Growing corruption in india भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार

Growing corruption in india

अजय दीक्षित

Growing corruption in india भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार

Growing corruption in india  भ्रष्टाचार और घपले-घोटालों के मद्देनजर देश के कई हिस्सों में जो छापेमारी जारी है, क्या वे भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग की प्रस्तावना हैं ? क्या हमारी जांच एजेन्सियां पूरी तरह स्वायत्त हैं और उन्हें कोई भी ‘राजनीतिक निर्देश’ नहीं दिये जाते ?

यदि स्वायत्त हैं, तो आपराधिक और गम्भीर मामले 10-15 सालों तक क्यों लटकते रहते हैं ? कभी तो कोई ठोस कारण देश के सामने पेश किया जाये ।

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सभी कार्रवाइयां अंधेरी गुफाओं में की जाती रही हैं। विभिन्न मामलों के सन्दर्भ में एजेंसियां और अदृश्य रूप से सत्ताएं ‘प्रतिशोधी’ क्यों लगती हैं या विपक्ष के ऐसे आरोप पुख्ता लगते हैं ? उदाहरण के तौर पर लें लालू प्रसाद यादव कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार-1 में रेल मंत्री थे। उन्होंने बिहार से 12 आवेदकों को रेलवे के 6 जोन में ग्रुप-डी की अस्थायी नौकरी मुहैया कराई । कोई विज्ञापन नहीं छपा और न ही कोई परीक्षा ली गई।

सीधी नियुक्ति कर दी गई। बाद में वे स्थायी कर्मचारी भी बना दिए गए। तत्कालीन रेल मंत्री पर गंभीर आरोप थे कि उन्होंने नौकरी देने के बदले जमीनें औने-पौने दाम पर खरीदीं। ऐसी विवादास्पद जमीनें लालू की पत्नी राबड़ी देवी, उनकी बेटियों-मोसा भारती और हेमा यादव के नाम पंजीकृत हैं।

2008-09 का यह केस 2021 में सीबीआई ने प्राथमिक जांच के लिए दर्ज किया। कारण जो भी रहे हों, लेकिन यह केस आज तक किसी कानूनी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाया है और न ही आरोपितों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई की गई है।

लालू यादव पहली बार किसी घोटाले में 1997 में जेल गए थे। तब केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी। प्रधानमंत्री देवगौड़ा रहे अथवा इंद्रकुमार गुजराल रहे हों, लेकिन मोर्चे का हिस्सा होने के बावजूद लालू को जेल जाना पड़ा। उसके बाद चारा घोटाले में अदालत ने लालू को सजायाफ्ता करार दिया।

वह जेल जाते रहे, अस्पतालों में रहे और जमानत पर बाहर भी आते। रहे। सवाल यह है कि आपराधिक या घोटालों के केस इतने लंबे क्यों खींचे जाते हैं और उन पर सियासी दखल साफ क्यों दिखाई देता है? अब ख़बरें आ रही हैं कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर 100 करोड़ रुपए के अवैध खनन घपले की तलवार लटक रही है।

Growing corruption in india  दिल्ली सरकार में शराब नीति के तहत घोटाले में सीबीआई उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के आवास और अन्य बीसियों ठिकानों पर छापे मार चुकी है। दिल्ली के ही स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ईडी के मामलों में मई माह से जेल में बंद हैं।

बंगाल सरकार में वरिष्ठ मंत्री रहे पार्थ चटर्जी के सन्दर्भ में नकदी के पहाड़ और सोना आदि बरामद किये गये सीबीआई और ईडी दोनों ही अलग-अलग ढंग से जांच कर रहे हैं। क्या यह मामला किसी निष्कर्ष तक पहुंचेगा अथवा वक्त के साथ, साथ लटक कर भुला दिया जायेगा ?

बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर आरोप हैं कि यह 53 संपत्तियों के मालिक है। जिस शख्स ने कॉरपोरेट में लाखों रुपये की नौकरी नहीं की और न ही कोई औद्योगिक विरासत उनके नाम दर्ज है, लिहाजा ऐसी धन-संपदा पर सवाल स्वाभाविक हैं ।

Growing corruption in india कमोवेश यह सामान्य मामला नहीं है। जांच एजेन्सियों भ्रष्टाचार के आधे-अधूरे लटकते सत्यों को अंतिम यथार्थ तक कब पहुंचायेंगी ? भ्रष्टाचार के मामलों और करोड़ों नकदी की बरामदगी में आईएएस और आईपीएस जैसे शीर्ष अधिकारी भी जेलों में कैद हैं । एक दौर था कि कुछ भाजपा नेताओं के खिलाफ मोटे-मोटे घोटाले सुर्खियों में थे तब ये नेता कांग्रेस या किसी अन्य विपक्षी दल में थे। उनके खिलाफ सीबीआई और ईडी अचानक खामोश और निष्क्रिय क्यों हैं ? देश अब यह स्पष्टीकरण भी चाहता है।

Growing corruption in india  विपक्ष का यह गम्भीर आरोप रहता है, लिहाजा सरकार और एजेन्सियां उन्हें नजर अंदाज नहीं कर सकतीं । बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस पर, लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए भ्रष्टाचार, परिवारवाद, वंशवाद के खिलाफ निर्णायक जंग लडऩे के लिए देश का समर्थन, सहयोग मांगा था। क्या उस संबोधन के गम्भीर मायने हैं ? प्रधानमंत्री इन प्रमुख जांच एजेन्सियों के बिना भी यह जंग नहीं जीत सकते, लिहाजा स्पष्ट किया आए कि प्रधानमंत्री का दखल कितना रहता है या रहेगा ?

Growing corruption in india भ्रष्टाचार और घोटालों पर सार्थक परिणति इसलिए भी अपेक्षित है, क्योंकि अंतत: आम करदाता का पैसा ही हजम किया जा रहा है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार ने अपने विरोधियों को मजा चखाने के लिए ईडी सीबीआई तथा आयकर विभाग को आगे कर दिया है । सरकारी जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप भी लग रहे हैं ।

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Growing corruption in india आम आदमी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल तथा अन्य पार्टियां ऐसे आरोप लगाने वाली नई पार्टियां हैं, जबकि कांग्रेस काफी समय से इस तरह के आरोप लगा रही है। ही सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है, जनता इसका जवाब चाहती है । सरकार को इस सम्बन्ध में जनता को करना चाहिए कि वह सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग नहीं होने देगी। वैसे कांग्रेस जब सता में भी तब भाजपा भी इसी तरह के आरोप लगाती थी ।

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