प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से – हिंसक मोड़ पर बचपन !

प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से – हिंसक मोड़ पर बचपन !

– सुभाष मिश्र

Raipur के स्कूल में दसवीं कक्षा के एक छात्र की हत्या 11वीं कक्षा के चार छात्रों ने मिलकर कर दी। इस घटना को सामान्य आपराधिक घटना के तौर पर ही नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि ये वारदात समाज में घटती सहनशीलता और बच्चों को अलग-अलग माध्यम से मिल रहे हिंसा और आक्रामकता के अनचाहे डोज का नतीजा है। कोविड के दौरान मोबाइल और लैपटॉप जैसे गैजेट स्कूली बच्चों के लिए भी अनिवार्य हो गया है। इसके कई लाभ होने के साथ ही बड़े पैमाने पर नुकसान भी है, क्योंकि इन्ही यंत्रों के माध्यम से बच्चे उन बातों से जुड़ रहे हैं जिनका खतरनाक असर उनके मन मस्तिष्क पर पड़ रहा है। आज इंटरनेट पर ऐसी फिल्मों और वेबसीरीज की भरमार है जिनमें हिंसा, कामुकता, फुहड़ता के दृश्य भरे पड़े हैं। इनका असर बच्चों पर पड़ रहा है। आये दिन रायपुर की तरह देश के कई शहरों में बच्चों के बीच खूनी खेल खेले जा रहे हैं। इन दो सालों के भीतर दिल्ली के कई स्कूलों में छात्रों के बीच हिंसक वारदातें हुई हैं। कुछ मामलों में हत्या भी हुई है।
बच्चों के बीच पनपती हिंसा हमारे समाज का डराने वाला सच है। बच्चों को देश का, समाज का भविष्य कहा जाता है लेकिन उनमें ही इतनी हिंसा, असहनशीलता, आपसी वैमनस्यता होगी तो आने वाले कल की कल्पना करके ही मन व्यथित हो जाता है।
दरअसल, समाजशास्त्रियों व बुद्धिजीवियों ने बहुत पहले ही इस बात से अवगत करवाना शुरू कर दिया था, लेकिन इसे गंभीरता से तब भी नहीं लिया गया कमोबेश आज भी यही स्थिति है। देश में जिस तरह सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक मॉडल लाया जा रहा है, वह आने वाली पीढिय़ों को खतरनाक मोड़ पर ले जा रहा है। फिल्मों में बढ़ रहे हिंसक दृश्य, हाथों में हथियार लेकर गोलियां चलाते हुए गायकों द्वारा गाए जा रहे गीत, कम्प्यूटर और मोबाईल फोन पर आ रहे बच्चों के लिए हिंसक गेम्स बच्चों को हिंसक बना रहे हैं।

बच्चों में बढ़ रही हिंसा की प्रवृत्ति को रोकने के लिए विद्यालय एवं समाज के साथ मीडिया को भी अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। रायपुर के खमतराई थाना क्षेत्र के अंतर्गत भनपुरी इलाके के एक सरकारी स्कूल में 10वीं कक्षा के छात्र मोहन सिंह राजपूत (16) की हत्या के आरोप में पुलिस ने 11वीं कक्षा के चार छात्रों को पकड़ा है। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि जब मोहन स्कूल में था तब वहां 11वीं कक्षा के छात्रों के साथ उसका विवाद हो गया और बाद में हाथापाई शुरू हो गई। स्कूल में चार लड़कों ने मोहन की पिटाई की और जब मोहन बेहोश होकर गिर गया तब वह लड़के उसे वहां छोड़कर भाग गए। बाद में अस्पताल ले जाने पर डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।
कुछ मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि स्कूली बच्चों द्वारा हिंसा कुंठा और दबाव का नतीजा है। स्कूली बच्चों की प्रवृत्ति में आए बदलाव के पीछे तीन कारण हैं, जिसमें पहला है कि परिवारों का बच्चों से संवाद कम हो गया है। माता-पिता बच्चों को अधिक समय नहीं दे पा रहे हैं जिस कारण बच्चों में नैतिक मूल्य का निर्माण नहीं हो पा रहा है। इससे बच्चों में सहयोग व सद्भाव वाली भावना घट रही है। दूसरा कारण है शिक्षा प्रणाली। जब तक स्कूली बच्चों की शिक्षण प्रणाली सही नहीं होगी, तब तक वे मानसिक दबाव और तनाव में रहेंगे ही वे कब क्या कर बैठेंगे, कोई नहीं जानता।
आज सफलता पाने के लिए बच्चों पर बहुत दबाव है। अगर किसी बच्चे ने सफलता पा ली तो ठीक है, लेकिन अगर वह सफल नहीं हुआ तो परिवार से लेकर समाज तक में उसे कोसा जाता है। ऐसे में उसमें कुंठा बढ़ेगी ही। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। कहीं न कहीं शिक्षा व्यवस्था इसके लिए जिम्मेदार है। बच्चों पर हमने शिक्षा का इतना अधिक दबाव तो डाल दिया, लेकिन उनमें नैतिक मूल्यों का विकास नहीं किया। इन्ही मूल्यों के कारण बच्चे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझ नहीं पाते। इसके लिए सभी समाजसेवियों, शिक्षाविदों और चिंतकों को आगे आना चाहिए। ताकि स्कूली बच्चों में नैतिक मूल्यों के विकास को बढ़ाया जाए, न कि हिंसक प्रवृत्ति को।

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