Hindi Day – Hindi Official Language हिन्दी दिवस – हिन्दी राजभाषा
Hindi Day समुद्र के उत्तरी भाग में स्थापित विशाल सिन्धु प्रदेश के लोग हिन्दी बोलते हैं, इसलिए उक्त बड़े भू-भाग का नाम हिन्दुस्तान पड़ा । हिन्दुस्तानी अपनी अभिव्यक्ति का अधिकतम माध्यम जिस भाषा को बनाए रहे, उसे हिन्दी कहा गया । यानि कि हम हिन्दी बोलते हैं इसलिए हिन्दुस्तानी कहलाए अथवा हिन्दुस्तानी होने के नाते हमारे द्वारा बोली गई भाषा हिन्दी कहलाई ।
Hindi Day मतलब साफ है हिन्दुस्तान का मतलब हिन्दी और हिन्दी का मतलब हिन्दुस्तान अर्थात भारत या फिर भारतवर्ष । वर्तमान भारत में जबकि सैकड़ों भाषाएं प्रचलन में हैं, फिर भी इसे हिन्दी ने ही एक सूत्र में बांधे रखा है । इस बात को हमारे पूर्वज पहले से ही मान्यता देते रहे । यही वजह रही कि वर्ष 1949 में भारतीय आजादी के बाद हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया ।
Hindi Day हालांकि इस बात में कोई भेद अथवा विवाद नहीं है कि इस देश की पुरातन भाषा संस्कृत, देवनागरी और हिन्दी ही है । इसका मतलब यह कतई नहीं है कि क्षेत्रीय भाषाओं का कोई महत्व ही नहीं रहा । पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण दिशाओं में जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएं बोली जाती हैं अथवा पहले प्रचलन में रही हैं, उन सभी ने इस देश की सनातन परम्पराओं, संस्कारों को बचाये रखने में महती भूमिका निभाई है ।
Hindi Day जबकि हिन्दी उपरोक्त सभी कार्य सक्षमता के साथ करते हुए इन सभी भाषाओं को और भारतीयों को एक सूत्र में पिरोये रखने का काम करती रही है । कालांतर में हमारे देश पर अनेक हमले हुये । उस दौरान सभी विदेशी आक्रांता शासकों ने भारतीयों पर अपनी अपनी भाषाएं थोपने का काम किया । चूंकि तत्कालीन विदेशी शासकों द्वारा राज कार्य अपनी मातृभाषा में कराये जाते रहे तो फौरी तौर पर विदेशी भाषाएं हमारे परिवेश में घुलती रहीं । इनमें अंग्रेजी, फारसी, अरबी प्रमुख हैं ।
Hindi Day भाषाओं के अनेक आगमन और पलायनों के चलते समय-समय पर यह सवाल उठते रहे कि आखिर हमारी असल भाषा, राष्ट्रभाषा अथवा मातृभाषा क्या है ? मुगल शासकों और अंग्रेजों ने फूट डालो राज करो की नीति अपनाते हुए हिन्दी को शेष भाषा भाषियों से दूर करने का कुचक्र 1947 तक बनाये रखा । एक समय ऐसा भी आया जब दक्षिण भाषी लोग हिन्दी को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं के मुकाबले विरोधी अथवा प्रतिस्पर्धी भाषा के रूप में देखने लगे । यह विरोध के स्वर कहीं कम तो कहीं ज्यादा अन्य गैर हिन्दी प्रान्तों में भी देखने को मिले ।
Hindi Day फलस्वरूप काफी लम्बे समय तक हिन्दी को लेकर विषाक्त वातावरण बना रहा । फिर भी भारत के अधिकतम भू-भाग पर हिन्दी में अभिव्यक्ति की परम्परा बनी रही । लेकिन हमारे देश के अनेक महात्माओं ने इस बात को समझा और अंतत: इस निर्णय पर पहुंचे कि केवल हिन्दी ही वह भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा या फिर राजभाषा से कमतर तो आंका ही नहीं जा सकता ।
Hindi Day शुरुआती महापुरुषों का स्मरण करें तो हिन्दी के प्रचार प्रसार और उत्थान में स्वामी दयानंद सरस्वती स्वामी विवेकानंद के अलावा दक्षिण प्रान्त के वल्लभाचार्य, रामानुज, रामानंद, असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर और नामदेव महाराज, गुजरात के नरसी मेहता, बंगाल के चैतन्य महाप्रभु, ऐसे संत महात्मा और महापुरुष रहे जिन्होंने अपने धार्मिक और सामाजिक विचारों को सभी प्रान्तों में व्यापक रूप से पहुंचाने के लिए हिन्दी भाषा का प्रयोग किया ।
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Hindi Day यही नहीं, इनमें से अधिकांश विभूतियों ने अपने ग्रन्थ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ हिन्दी भाषा में भी लिखे । जहां तक स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय सम्प्रभुता के लिए लडऩे वालों की बात है तो उनमें राजा राममोहन राय का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है । वे कहते थे कि समग्र देश की एकता के लिए हिन्दी अनिवार्य है । केशव चंद्र सेन ने कहा सारे भारत में एक ही भाषा हिन्दी का व्यवहार उचित है । लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का उद्घोष था हिन्दी में ही भारत की राष्ट्रभाषा बनने का सामर्थ्य है ।
Hindi Day महात्मा गांधी मानते थे कि हिन्दी ही हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हो सकती है और इसे होना भी चाहिए । सी. राजगोपालाचारी ने वक्तव्य दिया था कि हिन्दी ही जनतन्त्रात्मक भारत की राजभाषा होगी । सबसे पहले स्वतंत्र भारत की सरकार स्थापित करने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का मत रहा कि प्रान्तीय ईर्ष्या द्वेष को दूर करने में हिन्दी ही सक्षम है । इनके अलावा आत्माराम पांडुरंग और एनी बेसेंट जैसे नाम भी हिन्दी के लिए कार्य करने वाले लोगों के रूप में लिए जा सकते हैं ।
Hindi Day स्वतंत्र भारत के नेताओं की बात करें तो उनमें पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द मोदी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है । कुल मिलाकर हिन्दी भारतवर्ष से लेकर नए भारत की यात्रा पूरी करने तक इस देश को एक सूत्र में पिरोये रखने में सफल रही और भविष्य में भी होती रहेगी । 14 सितम्बर 1949 को भारत के माथे की बिंदी हिन्दी को राजभाषा का दर्जा संवैधानिक रूप से मिला । इसके लिए सभी देशवासियों को बधाइयां ।