HIV ‘आयुष्मान’ वृतचित्र एचआईवी पॉजिटिव किशोरों की कहानी

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HIV ‘आयुष्मान’ वृतचित्र एचआईवी पॉजिटिव किशोरों की कहानी

HIV नयी दिल्ली !   ‘आयुष्मान’ वृत्तचित्र के निर्देशक जैकब वर्गीज ने कहा कि आयुष्मान ग्रामीण भारत के वंचित वर्ग वाले 14 वर्ष के दो ऐसे किशोरों की कहानी है, जो एचआईवी पॉजीटिव हैं। वे एचआईवी मरीजों के साथ बरते जाने वाले भेदभाव और सामाजिक कलंक का सामना करते हुये मैराथन दौड़ों में हिस्सा लेते हैं तथा मरीजों के मन में सकारात्मक बदलाव व उम्मीद जगाते हैं।


HIV इस वृत्तचित्र के निर्देशक वर्गीज ने गोवा में आयोजित होने वाले भारत अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के दौरान आयोजित ‘चर्चा सत्र’ में मीडिया तथा महोत्सव में आये प्रतिनिधियों से कहा, “इस वृत्तचित्र को बनाने के पीछे का उद्देश्य, जीवन में कभी हार न मानने वाली किशोरों की भावना और उनकी प्रेरणा ने मुझे भी प्रभावित किया है। ये किशोर अपने कष्ट के बारे में शिकायत करना बंद कर देते हैं। शिकायतें करने के बजाय वे चुनौतियों का सामना करते हैं और दिलों को जीत लेते हैं।”


HIV उन्होंने बताया कि यह यात्रा लगभग छह वर्षों में पूरी हुई। वे बाबू और मानिक नाम के किशोरों से मिले थे, जो उस समय 12 वर्ष के थे। वे एचआईवी पॉजीटिव किशोरों के एक अनाथालय में रहते थे। उनमें से एक बच्चे को तो पैदा होते ही त्याग दिया गया था और दूसरा बच्चा अपने परिवार तथा भविष्य को लेकर भयभीत था।

HIV जब मैं उन बच्चों से मिला, जिनका एचआईवी पॉजीटिव पैदा होने में कोई कसूर नहीं था, तो सबसे पहला विचार मेरे मन में आया कि ये कैसे अपनी जिंदगी जियेंगे, कैसे जिंदा रहेंगे और कब तक जिंदा रहेंगे। उन्होंने कहा, “हमारे पास इन सवालों के जवाब नहीं हैं।”


HIV उन्हें तब बहुत अचरज हुआ कि ये किशोर कैसे इतना साहसी हैं और कैसे वे अपनी मनपसंद गतिविधियों में हिस्सा लेकर लड़ने के लिये संकल्पित हैं। वे दौड़ते हैं और इस तरह अपने संकल्प को व्यक्त करते हैं। निर्देशक ने बताया कि ये किशोर धीरे-धीरे कदम बढ़ाकर इस बड़ी मंजिल तक पहुंचे हैं। पहले ये दस किलोमीटर लंबी दौड़ में हिस्सा लेते थे और आगे चलकर 21 किलोमीटर की दौड़ में हिस्सा ले रहे हैं।


उनकी यात्रा की बारीकियां साझा करते हुये निर्देशक वर्गीज़ ने कहा कि इन किशोरों ने छोटे पैमाने पर शुरूआत की थी। उन्होंने कहा, जब वह उनके संघर्षों का रास्ता मापने के लिए धारा में बहने के लिये तैयार हुये, तो वह उनके साथ धीरे-धीरे आगे बढ़े और उन्होंने उनके मिशन के साथ पांच महाद्वीपों और 12 देशों की यात्रा की। वह बस, उनके साथ-साथ चलते रहे और उनकी जिंदगी को अपने में उतारते रहे।


निर्देशक ने अपने लक्ष्य को हासिल करने पर तत्पर उन किशोरों के स्वास्थ्य के बारे में बताया कि खेल को उन लोगों ने विश्वास और दम-खम बनाने के माध्यम के रूप में चुना। लेकिन इन सबसे ऊपर उनके रोग के साथ जो कलंक जुड़ा है, सबसे ज्यादा तो उसी ने उन्हें प्रेरणा दी है। यह कलंक ही उन्हें सही पोषण और व्यायाम के बारे में सकारात्मक दिशा में ले जा रहा है।


उन्होंने कहा कि रोग से शरीर को उतना नुकसान नहीं होता, जितना नुकसान उससे जुड़े कलंक से होता है, जो मनोवैज्ञानिक स्तर पर प्रभाव डालता है। उन्होंने कहा कि मनोवैज्ञानिक पक्ष पर बहुत काम करने की जरूरत होती है, क्योंकि ये किशोर इस सच्चाई के साथ बढ़ रहे हैं कि उनके परिवार ने बिना किसी कसूर के उन्हें त्याग दिया है। रोग से जुड़े सामाजिक कलंक और भेदभाव की भावना उन किशोरों से उनकी छोटी-छोटी खुशियां तक छीन लेते हैं।
श्री वर्गीज ने कहा कि एचआईवी, कुष्ठ जैसी बीमारियों के बारे में बहुत गलतफहमियां हैं, जिनके कारण ये लोग जीवन को पूरी तरह जी नहीं पाते तथा यहां तक कि उन्हें अपने कई अधिकारों से भी वंचित होना पड़ता है। उन्होंने कहा कि ये किशोर अपनी अंतिम सांस तक इसी तरह दौड़ते रहेंगे और अनेक लोगों की प्रेरणा बनेंगे।
निर्देशक जैकब वर्गीज़ पुरस्कृत भारतीय फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक हैं, जो अपने संवेदनशील लेखन तथा बेहतर फिल्मों के लिये जाने जाते हैं। वे कन्नड़ फिल्म उद्योग के उच्च गुणवत्ता युक्त सिनेमाई मनोरंजन के लिये प्रसिद्ध हैं। निर्माता वर्गीज प्रायः ऐसे विषयों पर फिल्म बनाते हैं, जिन्होंने उनके दिल को छुआ हो या कोई ऐसा व्यक्तित्व हो, जो उनको प्रेरित करता हो।


निर्माता ने कहा,“ऐसी फिल्मों पर जो खर्च आता है, वह पैसा भी शायद आपको वापस न मिले। साथ ही ऐसी फिल्मों को प्रदर्शित करने का कोई जरिया भी नहीं होता, बस यही महोत्सव होते हैं।” उन्होंने कहा कि बाबू और मानिक की यह असली कहानी है। वे चाहते थे कि तथ्य सामने आयें, इसलिये यह वृत्तचित्र बनाया है।
आयुष्मान का प्रदर्शन गोवा में आयोजित होने वाले 53वें भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के गैर-फीचर श्रेणी के इंडियन पैनोरामा के तहत हुआ।


दिनेश राजकुमार एन वरिष्ठ पत्रकार, सिनेमैटोग्राफर और पुरस्कार प्राप्त फिल्म निर्माता हैं। उन्हें आंधीयुम (2008) और ड्रिब्लिंग विद देयर फ्यूचर (2016) के लिये दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है।

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