प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से -आखिर इस दौर में भी क्यों प्रासंगिक हैं नेहरू

नेहरू

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Why Nehru is relevant even in this era

– सुभाष मिश्र

बहुत साल पहले हमने नियति से एक वादा किया था और अब उस वादे को पूरी तरह तो नहीं, लेकिन काफी हद तक पूरा करने का वक्त आ गया है। आज जैसे ही घड़ी की सुईयां मध्यरात्रि की घोषणा करेंगी, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और आजादी की करवट के साथ उठेगा।

यह एक ऐसा क्षण है, जो इतिहास में यदा-कदा आता है, जब हम पुराने से नए में कदम रखते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब एक राष्ट्र की लंबे समय से दमित आत्मा नई आवाज पाती है। यकीकन इस विशिष्ट क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें।

देश की आजादी के बाद पंडित नेहरू के ऐतिहासिक भाषण ट्रिस्ट विद डेस्टिनी का ये हिस्सा उस वक्त इस महान विजनरी नेता के जेहन में क्या चल रहा था और वो इस देश के बारे में क्या सोच रहे थे से वाकिफ कराने के लिए काफी है। आज उनकी जयंती के मौके पर देश और विश्व के हालात के मद्देनजर पंडित नेहरू को समझना और भी जरूरी हो गया है, क्योंकि सोशल मीडिया के इस दौर में अगर किसी नेता या महापुरुष की छवि को नुकसान पहुंचाया है तो उसमें जवाहर लाल नेहरू का नाम सबसे पहले आता है। आज की पीढ़ी नेहरू को बिना पढ़े उनके कार्यों और हालात की चुनौतियों को बिना समझे ही व्हाटसअप यूनिवर्सिटी में फैलाई गए झूठ को ही सच मानकर नेहरू के बारे में राय कायम कर रही है।
14 और 15 अगस्त की दरम्यानी रात अपने ऐतिहासिक उद्बोधन में नेहरू आगे कहते हैं ‘आज हम जिस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं, वह हमारी राह देख रही महान विजयों और उपलब्धियों की दिशा में महज एक कदम है। इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हमारे अंदर पर्याप्त साहस और अनिवार्य योग्यता है?

वे मिल रहे आजादी के साथ उसकी चुनौती को लेकर चिंतित थे। वे इस विशाल देश को एक सूत्र में बांधने में आने वाली मुश्किलों को पहले भांप रहे थे। आजादी के बाद नव भारत के निर्माण में उनका योगदान बहुत महत्वपूर्ण था। गांधी के करीब होते हुए भी उनका बापू से कई विषयों पर गहरा मतभेद भी रहा। उन्होंने औद्योगीकरण को देश के विकास के लिए बेहद महत्पूर्ण माना। आजादी के बाद उन्होंने शिक्षा से लेकर उद्योग जगत को बेहतर बनाने के लिए कई काम किए। उन्होंने आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों की स्थापना की। साथ ही उद्योग-धंधों की भी शुरूआत की। उन्होंने भाखड़ा नांगल बांध, रिहंद बांध और बोकारो इस्पात कारख़ाना की स्थापना की थी। वह इन उद्योगों को देश के आधुनिक मंदिर मानते थे।

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी दूरदृष्टि से जो पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं उनसे देश को आज भी लाभ मिल रहा है। नेहरू ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मुझे वो व्यक्ति नापसंद है जो भगवान, सत्य या फिर जनता के नाम पर अपना मतलब पूरा करता है। आज दुर्भाग्य है कि देश की राजनीति में उन्ही सारे तत्वों की भरमार है। ऐसे में साफ-सुथरी राजनीति के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण के लिए नेहरू को याद करना जरूरी है।

आज लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण की बात कई बार होती है, ऐसे में नेहरू को एक बार फिर समझने की जरूरत है। वे इस देश में लोकतंत्र की जड़े मजबूत करने के सबसे बड़े पैरोकार थे। वे नागरिक, संसदीय और आर्थिक यानि 3 तरह की लोकतंत्र की बात कहते थे। उन्होंने शुरुआत से ही जातिपाती, संप्रदायिकता का विरोध किया। आज भी ये भावना हमारे समाज के लिए कहीं न कहीं चुनौती के रूप में मौजूद हैं। ऐसे में इस मनोवृति के सामने नेहरू का विराट व्यक्तित्व ही हमें संघर्ष की प्रेरणा देता है। भले हम किसी विचार के साथ खड़े हों लेकिन स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए मजबूत विदेश नीति के लिए हम और आने वाली पीढ़ी नेहरू की नीतियों को नकार नहीं सकती।

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