प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से – उपचुनाव यानि आत्म अवलोकन का मौका !

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From the pen of editor-in-chief Subhash Mishra – By-election means a chance for self-observation!

– सुभाष मिश्र

5 दिसंबर को गुजरात के साथ छत्तीसगढ़ के भानुप्रतापपुर में उपचुनाव होना है। आदिवासी नेता मनोज मंडावी के निधन के बाद ये सीट खाली हुई है। वैसे देखा जाए तो छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के लिए एक साल का समय बचा है ऐसे में ये उपचुनाव सत्ता पक्ष के लिए अपने कामकाज के मूल्यांकन का अवसर है वहीं विपक्ष के पास उनके आरोप को साबित करने का मौका।

चलिए नजर डालते हैं भानुप्रतापपुर उपचुनाव के बहाने प्रदेश के सियासी समीकरणों पर। भानुप्रतापपुर उत्तर बस्तर की बेहद महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है। 1962 में ये विधानसभा सीट अस्तित्व में आई और प्रदेश की उन सीटों में शामिल है जहां भाजपा और कांग्रेस के अलावा निर्दलीय और अन्य दलों को मौका मिला है। कांग्रेस के मनोज मंडावी यहां से बेहद लोकप्रिय नेता रहे हैं। उन्हें 2018 के चुनाव में खासा समर्थन मिला था, बड़े अंतर से उन्होंने यहां से जीत दर्ज की थी।
भानुप्रतापपुर की तासिर बदलाव वाली रही है, इसलिए इस सीट पर अभी तक किसी ने भी हैट्रिक नहीं बनाई है। इस विधानसभा का बड़ा इलाका नक्सल प्रभावित है हालांकि पिछले कुछ वर्षों में विकास के कई कार्य यहां हुए हैं इसके चलते नक्सलियों का असर पहले से काफी कम हुआ है। छत्तीसगढ़ में हाल ही में कई नए जिले बनाए गए हैं। भानुप्रतापपुर की भी दावेदारी जिले के रूप में रही है। इससे पहले हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने खैरागढ़ को ये सौगात दी थी।

पांचवी विधानसभा में ये पांचवा उपचुनाव है। इससे पहले छत्तीसगढ़ में इतने उपचुनाव किसी भी सरकार के एक कार्यकाल में नहीं हुए थे। पिछले चार सालों में हुए चारों विधानसभा उपचुनाव चित्रकोट, दंतेवाड़ा, मरवाही और खैरागढ़ में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। इनमें से दो सीट 2018 के चुनाव में जेसीसीजे के पास थी वैसे छत्तीसगढ़ में उपचुनाव का अधिकतर फैसले सत्ताधारी दल के पक्ष में ही रहा है।

वैसे देखा जाए तो प्रदेश की सियासत पिछले दो माह से ही चुनावी मोड में शिफ्ट होती नजर आई है। भाजपा ने संगठन स्तर पर जहां भारी बदलाव किए हैं वहीं कांग्रेस ने भी संगठन स्तर पर चुनावी तैयारी शुरू कर दी है। भविष्य की रणनीति को लेकर बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। माना जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल में चुनाव के बाद यहां फोकस और तेजी से बढ़ेगा। इस बीच ये उपचुनाव दोनों ही प्रमुख पार्टियों को ग्राउंड रियलटी जानने का अच्छा मौका देने जा रहा है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने भूपेश बघेल की अगुवाई में ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त ध्यान दिया है। पिछले दिनों हम मुख्यमंत्री के साथ भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के तहत कांकेर जिले के इस इलाके में यात्रा में शामिल थे यहां मुख्यमंत्री जिस तरह ग्रामीणों से मिल रहे थे उससे आसानी से समझा जा सकता है कि वे यहां से सीधे जुड़े हुए हैं। यहां के मुद्दे यहां के सरोकार को समझते हुए वे कार्य कर रहे हैं। कई कार्यों को लेकर ग्रामीण मुख्यमंत्री को धन्यवाद दे रहे थे।

अगर विपक्ष के नजरिए से देखें तो भाजपा एक बार फिर भानुप्रतापपुर की सीट जीतने की भरसक कोशिश करेगी, क्योंकि विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उपचुनाव में जीत मिलने से किसी का भी मनोबल बढ़ सकता है। भाजपा विपक्ष धर्म निभाते हुए सरकार पर कई मामलों पर आरोप लगाती रही है, ऐसे में इस उपचुनाव को जीतकर इन आरोपों को सच साबित करने की कोशिश करेगी। वैसे भाजपा और कांग्रेस के अलावा यहां आम आदमी पार्टी की भी दावेदारी महत्वपूर्ण हो सकती है, क्योंकि यहीं से आप के प्रदेश अध्यक्ष कोमल उपेंडी आते हैं वे भी अपनी ओर से पूरी ताकत झोंकेंगे। हालांकि अभी तक आप की कोई खास मौजूदगी प्रदेश की सियासत में नहीं रही है। इस तरह देखा जाए तो भानुप्रतापपुर के चुनावी रण ने 2023 के चुनाव के पहले राजनैतिक दलों को आत्म अवलोकन का अच्छा मौका दे दिया है।

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