International Monetary Fund : विश्व संस्थाएं अच्छा कहेंगी तभी मानेंगे

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अजीत द्विवेदी

International Monetary Fund :भारत सरकार की बहुत अच्छी आर्थिक नीतियों के कारण देश आर्थिक मंदी के चपेट से दूर है

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International Monetary Fund : विश्व संस्थाएं अच्छा कहेंगी तभी मानेंगे

International Monetary Fund : भारत में इन दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ की जय जयकार हो रही है। आईएमएफ का मतलब नहीं जानने वाले भी सोशल मीडिया पर इसकी रिपोर्ट शेयर कर रहे हैं और बता रहे हैं कि कैसे भारत सरकार की बहुत अच्छी आर्थिक नीतियों के कारण देश आर्थिक मंदी के चपेट में आने से बच रहा है।

International Monetary Fund :  असल में आईएमएफ ने एक सूची जारी की है, जिसमें बताया है कि किस देश में मंदी के सबसे ज्यादा या कम असर की संभावना है। उसमें उसने भारत को सबसे नीचे रखा और भारत में मंदी के असर की शून्य संभावना जताई है। इस रिपोर्ट को लेकर एक किस्म का यूफोरिया देश में बना हुआ है।
सोशल मीडिया के साथ साथ इलेक्ट्रोनिक मीडिया में पाठशाला लगाने वाले पेन-पेंसिल लेकर समझा रहे हैं कि भारत की आर्थिक नीतियां कितनी अच्छी हैं, जिसकी आईएमएफ ने भी तारीफ की है।

International Monetary Fund : आईएमएफ की रिपोर्ट के हवाले तमाम न्यूज एंकर और साइबर सोल्जर उन लोगों की धुलाई कर रहे हैं, जो देश की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते रहते हैं। हालांकि यह कोई नहीं बता रहा है कि 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी का भी भारत पर कोई असर नहीं हुआ था।


International Monetary Fund : बहरहाल, एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ने एक सकारात्मक बात कही और उसे लेकर पूरा देश बावला हो गया। इससे पहले एक दूसरी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी वर्ल्ड बैंक ने पिछले साल बताया कि कारोबार सुगमता की वैश्विक सूची में भारत की रैंकिंग में 23 स्थान का सुधार हुआ है। इसका जिक्र हर जगह सरकार के मुखिया से लेकर छोटे-बड़े सारे नेता करते हैं। हालांकि विश्व बैंक ने खुद ही कारोबार सुगमता रिपोर्ट पर रोक लगाने की पहल की है क्योंकि दो साल की रिपोर्ट में पैसे लेकर गड़बड़ी करने के आरोप पाए गए हैं। इसके अलावा एक तीसरी रिपोर्ट अमेरिका की एक कंपनी ‘मॉर्निंग कंसल्ट’ की है, जिसमें बताया गया कि 71 फीसदी एप्रूवल रेटिंग के साथ नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं।

International Monetary Fund : इस एजेंसी के मुताबिक दूसरे सबसे लोकप्रिय नेता मेक्सिको के एंड्रेस मैनुएल लोपेज ओब्राडोर और तीसरे सबसे लोकप्रिय इटली के मारियो द्रागी हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर भारत में कहा जाता है कि हमारे प्रधानमंत्री दुनिया में सबसे लोकप्रिय है और अमेरिका, चीन व रूस के राष्ट्रपतियों से ऊपर हैं। हालांकि इस लिहाज से तो मेक्सिको और इटली के नेता भी अमेरिका, रूस और चीन के राष्ट्रपतियों से बड़े हुए! लेकिन इतनी तार्किकता और समझदारी होती तो बात ही क्या थी!

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International Monetary Fund : विश्व संस्थाएं अच्छा कहेंगी तभी मानेंगे

International Monetary Fund : इन तीन के अलावा किसी और अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की रिपोर्ट ध्यान में नहीं आ रही है, जिसमें भारत को ऊंची रेटिंग मिली हो या भारत के बारे में सकारात्मक कुछ कहा गया हो या रेटिंग में सुधार दिखाई दिया हो। बाकी हर जगह रेटिंग गिरती ही जा रही है। लेकिन ऐसी सारी रिपोर्ट्स को हम लोग खारिज कर देते हैं। ऐसी कोई रिपोर्ट हम मानते ही नहीं हैं, जिसमें भारत के बारे में अच्छा नहीं कहा गया हो। जिसमें अच्छा कहा गया है उसे मानेंगे और उसका प्रचार भी करेंगे लेकिन जिसमें अच्छा नहीं कहा गया है उसे खारिज करेंगे और उस एजेंसी की साख पर भी सवाल उठाएंगे, भले वह कितनी भी प्रतिष्ठित एजेंसी क्यों न हो।

International Monetary Fund : सोचें, एक तकनीक की कंपनी डिलॉयट के बनाए ‘मॉर्निंग कंसल्ट’ की रिपोर्ट पर हमारे यहां भरोसा किया जाता है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसियों या ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’ या ‘टाइम’, ‘इकोनॉमिस्ट’ की रिपोर्ट को खारिज किया जाता है।

International Monetary Fund : यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम यानी यूएनडीपी की ओर से बनाए जाने वाले मानव विकास सूचकांक में दुनिया के 189 देशों की सूची में भारत 131वें स्थान है। जर्मनी की एक संस्था ‘कन्सर्न वर्ल्डवाइड’ की ओर से बनाए जाने वाले वैश्विक भूख सूचकांक में दुनिया के 116 देशों की सूची में भारत 101वें स्थान पर है। ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की ओर से बनाए जाने वाले प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में दुनिया के 180 देशों की सूची में भारत 150वें स्थान पर है। हर साल इसमें गिरावट आ रही है।

International Monetary Fund : स्वीडन के संस्था वी-डेम की डेमोक्रेसी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 179 देशों की सूची में भारत 93वें स्थान पर है। इसमें भारत को इलेक्टेड ऑटोक्रेसी यानी निर्वाचित निरकुंशता वाला देश कहा गया है और इलेक्टेड ऑटोक्रेसी वाले दुनिया के 10 शीर्ष देशों में रखा गया है। डेमोक्रेसी को लेकर एक दूसरी रिपोर्ट ब्रिटिश पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ से जुड़ी इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट तैयार करती है। इसमें भारत 167 देशों की सूची में 46वें स्थान पर है।

International Monetary Fund : इसने भारत को फ्लॉड डेमोक्रेसी यानी खामियों वाले लोकतंत्र की सूची में रखा है। भारत में पिछले आठ साल से न खाऊंगा, न खाने दूंगा की सरकार चल रही है इसके बावजूद ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के वैश्विक भ्रष्टाचार सूचकांक में 180 देशों की सूची में भारत 85वें स्थान पर है। ह्यूमन फ्रीडम इंडेक्स में भारत 111वें स्थान पर है। धार्मिक स्वतंत्रता पर नजर रखने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी ने भारत को दस सर्वाधिक चिंता वाले देशों की सूची में चौथे स्थान पर रखा है। म्यांमार, चीन और इरिट्रिया के बाद भारत है और ईरान का नंबर उसके बाद आता है।

International Monetary Fund : दुनिया की कई और प्रतिष्ठित संस्थाएं इस किस्म की रिपोर्ट्स तैयार करती हैं, जिनमें भारत की रैंकिंग बहुत नीचे है। कई बार तो भारत लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों से प्रतिस्पर्धा करता दिखता है। एशिया में ही कई देश रैंकिंग में भारत से ऊपर होते हैं। लेकिन ऐसी हर रिपोर्ट को हमलोग खारिज कर देते हैं। इधर-उधर की वैश्विक संस्थाओं से मिले तमगे को सीने पर लगा कर घूमने वाली कौम प्रतिष्ठित संस्थाओं की रिपोर्ट से सबक लेने और सुधार के प्रयास करने की बजाय उसकी साख पर सवाल उठाते हुए रिपोर्ट को खारिज कर देती है।

International Monetary Fund : ऐसी हर रिपोर्ट के खिलाफ बाकायदा अभियान छेड़ा जाता है। इन संस्थाओं को भारत विरोधी करार दिया जाता है और किसी न किसी तरह से इनकी रिपोर्ट को दबा दिया जाता है। ध्यान रहे दुनिया की अनेक प्रतिष्ठित संस्थाएं भारत की अर्थव्यवस्था से लेकर लोकतंत्र की स्थिति और शिक्षा के स्तर से लेकर भूख, कुपोषण और मानव विकास की स्थिति के बारे में आगाह कर रही हैं।

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International Monetary Fund : अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं मानवाधिकारों की स्थिति और प्रेस की आजादी में लगातार आ रही गिरावट की ओर ध्यान दिला रही हैं। लेकिन हम भारत के लोग इसे मान कर राजी नहीं है क्योंकि हमलोगों को हर दिन व्हाट्सऐप फॉरवर्ड के जरिए और प्रतिबद्ध मीडिया के समर्पित एंकर्स की ओर से बताया जाता है कि भारत विश्व गुरू बन गया है या उसकी दहलीज पर खड़ा है। सच को ठुकरा कर झूठ को गले लगाने की यह सोच आत्मघाती साबित हो सकती है।

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