(Gandhi Godse Ek War) “गांधी गोडसे एक युद्ध” के बारे में पांच बातें

(Gandhi Godse Ek War)

(Gandhi Godse Ek War) “गांधी गोडसे एक युद्ध” के बारे में पांच बातें

 

(Gandhi Godse Ek War) 1. फ़िल्म की कहानी मौलिक है। इसकी मौलिकता अभूतपूर्व है। रिमेक और सीक्वेल के व्यापारिक दौर में यह फ़िल्म लेखन का भी सम्मान है। इस कहानी में राजनीति-विचार-मनुष्यता-प्रेम एक फैंटेसी के शिल्प में हैं। ऐसे विषय पर हिंदी में एक फैंटेसी फ़िल्म भी मौलिक ही है। इसका विवादरहित रखा जाना अच्छे अच्छों के लिए चुनौती है।

(Gandhi Godse Ek War)  2. फ़िल्म इंसानी है। यह मनुष्य की कुप्रवृत्तियों, हिंसा, अपराधों को नायकत्व प्रदान नहीं करती इस तर्क के सहारे कि देखिए हमें बुरा भी समाज ने ही बनाया। समाज सिस्टम ही बुरा बनाता है तो हम बुरे ही सही मगर विजेता हैं। यह फ़िल्म बुरे और अच्छे के परस्पर संवाद का अहिंसक रोचक और मार्मिक निर्वाह करती है। इस प्रकार इसमें एक महा साहित्यिक परिश्रम है। यह नामुमकिन को परदे पर मुमकिन करती है।

3. गांधी अपनी शताब्दी के सबसे निर्दोष राजनीतिक थे। कदाचित राजनीति में महानतम मनुष्यों में से एक और चरम ईमानदार। ऐसे महात्मा की केवल हत्या करवाकर नाथूराम गोडसे को हीरो बनाया गया। न केवल हीरो बनाया गया बल्कि देश को ही सांप्रदायिकता वारियर्स के हाथों जाना पड़ा। दुर्भाग्य इतना ही नहीं भारत में गोडसे के मंदिर तक हैं। फ़िल्म इस अंतरकथा को दर्शकों के सामने “हाथ कंगन को आरसी क्या” बनाकर पेश कर देती है।

4. इस फ़िल्म में एक नई अभिनेत्री ने पवित्रता और सेवा का अभिनय किया। यह फ़िल्म एक महान फिल्मकार को समर्पित है। इस फ़िल्म में ए आर रहमान का संगीत है। इसे राजकुमार संतोषी जैसे फिल्मकार ने बनाया। इसमें नरसी मेहता का महानतम भजन है। इसे असगर वजाहत जैसे श्रेष्ठ और भारतीय साहित्य के गौरव लेखक ने लिखा। यह फ़िल्म छब्बीस जनवरी को रिलीज हुई। यह फ़िल्म गांधी के बारे में मार्मिक ढंग से बताती है कि उन्हें मारा नहीं जा सकता। चाहे गोडसे ही बार बार क्यों न जन्म ले। इसमें प्रेम और सेवा का द्वंद्व है। यह फ़िल्म इंसानी है।

5. यह फ़िल्म लोगों की सृजनात्मक एकजुटता का महत्व बताती है, झूठे आरोपों के मीडिया प्रसार का पर्दाफाश करती है। दर्शकों पर न केवल यकीन बल्कि उनसे प्यार करती है। देशभक्ति के मायने बताती है। इस फ़िल्म में जनशिक्षण के लिए बाज़ार और सत्ता से भी आगे चलने उनसे जीतने का हुनर है। यह फ़िल्म पूरे परिवार के साथ बैठकर देखने की है। इसे देखने के बाद हर तरह की हिंसा छोड़ने का मन होता है।

उपर्युक्त पांच बातों के आगे कितनी ही बातें इस फ़िल्म के विषय में कही जा सकती हैं। इस फ़िल्म में कमियां भी होंगी जिन्हें हर चीज़ ठीक से और अधिक जानने वाले और बिजनेस मैनेजमेंट के युवा चैंपियन बढ़ चढ़कर बता सकते हैं। वे कही बताई भी जाएंगी। जब धीरे धीरे लोग देखेंगे। अच्छाई की बुराई बताकर अपना चेहरा चमकाना मेरा काम नहीं। मैं लगे हाथ दो बातें और कहकर अपनी बात पूरी करता हूं-

1. अगर हम जीवन में कुछ भी अच्छा चाहते हैं तो उसके लिए लोगों को ही ध्यान में रखकर अथक परिश्रम करना दिलों को जीत सकता है। हमारा प्रयास हो कि लोगों से जुड़ें उन्हें जोड़ें।

2. अगर भारत में आजकल “भारत जोड़ो” यात्रा चल ही रही है तो अलग अलग पड़ावों पर रात में यह फ़िल्म दिखाए जाने का भी प्रबंध हो सकता है। क्योंकि अब यह रिलीज हो चुकी है।

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