– सुभाष मिश्र
From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Debate on gay marriage
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तीन दिन से जारी है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के तीसरे दिन गुरुवार को शीर्ष अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की आवक इतनी अधिक है कि संविधान पीठ के मामलों को तब तक सूचीबद्ध करना असंभव है जब तक कि बहस करने के लिए समय निर्धारित न किया जाए। इससे पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को समयबद्ध तरीके से खत्म करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा था कि अन्य मामले भी हैं जिन्हें सुनवाई का इंतजार हैं। इससे पहले सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले में सरकार का पक्ष सुना जाना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को अवगत कराया कि केंद्र ने इस मामले में याचिका दायर कर कोर्ट में इस मामले की विचारणीयता पर आपत्ति जताई है।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दर्जन भर से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं। जिन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। हालांकि सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन देकर कहा कि शादी एक सामाजिक संस्था है और इस पर किसी नए अधिकार के सृजन या संबंध को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ विधायिका के पास है और यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। केंद्र सरकार ने ये भी कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाएं सिर्फ शहरी अभिजात वर्ग के विचारों को दर्शाती हैं, इसे पूरे देश के नागरिकों का विचार नहीं माना जा सकता। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की महिला क्रिकेट टीम की एक खिलाड़ी ने समलैंगिक विवाह रचाया, इसको लेकर भारत के कई जानेमाने लोगों के साथ ही बहुत से लोगों ने उन्हें सोशल मीडिया पर बधाई दी थी। एक तरफ ये मामला कई तरह के विवादों में है वहीं इस समलैंगिक संबंध अब सार्वजनिक तौर पर बहुतेरे नजर आने लगे हैं। भले ही इस पर कानूनी चर्चा हो रही है लेकिन समाज में बहुत से लोग हैं जो अपने संबंध को स्वीकार कर रहे हैं। हालंकि इस तरह के संबंध के सामाजिक धार्मिक पक्ष बहुत अलग-अलग हैं। साल 2001 में नीदरलैंड दुनिया का पहला देश बना जिसने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता दी। इसके बाद बेल्जियम, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, नॉर्वे, स्वीडन, मैक्सिको, पुर्तगाल, आइसलैंड, अर्जेंटीना, ब्राजील, डेनमार्क, फ्रांस, उरुग्वे, न्यूजीलैंड, ग्रेट ब्रिटेन, लक्समबर्ग, आयरलैंड, कोलंबिया, फिनलैंड, माल्टा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ताइवान ने भी समलैंगिक संबंधों पर मुहर लगा दी है। भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में इस पर विवाद है। फिलहाल हमारे देश में इस मामले की सुनवाई 18 अप्रैल से शुरू हुई है और सुप्रीम कोर्ट रोज़ाना इसकी लाइव स्ट्रीमिंग भी कर रहा है। सुनवाई के पहले दिन ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि है कि वो पर्सनल लॉ के क्षेत्र में जाए बिना देखेगी कि क्या साल 1954 के विशेष विवाह क़ानून के ज़रिए समलैंगिकों को शादी के अधिकार दिए जा सकते हैं।
इसे कानूनी दर्जा देने के पक्ष में क्या दलील दी जा रही है इसे देख लेते हैं—इसके पक्ष में कहा जा रहा है कि समलैंगिक शादी को क़ानूनी मान्यता नहीं मिलना समानता के अधिकार का उल्लंघन है। स्पेशल मैरिज एक्ट सिफऱ् महिला और पुरुषों को शादी की इजाज़त देता है। ऐसे में इसे बदलकर जेंडर न्यूट्रल किया जाए। समलैंगिक शादी को मान्यता नहीं मिलने से ऐसे जोड़े कई ऐसी सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं जिनका लाभ शादीशुदा जोड़े उठा सकते हैं। जैसे-प्रॉपर्टी में नॉमिनी बनाने से लेकर एडॉप्शन, टैक्स बेनेफिट आदि। वहीं इसके विरोध में दलील दी जा रही है कि समलैंगिकता एक पश्चिमी सोच है। जैसे संविधान को बदला नहीं जा सकता, वैसे ही शादी के मूलभूत विचार को भी बदला नहीं जा सकता। समलैंगिक शादी को क़ानूनी मान्यता दिए जाने पर सामाजिक संतुलन बिगड़ जाएगा। यह भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ़ है। गोद लेने, तलाक़, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पक्षकार बनाने की मांग की है। इसे लेकर केंद्र ने एक फ्रेश हलफनामा भी दाखिल किया है। वहीं याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर ऐडवोकेट मुकुल रोहतगी ने खजुराहो के मंदिर की मूर्तियों का हवाला देते हुए कहा कि समलैंगिकता हजारों वर्ष से मौजूद है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2018 में नवतेज सिंह जौहर मामले में समलैंगिक जोड़ों के बीच रिश्तों को आपराधिक कृत्यों की श्रेणी से बाहर कर दिया था। इससे पहले तक समलैंगिक लोगों के बीच रिश्तों को अपराध की श्रेणी में गिना जाता था जिनके खिलाफ़ सामाजिक और क़ानूनी स्तर पर कार्रवाई की जा सकती थी। इसके बाद से ही इसे कानूनी दर्जा देने की मांग कुछ लोगों ने तेजी से उठाई। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में किन्नर शब्द संभवत: समलैंगिक समुदाय को सूचित करता था। ऋग्वेद के एक सूक्त में लिखा है कि ‘विकृति: एव प्रकृति:अर्थात जो अप्राकृतिक है वह भी प्रकृति की ही देन है।