Enthusiasm of holi होली की उमंग आयुर्वेद के संग

Enthusiasm of holi

Enthusiasm of holi  खान-पान में रखें सावधानी, शराब, भांग और अन्य मादक पदार्थों से रहें दूर

Enthusiasm of holi  रायपुर। होली यानि रंगों और नाना प्रकार के पकवानों के इस त्योहार के दौरान खान-पान में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में उमंग और उत्साह के मौसम बसंत ऋ तु में मनाए जाने वाले होली पर्व को आरोग्य के लिए महत्वपूर्ण पर्व माना गया है क्योंकि इस त्योहार में मन ईष्र्या, द्वेष, शत्रुता, क्रोध जैसे मानसिक अवगुणों से मुक्त होकर प्रफुल्लित रहता है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

Enthusiasm of holi  शासकीय आयुर्वेद कॉलेज रायपुर के सह-प्राध्यापक डॉ. संजय शुक्ला ने बताया कि चूंकि इस समय वातावरण में अनेक पराग कण मौजूद रहते हैं जो एलर्जिक रोग पैदा करते हैं, इसलिए होलिका दहन में अगरू, आम, साल, नीम इत्यादि के सूखे पेड़ों की टहनियों तथा गूगुल, कपूर इत्यादि आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का उपयोग हवन के रूप में करना चाहिए ताकि वातावरण संक्रमण रहित हो सके।

डॉ. शुक्ला ने बताया कि होली त्योहार के दौरान लोगों को रंग-गुलाल के साथ ही खान-पान में लापरवाही के कारण अनेक बार सेहत से जुड़ी समस्याओं से जूझना पड़ता है। इन दिनों बाजार में बिकने वाले अधिकांश रंग और गुलाल केमिकल और सिंथेटिक होते हैं जो अनेक बार आंख और त्वचा के लिए नुकसानदायक होते हैं। इसलिए रंग और अबीर के चयन में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।

डॉ. शुक्ला ने बताया कि टेसू सहित अनेक वनस्पतियों जिससे प्राकृतिक रंग और गुलाल बनाया जाता है, उनमें औषधि गुण भी होते हैं। फलस्वरूप ये त्वचा और आंखों के लिए सुरक्षित होने के साथ ही चर्म रोगों में भी गुणकारी होते हैं। आजकल एरोमा थेरेपी यानि सुगंध से इलाज भी प्रचलन में है इसलिए सुगंध युक्त रंग-गुलाल से मन प्रसन्नचित्त हो जाता है जिससे होली का उमंग दोगुना हो जाता है। इसके अलावा मेहंदी और नीम की पत्तियों, गुड़हल, गेंदा, गुलाब, हरसिंगार फूल और नील पौधे की फलियों को उबालकर रंग व गुलाल बनाया जाता है। होली में हमें प्राकृतिक रंग और गुलाल का ही उपयोग करना चाहिए।

होली और ग्रीष्म ऋतु में छाछ, नीबू, आंवला, बेल, खस का शरबत और गन्ना रस का उपयोग लाभकारी
डॉ. संजय शुक्ला ने बताया कि होली के समय एवं बसंत ऋतु में आयुर्वेद पद्धति में पाचन तंत्र के लिए सुरक्षित और सुपाच्य आहार व पेय के विशेष निर्देश हैं। शीत ऋतु में शरीर में जमा कफ इस ऋतु में पिघलता है जिसका प्रभाव यकृत यानि लिवर में पड़ता है जो पाचन तंत्र से जुड़ा महत्वपूर्ण अंग है।

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के अनुसार इस ऋतु में गेहूं और मिश्रित आटे की रोटी, मूंग की दाल, खिचड़ी, हरी सब्जियां जैसे भिंडी, करेला, मुनगा यानि सहजन, भाजी, पुदीना, लहसुन, अदरक जैसे भोजन, सब्जियों और मसालों को अपने खान-पान में शामिल करना चाहिए। होली और ग्रीष्म ऋतु में छाछ, नीबू, आंवला, बेल, खस का शरबत और गन्ना रस का उपयोग करना चाहिए। लेकिन बाजार में बिकने वाले इन पेय पदार्थों के सेवन से परहेज करना चाहिए क्योंकि साफ-सफाई के अभाव में अनेक रोगों के संक्रमण का खतरा हो सकता है।

ग्रीष्म ऋतु में अंगूर, संतरा, मौसंबी, तरबूज और खरबूज जैसे रसीले व पानीदार फलों का सेवन करना चाहिए जो शरीर को निर्जलीकरण से बचाता है। लोगों को आसन्न गर्मी के लिहाज से होली त्योहार में अधिक वसायुक्त खाद्य पदार्थों, गरिष्ठ भोजन, मांसाहार, भांग इत्यादि मादक पदार्थों तथा शराब के सेवन से बचना चाहिए, अन्यथा अनेक रोगों का खतरा बढ़ सकता है जो रंग में भंग डाल सकता है। आयुर्वेद में बताए गए इन सावधानियों के पालन और खान-पान से होली का उमंग दोगुना हो सकता है।

 

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