Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -चुनावी साल में हड़तालों की बयार

Editor-in-Chief

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Winds of strikes in the election year

– सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, इससे बहुत से कर्मचारी संगठनों को लगता है कि अपनी बात मनवाने के लिए ये बहुत सही समय है। नियमित-अनियमित, संविदा कई तरह के कर्मचारी होते हैं उन्हें लगता है कि हड़ताल करने से शायद सरकार चुनाव को देखते हुए उनके दबाव में आ जाएं। छत्तीसगढ़ में इन दिनों कई संगठन इसी तरह हड़ताल पर हैं। इनमें सबसे प्रमुख है पटवारियों की हड़ताल। चूंकि, मैदानी स्तर पर पटवारी प्रशासन की बेहद महत्वपूर्ण इकाई है। कई तरह के काम इन्ही के माध्यम से होते हैं वो सारे काम पिछले 25 दिनों से ठप पड़े हुए हैं। इससे सीधे-सीधे सरकार के कामकाज पर भी असर पडऩे लगा है। इसी के चलते गृह विभाग ने पटवारियों की हड़ताल को देखते हुए आवश्यक सेवा अनुरक्षण कानून लागू कर दिया है। यानी की अब पटवारी शासकीय काम करने से मना नहीं कर सकते हैं। अगर फिर भी पटवारी काम पर नहीं लौटते हैं तो उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। हालांकि, पटवारियों ने हड़ताल जारी रखने का ऐलान किया है।

पटवारियों ने राज्य सरकार से वेतन विसंगति दूर करने, पदोन्नति, विभागीय नियमित परीक्षा, संसाधन, स्टेशनरी भत्ता, अतिरिक्त प्रभार के हल्के का भत्ता बढ़ाने, पटवारी भर्ती के लिए योग्यता स्नातक, मुख्यालय बाध्यता खत्म करने, और बिना विभागीय जांच की एफआईआर दर्ज ना हो इस तरह की मांगे की हैं।

गौरतलब है कि प्रदेशभर में राजस्व न्यायालयों में लगभग 1.40 लाख मामले लंबित हैं। जिसमें सर्वाधिक मामले रायपुर जिले में 8,262 मामले हैं। वहीं, 22 जिले ऐसे हैं जहां तीन हजार से ज्यादा मामले लंबित चल रहे हैं। हड़ताल के कारण तहसील के राजस्व प्रकरणों के नामांतरण, खाता विभाजन, सीमांकन, व्यपवर्तन, किसान किताब, जाति प्रमाणपत्र, आय प्रमाण-पत्र, निवास प्रमाणपत्र एवं अन्य राजस्व से संबंधित प्रकरणों का निराकरण नहीं हो पा रहा है। हमने पहले ही जिक्र किया कि चुनाव के पहले सभी को कुछ न कुछ पाने की उम्मीद होती है पटवारी भी इसी उम्मीद से हैं। हालांकि सरकार का रुख फिलहाल सख्त है। इसके लिए प्रशासन स्तर पर हल निकालने की कोशिश होनी चाहिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बैठक होनी चाहिए, या फिर जिला स्तर पर कलेक्टर बैठक लें और समस्या का हल निकलने की कोशिश की जानी चाहिए। अगर हम हाथ पर हाथ रखे 25 दिनों तक हड़ताल का मजा लेंगे समस्या को हल करने के बजाए गैर व्यव्हारिक विकल्पों पर विचार करेंगे तो समस्या बढ़ सकती है।

जैसा कि इस मामले में भी नजर आ रहा है। दरअसल पटवारियों का काम तहसीलदारों या फिर नायब तहसीलदारों के माध्यम से कराने की मंशा भी सामने आई, लेकिन इस वैकल्पिक विचार को उस वक्त धक्का लगा जब पटवारियों की हड़ताल के दौरान तहसीलदारों से काम करवाने की प्रशासनिक मंशा को तगड़ा झटका लगा है। कनिष्ठ प्रशासनिक सेवा संघ ने पत्र जारी कर किसी भी तहसीलदार या फिर नायब तहसीलदार को पटवारियों का काम नहीं करने के निर्देश दिए हैं। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि पटवारियों का काम करने से किसानों की मुश्किलें कम होने की बजाय बढऩे की संभावना ज्यादा है। ऐसे में सरकार को तत्काल उच्च अधिकारियों को समन्वय बैठक करने के निर्देश देने चाहिए। हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी 2003 चुनाव में हुए के बारे में जिक्र कर रहे थे। उनका कहना है कि उन्होंने लगातार अकाल पडऩे के बाद भी अच्छा काम किया था लेकिन वो और उनका मंत्रिमंडल कर्मचारियों के आक्रोश को नहीं समझ पाया इसके कारण उन्हें उनके गुस्से का शिकार होना पड़ा। छत्तीसगढ़ में उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द इस हड़ताल का हल निकाल लिया जाएगा और प्रशासन का ये मैदानी अमला अपने काम पर उत्साह के साथ लौट आएगा।

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