How do unions win from power : सत्ता से कैसे जीते संघ?

How do unions win from power :

हरिशंकर व्यास

How do unions win from power : सत्ता से कैसे जीते संघ?

How do unions win from power :
How do unions win from power : सत्ता से कैसे जीते संघ?

How do unions win from power : मुझे संघ परिवार, उनके प्रचारकों, उनके जमीनी पन्ना प्रमुखों, मजदूर-किसान-स्वदेशी और सरस्वती स्कूल जैसे तमाम सहयोगी संगठनों, नार्थ-पूर्व से लेकर केरल तक में काम करने वाले निष्ठावान स्वंयसेवकों से सहानुभूति है।

मेरी इस बात पर आप हैरान हो सकते है। पूछ सकते है सब तो सत्ता की मलाई खा रहे है। संघ प्रुखख जेड केटेगरी की सुरक्षा में घूम रहे है। आलीशान दफ्तर बन रहे है।

How do unions win from power :  जो कभी चना-मूंगफली खाते थे। रेल से आते-जाते थे वे काजू-बादाम खा रहे है,हवाई जहाज से प्रवास कर रहे है। वे न तो बेचारे है और न बिना सत्ता के है। चेहरे ललाई लिए हो गए है। मतलब सत्ता दरवाजे की दरबान है तो सत्ता से जीतने के जुमले की क्या तुक?

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How do unions win from power : सत्ता से कैसे जीते संघ?

तब जरा नीतिन गडकरी पर विचार करे। छोड़े लालकृष्ण आडवाणी, डा मुरलीमनोहर जोशी जैसे बुढ़े चेहरों और तोगडिया, गोविंदाचार्य, संजय जोशी जैसे बाहर हुए प्रचारकों पर। भूल जाए स्वदेशी आंदोलन, मजदूर संघ, किसान संघ, एबीवीपी आदि संगठनों में खपने वाले प्रचारकों-स्वंयसेवकों।

भूल जाए नार्थ- ईस्ट में संघ -भाजपा के उन प्रचारों, नेताओं, कार्कर्ताओं को जो हेमंता बिस्वा शर्मा जैसे कांग्रेसियों से लडते हुए भगवा झंड़ा उठाए हुए थे। इन सबकी जगह इनके प्रतीक और मोदी-शाह के यहां मोहन भागवत के स्वंयसेवक नितिन गडकरी पर विचार करें।

How do unions win from power : ईमानदारी से विचार करें कि गडकरी या भागवत अपने आईडिया ऑफ इंडिया की राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक सोच में देश और उसका शासन चलता हुआ समझ रहे है? मोदी की रीति-नीति से क्या खुश होंगे?

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How do unions win from power : सत्ता से कैसे जीते संघ?

How do unions win from power : मोहन भागवत ने देश की चिंता में आरक्षण, स्वदेशी, अखंड भारत, हिंदू-मुस्लिम मुद्दे पर जो बोला, क्या उस पर इंच भर भी मोदी-शाह ने काम किया? फालतू बात है कि राम मंदिर बना दिया। काशी-मथुरा-अयोध्या और धारा-370 खत्म करने के काम से संघ का सपना साकार हुआ।

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इन बातों का जीरो अर्थ है। इसलिए क्योंकि पहली बात हेडगेवार, गोलवलकर, देवरस, मोहन भागवत सबकी कल्पना में पहला मकसद था हिंदुओं को संगठित करना। फिर हिंदुओं के देश को सावरकर के सियासी हिंदू दर्शन अनुसार आधुनिक, शक्तिशाली, वैसा ही ठोस राष्ट्रवादी बनाना था जैसे अमेरिका, जर्मनी, जापान, इजराइल बने है।

How do unions win from power : इस्लाम की धार्मिक कट्टरता के चिंता में ये लाठी लिए बड़े हुए लेकिन हिंदू उन जैसा कट्टर, अंधविश्वासी, काले जादू, टोने-टोटकों और धर्म के दिखावे में जीने वाले भक्त, मुर्ख बने ये इस आईडिया का न उद्देश्य था और न रोडमैप। ऐसा किसी भी हिंदू विचारक (आर्यसमाजी से लेकर मालवीय, सावरकर, करपात्री आदि) ने नहीं कहा कि हिंदू को बुद्धीमान और काबिल, सच्चा बनाने के बजाय उसे झूठे प्रोपेगेंडा से भक्त तथा मूर्ख बनाए। हिंदुओं को वैसा ही बनाए जैसे मौलाना, इस्लामी खलीफा और तानाशाह मुसलमानों को बनाते है।

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How do unions win from power : सत्ता से कैसे जीते संघ?

How do unions win from power : मैं भटक गया हूं। नितिन गडक़री पर लौटे। वे सावरकर, देवरस परंपरा के स्वंयसेवक है। काबिल-बुद्धीवादी, पुरर्षाथी और खरा सच बोलने वाले। छली-कपटी झूठे नहीं। डरपोक नहीं बल्कि मर्द। समाज को बांटने वाले नहीं जोडने वाले। रीढ की हड्डी के साथ सीधे खड़े हो कर काम करने वाले।

कैबिनेट में अपनी बात बेबाक रखने वाले। स्वदेशी की जिद्द के साथ धन्नासेठों की सुनते हुए भी लेकिन दायरे में बांधे रखते हुए। जमीनी राजनीति से उठे हुए और जमात में मतलब संघ परिवार के प्रचारको, स्वंयसेवको, हिंदू-मुस्लिम सभी नागरिकों के लिए दरवाजे खुले रखने वाले। जितना संभव हो सके सबके लिए काम करने वाले।

How do unions win from power : कहते है पिछले आठ सालों में संघ की संस्थाओं के काम, इमारतों से लेकर उनकी व्यवस्थाओं में सहयोग करने में नितिन गडकरी ने जिस सहज भाव काम किया उसका पांच प्रतिशत काम भी मोदी-शाह ने नहीं किया। मोदी-शाह ने पैसे, चुनावी चंदे से चुनाव लडऩे, पार्टी की इमारते बनाने- वोट-विधायक-सांसद खरीदने, दलबदल कराने में पैसा पानी की तरह उड़ेला।

किसी एक भी रचनात्मक, सामाजिक, सा सांस्कृतिक काम में पैसा याकि प्रोजेक्ट नहीं चलवाया। सरकारी बजट, सीएसआर बजट से पुरानी सरकारी संस्थाओं में भी बुद्धी बल से संघ के आईडिया का एक बौद्धिक (वैश्विक स्तर का न सही राष्ट्रीय स्तर का भी नहीं) काम नहीं कराया। हिंदू बुद्धी को या तो लंगूरी बना डाला या आपसी लडाई का मैदान!

How do unions win from power : हो सकता है मेरे इस विश्लेषण में कुछ अतिरेक हो। लेकिन आप भी सोचे कि पिछले आठ वर्षों में मोदी-शाह ने अपना जो ढिढोरा बनाया है और नितिन गडकरी ने चुपचाप जैसे काम किया तो उससे फर्क और अंत नतीजे का अनुमान क्या नहीं बनता?

मोदी-शाह ने हिंदू आईडिया का चारित्र्य ऐसा बिगाडा है कि न लोकतंत्र का भला हुआ, और न दुनिया में नाम हुआ। हिंदू राजनीति कलंकित होते हुए है।

How do unions win from power : मैं फिर भटका हू। बुनियादी बात है कि संघ ने जो-जो चाहा, उसके कथित आदर्शों मतलब राजनैतिक शुचिता, सियासी ईमानदारी-चरित्र- चाल-चेहरे-चरित्र, नैतिकता, संस्कार-स्वदेशी,सामाजिकता, मूल्यों के आग्रह क्या मोदी सरकार की सत्ता के कीचड़ में खत्म नहीं हो गए है? क्या संघ दावा कर सकता है कि उसकी फैक्ट्री में सच्चे, संस्कारी, निडर, काबिल हिंदू बनते है न कि सत्ता के लालची, भूखे और भयाकुल हिंदू?

How do unions win from power : अपना मानना है कि आठ साल का अनुभव अब मोहन भागवत, संघ में विचार बना बैठा है कि सत्ता को लाईन पर लाना है। नरेंद्र मोदी-अमित शाह चलाए अपनी सरकार लेकिन भाजपा संगठन उनका जेबी नहीं बन रहने देना है। नवंबर में जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म हो रहा है।

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यदि नया अध्यक्ष चुना जाता है तो वह संघ के फैसले से होगा। तभी मोदी-शाह ने होशियारी से संसदीय बोर्ड और चुनाव कमेटी का पहले ही पुर्नगठन कर लिया। ताकि संघ की पसंद से नया अध्यक्ष बने भी तो वह समितियों की यथास्थिति में रहे।

बहुत संभव है उससे पहले कैबिनेट फेरबदल से नितिन गडकरी जैसे दो-तीन चेहरों को आउट कर दिया जाए ताकि मैसेज बने कि प्रधानमंत्री की कुर्सी के आगे किसी संगठन और उसके लोगों की कोई औकात नहीं है! सत्ता और प्रधानमंत्री की कुर्सी बडी है और संघ और उनके स्वयंसेवक उसकी पालकी ढोहने वाले!

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