HighCourt आदेश के नौ महीने बाद भी नहीं मिला प्रमोशन
HighCourt रायपुर। संचालनालय रोजगार एवं तकनीकी शिक्षा विभाग में HighCourt के आदेश के बाद भी योग्य कर्मचारियों को पदोन्नत नहीं करने का मामला सामने आया है।
HighCourt द्वारा गत 22 सितम्बर 2021 को पीडि़त कर्मशाला सहायक कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए चार महीने के भीतर प्रशिक्षण अधिकारी के पद पर पदोन्नत संबंधी आदेश जारी किए नौ महीने से अधिक समय हो गया है लेकिन अधिकारियों की हठधर्मिता की वजह से हाईकोर्ट के आदेश की भी अवहेलना हो रही है।
यह कोई पहला मामला नहीं है इसके पहले भी HighCourt ने विभाग के खिलाफ वर्ष 2017 से 2020 में चार बार पदोन्नति सबंधी आदेश पारित किये थे, जिसका पालन नहीं किया गया है। इससे क्षुब्ध कर्मचारी पुन: न्यायालय की शरण में गये थे।
इस पर विभाग के खिलाफ वर्ष 17 मार्च 2020 में न्यायालय का अवमानना आदेश पारित होने के बाद 28 कर्मशाला सहायक कर्मचारियों को प्रशिक्षण अधिकारी के पद पर पदोन्नत किया गया था।
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रोजगार एवं तकनीकी शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2014 में जारी भर्ती नियम 2010 के अनुसार करीब दर्जन भर कर्मियों की कर्मशाला सहायक पद पर भर्ती हुई थी। जिन्हे अगले पांच वर्षो के बाद प्रशिक्षण अधिकारी के पद पर पदोन्नत किया जाना था। पदोन्नति के ठीक पहले ही कर्मचारियों को वंचित करने की मंशा से वर्ष 2019 में विभागीय अधिकारियों ने भर्ती नियमों में संशोधन कर दिया।
इस कारण पीडि़त कर्मचारियों को कर्मशाला सहायक से मेंटनेंस मैकेनिक के पद पर पदोन्नत किया गया जबकि उन्हें प्रशिक्षण अधिकारी पर पदोन्नत किया जाना था। इस आदेश से पीडि़त कर्मचारियों ने उच्च न्यायालय बिलासपुर में डब्ल्यूपीएस 5064/2021 दाखिल की थी। जिस पर राज्य शासन की तरफ से अधिवक्ता जितेन्द्र पाली ने पैरवी की थी।
पीडि़त याचिकर्ताकर्ता कर्मचारियों दौलत कुमार जोशी, महेश चन्द्र बागले, श्रीमति सुप्रिया प्रसाद और दिनेश कुमार निषाद के पक्ष में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया।
कर्मचारियों को वंचित रखने भर्ती नियमों में किया संशोधन

पीडि़त कर्मचारियों ने बताया कि HighCourt से फैसला आने के बाद अपना अभ्यावेदन संचालक अवनीश शरण आईएएस को 08 अक्टूबर 2021 को दिया। जिसे संचालक ने निरस्त करते हुए कहा कि कर्मचारियों ने भर्ती नियम में संशोधन संबंधी तथ्य कोर्ट में छिपाया गया है, ऐसे में किया गया प्रमोशन सही है और अभ्यावेदन को अमान्य करते हुए निराकृत किया जाता है। जबकि उच्च न्यायालय में महाधिवक्ता कार्यालय से अधिवक्ता जितेन्द्र पाली ने शासन का पक्ष रखा था। दोनों पक्षों को सुनने के बाद ही उच्च न्यायालय बिलासपुर ने फैसला सुनाया है।
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कर्मचारियों ने कहा कि संचालक अवनीश शरण द्वारा तथ्य छिपाने का आरोप लगाते हुए अभ्यावेदन को निरस्त कर दिया, जो कि नियम संगत नहीं है और न्यायालय की अवमानना भी है। पदोन्नति से वंचित रखने के लिए ही अधिकारियों द्वारा भर्ती नियमों में संशोधन किया गया है जो मूल भर्ती नियमों का उल्लंघन है।
HighCourt की फटकार पर दर्जनों को मिला था प्रमोशन
विभागीय अफसरों की मनमानी के कारण पूर्व में भी ऐसे ही पदोन्नति आदेशों की हाईकोर्ट में तामिली न होने पर अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए संचालक और सचिव को व्यक्तिगत उपस्थित होने का निर्देश दिया था। वर्ष 2014 में तात्कालिक संचालक विवेक आचार्य आईएफएस के कार्यकाल में प्रचलित नियमों के अनुसार ही 28 याचिकाकर्ताओं को साल 2020 में ट्रेनिंग अफसर पर पदोन्नत किया गया था।
गौरतलब है कि न्यायालय में संबंधित विभाग का अधिकारी (ओआईसी) और महाधिवक्ता कार्यालय से वकील शासन का पक्ष रखते हैं। कोर्ट में दोनों पक्षों को सुनने के बाद ही न्यायालय आदेश पारित करती है। विभागीय अधिकारी न्यायालय द्वारा जारी आदेश आदेशों को नहीं मानते। जबकि सामान्य प्रशासन विभाग ने कई बार स्पष्ट तौर पर समस्त विभाग प्रमुखों को न्यायालयीन आदेशों की तामिली में देर नहीं करने के निर्देश दिए हुए है, बावजूद इसके अफसरशाही हावी है।
वहीं इस बारे में पक्ष लेने संचालक अवनीश शरण से बात हुई लेकिन छुट्टी पर बाहर होने की वजह से जानकारी नहीं मिल पाई।
प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला ने भी कहा कि HighCourt का क्या आदेश है याद नहीं है वैसे भी छुट्टी का दिन है देखें बिना कुछ नहीं कह पाउँगा। विभागीय सचिव सुश्री रीता शांडिल्य के नम्बर पर भी कॉल किया लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
चमन प्रकाश केयर
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