Human right आज की जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से मानव अधिकार : चुनौती और संभावनाएं

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Human right आज की जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से मानव अधिकार: चुनौती और संभावनाएं

Human right 20वीं सदी दो विश्व युद्धा समेत कई भीषण युद्धों का गवाह रहा है, मनुष्य जाति द्वारा स्वयं अपना संहार करने और मानव अधिकारों के घोर उल्लंघन से त्रस्त होकर विश्व समुदाय ने इस दिशा में सोचना शुरू किया। संयुक्त राष्ट्र संघ घोषणा-पत्र इसी का परिणाम था जिस पर 26 जून 1945 को भारत समेत पचास देशों ने हस्ताक्षर किए और संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र में सात स्थानों पर मानव अधिकारों का उल्लेख किया गया है जो यह दर्शाता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों में मानव अधिकारों के परिरक्षण एवं संविधान के प्रति गहरी निष्ठा थी।

Human right संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र में आने वाली पीढ़ियों को आत्मसंहार से बचाने की आशा व्यक्त की गई है। इसके लिए उसमें मानव परिवार के सभी सदस्यों के समान एवं अदेय अधिकारों और उनकी सहज गरिमा की उद्घोषणा की गई है. चाहे वे सदस्य बड़े या छोटे, भले या बुरे, अमीर या गरीब, बुद्धिमान या मूर्ख हो और भले ही उनका जन्म, कहीं भी हुआ हो तथा उनकी नस्ल, हैसियत, वर्ण, लिंग, भाषा, पंथ या राजनैतिक अथवा अन्य मत कुछ भी हो। संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणापत्र के अनुच्छेद 55 के अनुसार यह अपेक्षा की गई है कि संयुक्त राष्ट्र संघ नस्ल, लिंग, भाषा या पथ के आधार पर बिना भेदभाव किए मानव अधिकारों की रक्षा करेगा.

Human right विश्व मानवाधिकार दिवस प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मनाया जाता है। 1948 में 10 दिसंबर के दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी किया था तभी से प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। मानवाधिकार घोषणा पत्र में न्याय, शांति और स्वतंत्रता की बुनियाद के रूप में समाज के सभी वर्गों को सम्मान और बराबरी का अधिकार दिए जाने की बात कही गई थी। मानव अधिकार वे अधिकार है जो किसी भी व्यक्ति के लिए सामान्य रूप से जीवन बिताने एवं उसके अस्तित्व के लिए आवश्यक है।

Human right मानवाधिकारों को सबसे ज्यादा चुनौती गरीबी से मिल रही है । किसी भी मानव के जीवन के लिए सबसे आवश्यक है भोजन, लेकिन दुर्भाग्य है कि आज भी दुनिया में लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें भरपेट भोजन भी नहीं मिल पा रहा है. हर रोज कई लोग भूख से दम तोड़ दे रहे हैं, ऐसे हम मानव अधिकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती गरीबी बन जाती है, क्योंकि गरीब व्यक्ति भोजन के लिए संघर्ष करता ही है, इसके अलावा शिक्षा, दवा सुरक्षा जैसी कई बुनियादी अधिकार उसे नहीं मिल पा रहा है.

Human right  भूख और गरीबी से लोगों के जीने का अधिकार खतरे में पड़ जाता है तो अन्य मानवाधिकारों, जैसे- समानता, विचार अभिव्यक्ति, धार्मिक स्वतंत्रता आदि के बारे में बातें करना बेमानी है । बाल मजदूरी, महिलाओं का यौन शोषण, धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, जातिगत भेद-भाव, लूट-पाट, बलात्कार आदि सभी बातें मानवाधिकारों के खिलाफ जाती हैं।

Human right  भारत ने 1993 में मानवाधिकार आयोग का गठन कर इसे एक कानून के रूप में लागू किया। मानव अधिकार से तात्पर्य उन सभी अधिकारों से है जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। यह सभी अधिकार भारतीय संविधान के भाग-तीन में मूलभूत अधिकारों के नाम से वर्णित किए गए हैं। इस तरह कह सकते हैं कि मानव जाति के विकास का मूल अधिकार ही मानव अधिकार है। मानवअधिकारों के विश्वव्यापी घोषणा पत्र में नागरिक, राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक तथा सांस्कृतिक अधिकाररों हेतु 30 अनुच्छेद हैं. ऐसे सभी अधिकार जो व्यक्ति के जीवन स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हैं भारतीय संविधान के मूलभूत अधिकारों के रूप में वर्णित है.

यूएन प्रमुख का मानना है कि जलवायु संकट, मानवाधिकारों का भी संकट है.

जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्रकृति स्वास्थ्य से जुड़े संकटों से मानवाधिकारों के लिये भी चुनौती पैदा हो रही है. बाढ़, सूखे और बढ़ते समुद्री जलस्तर से व्यापक मानवीय विनाश होने, भोजन की क़िल्लत होने और प्रवासन की आशंका है. उन्होंने इस चुनौती से निपटने में युवजन, महिलाओं, लघु द्वीपीय देशों और आदिवासी समुदायों के प्रयासों का स्वागत किया और कहा कि यूएन उनके साथ खड़ा है. इस तरह मानवअधिकारों की राह में कई चुनौतियां है, लेकिन उम्मीद कायम है.

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