(General Convention of Chhattisgarh Congress) आज की जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से इतिहास से सीख जरूरी है

(General Convention of Chhattisgarh Congress)

(General Convention of Chhattisgarh Congress) आज की जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से इतिहास से सीख जरूरी है

(General Convention of Chhattisgarh Congress) छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का पहला महाअधिवेशन होने जा रहा है, इसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पीसीसी दोनों की बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। वैसे देखा जाए तो भले आज कांग्रेस की हालत उतनी अच्छी नजर नहीं आ रही है, एक दौर था कांग्रेस ही इस देश की आजादी की लड़ाई की अगुवाई कर रही थी। देश में सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री और सबसे लंबे समय तक राज इस पार्टी ने किया है। हालांकि, पिछले दस सालों में पार्टी का सत्तात्मक दायरा सिमटा है। फिलहाल देश के छत्तीसगढ़ समेत 3 राज्यों में कांग्रेस की सरकार है।

(General Convention of Chhattisgarh Congress) करीब डेढ़ सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी और उसके सफर को लेकर कई रोचक किस्से भी हैं। आजादी के पूर्व जब भी कांग्रेस के चिंतन शिविर या राष्ट्रीय अधिवेशन होते थे, उनमें छत्तीसगढ़ का भी योगदान होता था। कांग्रेस के बड़े आयोजनों में मिल-जुलकर साधन जुटाते थे। तब राजनीतिक दलों के पास पैसे नहीं होते थे। तब हाथियों पर लादकर यहां से रसद भेजी जाती थी। इसमें यहां के सरगुजा राज परिवार का खास योगदान होता था।

(General Convention of Chhattisgarh Congress)  छत्तीसगढ़ में पहली बार हो रहे अधिवेशन के लिए तैयारियां जोरों पर है इसे लेकर कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पवन बंसल, महासचिव तारिक अनवर, प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम लगातार बैठक कर रहे हैं और प्रदेश सरकार के सभी मंत्रियों के साथ ही वरिष्ठ नेताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई है। बताया जा रहा है कि देशभर से दस हजार से ज्यादा कांग्रेस नेता इस अधिवेशन के मौके पर राजधानी रायपुर में जुटेंगे।


कांग्रेस के गरिमामयी इतिहास को और कुछ अहम तथ्यों को जानना जरूरी है, तभी इस देश के पिछले सौ सवा सौ साल के इतिहास को समझा जा सकता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना दिसंबर 1885 में बॉम्बे में की गई थी।

(General Convention of Chhattisgarh Congress)  इसके प्रारंभिक नेतृत्वकर्ताओं में दादाभाई नौरोजी, फिरोज शाह मेहता, बदरुद्दीन तैयबजी, डब्ल्यू.सी. बनर्जी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, रोमेश चंद्र दत्त, एस. सुब्रमण्य अय्यर शामिल थे। एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी, ए.ओ. ह्यूम ने विभिन्न क्षेत्रों के भारतीयों को एक साथ लाने में भी भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का गठन राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रयास था। शुरुआत में देश के सभी क्षेत्रों तक पहुँच स्थापित करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में कांग्रेस के सत्र आयोजित करने का निर्णय लिया गया। तब अधिवेशन का अध्यक्ष उसी क्षेत्र से चुना जाता था, जहां कि कांग्रेस के अधिवेशन का आयोजन किया जा रहा हो।

कांग्रेस का पहला अधिवेशन वर्ष 1885 में मुंबई में डब्ल्यू.सी. बनर्जी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। वर्ष 1896 में कोलकाता अधिवेशन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा पहली बार राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ गाया गया।

वर्ष 1899 में लखनऊ अधिवेशन में भू-राजस्व के स्थायी निर्धारण की मांग रखी गई। वर्ष 1901 में कोलकाता अधिवेशन में पहली बार गांधीजी कॉन्ग्रेस के मंच पर दिखाई दिये थे। वर्ष 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में हुए अधिवेशन में सरकार के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन की औपचारिक घोषणा की गई। इसके बाद वर्ष 1917 में कोलकाता में हुआ अधिवेशन कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष एनी बेसेंट के नेतृत्व में हुआ। वर्ष 1919 में अमृतसर अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अगुवाई में हुआ था इस अधिवेशन में कॉन्ग्रेस ने खिलाफत आंदोलन को समर्थन दिया। साल 1924 में बेलगाम में हुआ अधिवेशन महात्मा गांधी की अध्यक्षता में आयोजित हुआ था, यह उनकी अध्यक्षता में आयोजित होने वाला एकमात्र सत्र था। वर्ष 1928 के कोलकाता अधिवेशन में अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का गठन हुआ था।

(General Convention of Chhattisgarh Congress)  वर्ष 1929 का लाहौर अधिवेशन जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में आयोजित हुआ। इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज पर प्रस्ताव पारित किया गया। 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की गई। इसके बाद वर्ष 1931 का कराची अधिवेशन वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में हुआ। इस अधिवेशन में मौलिक अधिकारों और राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम पर संकल्प लिया गया। वर्ष 1937 में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में फैजपुर में हुआ अधिवेशन किसी गाँव में होने वाला पहला अधिवेशन था।

वर्ष 1938 में हरिपुरा अधिवेशन की अध्यक्षता सुभाष चंद्र बोस ने की। इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में राष्ट्रीय योजना समिति की स्थापना की गई। वर्ष 1939 में त्रिपुरी अधिवेशन में नेताजी सुभाष को अध्यक्ष चुन लिया गया था लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उनकी जगह राजेन्द्र प्रसाद को अध्यक्ष बनाया गया। सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस से अलग होकर फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया। वर्ष 1946 में मेरठ में जेबी कृपलानी की अध्यक्षता में आजादी से पहले का आखिरी अधिवेशन आयोजित हुआ। इस तरह आजादी से पहले कांग्रेस के इन अधिवेशनों में कई अहम फैसले लिए गए जिनका सीधा असर उस वक्त के जनमानस पर पड़ता था साथ ही आजादी की लड़ाई को दिशा देता था। छत्तीसगढ़ की धरती में आयोजित हो रहे इस अधिवेशन से पहले हम इसकी महत्ता आज की पीढ़ी को बताना चाहते हैं। ताकि आज का युवा इस गौरवमयी इतिहास को जाने और इतिहास से सीख कर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें।

(General Convention of Chhattisgarh Congress)  समय के साथ देश के बदलते हालात पर चिंतन जरूरी है, आज जिस तरह राजनीति में नए नए रंग देखने को मिल रहे हैं। उनके बीच कांग्रेस के सामने भी कई तरह की चुनौती है। विचार करना होगा कि आखिर क्यों मध्यप्रदेश में सरकार बनाने के बाद भी कुर्सी चली गई, गोवा में सबसे बड़ी पार्टी होकर भी सरकार नहीं बना पाए, दक्षिण का किला कैसे ढह गया।

इस तरह कई चुनौतियां हैं जिसका हल खोजना होगा। एक तरफ देश में कमजोर हालात कांग्रेस बन रहे थे, उसके ठीक उलट छत्तीसगढ़ में पार्टी बेहद मजबूती से उठी इसके पीछे क्या कारण हैं। भूपेश बघेल की अगुवाई में बना विकास का छत्तीसगढ़ मॉडल जो कि ग्रामीण अर्थ व्यवस्था और किसानों की हित चिंता से जुड़ा है, उस पर भी बातचीत जरूरी है। किस तरह संगठन को एकजुट कर 15 साल की सरकार के खिलाफ प्रचंड बहुमत पाया जा सकता है, ये छत्तीसगढ़ में बघेल और उनके साथियों ने कर दिखाया था।

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