Gender equality लैंगिक समानता को लेकर लंबा संघर्ष अभी बाकी

Gender equality

बिकास कुमार शर्मा
जलगांव (महाराष्ट्र) से लौटकर

Gender equality सामाजिक संस्था विकास संवाद का 15वां राष्ट्रीय मीडिया संवाद संपन्न

Gender equality जलगांव ! मध्य भारत की ख्यातिनाम सामाजिक एवं शोध संस्था विकास संवाद द्वारा महाराष्ट्र के जलगांव स्थित गाँधी तीर्थ में तीन दिवसीय राष्ट्रीय मीडिया संवाद का आयोजन 25 से 27 नवम्बर तक किया गया। उक्त मंथन शिविर में देश के दस राज्यों से पहुंचे करीब सवा सौ पत्रकारों, शोधार्थियों, मीडिया एवं सामाजिक अध्ययन से जुड़े छात्रों, शिक्षकों तथा अन्य चिंतकों ने भाग लिया। प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले उक्त शिविर का यह पन्द्रहवां वर्ष था।

Gender equality इस बार का विषय ‘लैंगिक पहचान की चुनौती और समानता के सवाल’ रखा गया। गांधी रिसर्च फाउंडेशन जलगांव और पहल संस्था के सहयोग से आयोजित संवाद में प्रख्यात गाँधीवादी चिंतक डॉ. विश्वास पाटिल, आनंद पवार, पार्लिंगी समुदाय के लिए कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता समीभा पाटिल, अनिल जैन, अरुण त्रिपाठी, चिन्मय मिश्र, अरविंद मोहन, सचिन कुमार जैन, दीपा सिन्हा, जकिया सोमन, सुरेश तोमर, पुष्यमित्र, राजेश बादल, डॉ राकेश पाठक, अश्विन झाला, मोहम्मद अखलाक समेत कई विषय विशेषज्ञों ने लैंगिकता से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपनी राय प्रस्तुत की और समाज में व्याप्त असमानता को लेकर कई गहरे सवाल भी उठाये।

पुणे से आए सामाजिक कार्यकर्ता आनंद पवार ने ‘लैंगिक पहचान की चुनौती, और समानता के सवाल’ विषय पर दो सत्रों में विस्तार से अपनी बात रखी। पवार ने लिंग और जेंडर को परिभाषित करते हुए जेंडर की अवधारणा पर बात की। कहा कि जेंडर सामाजिक अपेक्षाओं से परिभाषित होता है।

Gender equality समानता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान अभी भी आम घर-परिवारों में चर्चा का विषय नहीं बन सका है। जैन इरिगेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल जैन ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में रेखांकित किया कि कैसे एक छोटी सी पूंजी से शुरू होकर करोड़ों में पहुंचे इस कारोबार में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

इस तीन दिवसीय आयोजन के दूसरे दिन यानी 26 नवंबर को संविधान दिवस के अवसर पर ‘संविधान संवाद’ नामक वेबसाइट का भी लोकार्पण किया गया। साथ ही राकेश मालवीय एवं पूजा सिंह द्वारा सम्पादित ‘समानता के सवाल’ नामक पुस्तक का भी लोकार्पण किया गया।

-ट्रांसजेंडर को लेकर गलत हुई जनगणना: सामिभा

‘हाशिए पर लैंगिकता के सवाल’ सत्र में पारलिंगी (ट्रांसजेंडर) सामाजिक कार्यकर्ता शमिभा पाटिल ने कहा कि देश में करीब 3.5 करोड़ ट्रांसजेंडर हैं, जबकि 2011 की जनगणना में केवल 5 लाख ट्रांसजेंडरों को दर्ज किया गया। उन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को समाज और शासन के स्तर पर हाशिए पर रखे जाने का जिक्र करते हुए कहा कि अब वक्त आ गया है कि समाज इस तबके को उसका हक हासिल करने दे।

Gender equality उन्होंने इस समुदाय के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय का जिक्र करते हुए कहा कि देश में कहीं भी शिखंडी और कुबेर के मंदिर नहीं मिलते क्योंकि ये दोनों ही ट्रांसजेंडर थे। वहीं ‘संविधान और लैंगिक पहचान’ विषय पर सचिन कुमार जैन ने याद किया कि किस प्रकार 14 अगस्त 1947 को हंसा मेहता ने समस्त भारत की महिलाओं के प्रतिनिधि के रूप में तिरंगा ध्वज देश को भेंट किया था।

– गांधी जी की शक्ति का केंद्र थीं कस्तूरबा: पाटिल

अर्थशास्त्र की प्रोफेसर दीपा सिन्हा ने जहां जेंडर और आर्थिक विषमता के संबंधों को रेखांकित किया और आर्थिक क्षेत्र में जेंडर आधारित भेदभाव कम करने की वकालत की, वहीं वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन ने महिलाओं के साथ बापू के सहज संबंधों का बखूबी वर्णन किया।

उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी ने देश भर में महिलाओं को परदे से बाहर निकालने का प्रयास किया। वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक डॉ विश्वास पाटिल ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बताया कि कस्तूरबा गांधी महात्मा गांधी के शक्ति का मुख्य स्रोत थीं। डॉ पाटिल ने आगे बताया कि इसी वजह से गांधी जी ने कस्तूर को जगदम्बा नाम से वर्णित किया है।

-असमानता बढ़ाने में महिलाएं भी शामिल: तोमर

जेंडर मामलों के अध्येता सुरेश तोमर ने लैंगिक अवधारणा और समाज में व्याप्त मिथकों पर अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने बताया कि मध्य भारत के कई इलाकों में भ्रमण के दौरान एवं कार्य करते हुए उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

श्री तोमर ने बताया कि दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में आज भी कन्या भ्रूण हत्या, लिंग चयन आदि की जिम्मेदारी परिवार के पुरुष बहुत आसानी से महिलाओं पर आरोपित करके बच निकलने का प्रयास करते हैं। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि देश में महिलाओं का भी एक बड़ा वर्ग है जो पितृसत्ता की वकालत करता है। साथ ही अल्पसंख्यक समुदायों में लैंगिक पहचान की चुनौती विषय पर निदा रहमान और जकिया सोमन ने अपने निजी जीवन के उदाहरणों के साथ मुस्लिम महिलाओं की समस्याओं को सामने रखा।

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