आप देखते हों सभी में स्त्री ममता की मूर्ति ही दिखेगी। लेकिन इस दौर में स्त्री को हक केवल इसलिए दिया जा रहा है जिससे पुरुषों को लाभ मिले। हम हक तो देते हैं पर दिल कुछ और कहता है।


(Jandhara Multimedia) इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शमशाद बेगम ने कहा ने कहा कि पहले के प्रेम और अभी के प्रेम में बहुत बदलाव आया है। प्रेम पर बहुत सारी फिल्म बनी हैं जैसे लैला मजनू, हीर रांझा जो प्रेम को समर्पित करने वाली फिल्में थी लेकिन अभी के दौर में प्रेम के मायने ही बदल गए हैं।

उन्होंने कहा की प्रेम तो ढाई आखर का है लेकिन उसके मायने बहुत वृहद है। प्रेम में सिर्फ पाना नहीं होता है प्रेम त्याग को कहते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेम में केवल पाना नहीं होता है प्रेम का मतलब त्याग भी होता है। लेकिन आज के दौर में जो प्रेम के मायने हैं वह बदल गया है। इसमें हम खोना नहीं चाहते सिर्फ पाना चाहते हैं। इसमें त्याग की किसी प्रकार की भावना नहीं है। इस समय जो सुख शांति और धन दौलत उसी को हम प्रेम कहते हैं।

समर्पण का नाम है प्रेम 

(Jandhara Multimedia) शमशाद बेगम ने कहा हमने कई साल पहले खुद प्रेम विवाह किया, लेकिन अभी तक किसी प्रकार से हीन भावना नहीं आई क्योंकि हमारे अंदर समर्पण की भावना है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार हम प्रेम करते हैं वह केवल महिलाओं में ही है क्योंकि पुरुष कभी मां नहीं बन सकते हैं। जो भाव महिलाओं में होता है वह पुरुषों में कभी नहीं हो सकता, क्योंकि हम त्याग और कई चीजों के साथ समझौता करके चल सकते हैं और हम रिश्ते भी निभाना जानते हैं।

महिलाओं के भोलेपन का फायदा उठाते हैं पुरुष

(Jandhara Multimedia) उन्होंने कहा कि महिलाओं के भोलेपन का फायदा पुरुष उठाते हैं। कहीं ना कहीं जिस प्रकार से अभी वर्तमान में महिलाओं को आगे करके पुरुष उन का फायदा उठाते हैं। क्योंकि अभी देखे कि पंचायती राज मुखिया तो महिलाएं होती हैं लेकिन प्रतिनिधित्व पुरुष ही करते हैं। वही मामलों में पुरुष आगे आते हैं जबकि अस्तित्व तो महिलाओं का होता है।

प्यार के लिए तरसता है ट्रांसजेंडर समुदाय

जया ने कहा की ट्रांसजेंडर समुदाय प्यार के लिए तरसता रहता है। कहीं न कहीं समाज से परिवार से उतारा जाता है या वह प्यार नहीं दे पाते हैं जो वह चाहते हैं। जिस प्रकार से प्यासा एक बूंद पानी के लिए तरसता है इस समुदाय के बारे में लोग बात तो करते हैं पर उनको स्वीकारने में आज भी हिचकते हैं।

बच्चों पर परिवार का कंट्रोल है बहुत ज्यादा  

(Jandhara Multimedia) जया ने कहा हमारे हिंदुस्तान में बच्चों पर परिवार का कंट्रोल बहुत ज्यादा होता है लेकिन विदेशों में ऐसा नहीं है। वह स्वतंत्र होते हैं जिंदगी में और सोचने के लिए लेकिन जिस प्रकार से हमारे देश में संकुचित मानसिकता के लोग हैं या फिर जो प्यार करते हैं उन पर कहीं न कहीं लोग हावी होते हैं। वह चाहते हैं कि हम उसको पा लें। अगर नहीं पाते हैं तो उसे नष्ट कर देते हैं। उन्होंने कहा प्रेम कई प्रकार के होते हैं लेकिन हमें खुद समझना पड़ेगा कि क्या अच्छे हैं, कौन सा प्रेम हमको चाहिए यह डिसाइड करना पड़ेगा।

समय-समय पर प्रेम के मायने जाते हैं बदल

 


नेहा ने कहा जिस प्रकार से अभी प्यार के मायने हैं लोग समझते हैं कि अगर वह वैलेंटाइन डे पर हमें डेट दिया या रोज दिया तो यह काफी है। लेकिन सभी के लिए ये सही नहीं है। वहीं इसी के मायने 10 साल के बाद बदल जाएंगे। हर एक मोड़ पर प्रेम के मायने बदलते रहते हैं। उन्होंने सिनेमा पर बात करते हुए कहा कि जिस प्रकार से भारतीय सिनेमा मेल ओरिएंटेड फिल्म होती है। इसमें पुरुष पहले महिलाएं बाद में होती है।

स्त्री हर चीज को मल्टीप्लाई में लौटाती है

(Jandhara Multimedia) सुमनदीप ने कहा की स्त्री हर चीज को मल्टीप्लाई में लौटाती है। आप स्त्री को जो भी दो उसे मल्टीप्लाई में देती है। आप अगर प्यार देते है तो वह दुगना प्यार देती है, अगर आप उसे मकान दीजिए तो वह घर बना कर देती हैं। जिस प्रकार से दो प्यार देते हैं उसे वह दो गुना देती है। उन्होंने कहा इस समाज में लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है

प्रेम बंधन का नाम नहीं 

राजश्री ने कहा जहां प्रेम है वहां कोई घृणा नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रेम में किसी प्रकार से बंधन नहीं होना चाहिए क्योंकि प्रेम वही है जो जिस प्रकार से है उसको उसी रूप में एक्सेप्ट करना होता है। प्रेम केवल प्रेमिका से ही नहीं होता है। प्रेम भाई-बहन, मां-बाप आसपास के लोगों से भी हो सकता है। उन्होंने कहा प्रेम के लिए जरूरी नहीं है की एक दूसरे से मिलें। एक दूसरे के अंदर झांकें, प्रेम इससे परे है।

(Jandhara Multimedia) जो इसको समझ ले वही प्रेम है। उन्होंने कहा की सभी के अपने परिवार में अनुकूल वातावरण बनाना जरूरी है ताकि वह हर चीज आपसे शेयर करें। उन्होंने कहा की वर्तमान में ज्यादातर मामले ऐसे ही आते हैं जो परिवार और बच्चों में बिल्कुल तालमेल नहीं होता है। लेकिन मैं आज के युवाओं और पेरेंट्स दोनों को यही राय देती हूं की आपस ने सामंजस्य बनाए रखे।
कार्यक्रम का आभार ज्ञापन ग्रुप एडिटर अभय किशोर ने किया। उन्होंने सभी का आभार ज्ञापित करते हुआ कहा की हमारे समाज में स्त्रियों का बहुत ही ऊंचा ओहदा है। जब हम स्त्री की बात करते हैं तो शक्ति की भी बात होती है क्योंकि स्त्रियां शक्ति की प्रतीक होती हैं।

म्यूजिक ने बांधा शमां

बेखौफ आजाद रहना है मुझे.. गीत गाकर कर्णिका ने शमा ही बांध दिया। हाल में बैठे सभी लोग खूब झूमे और जमकर तालियां बजाईं। वहीं शमशाद बेगम ने एक प्यार का नगमा है गीत सुना कर महफिल को प्रेममय कर दिया।

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