Election Commission चुनाव आयोग के लचर तर्क

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Election Commission चुनाव आयोग के लचर तर्क

Election Commission गुजरात और हिमाचल प्रदेश में 2017 में एक महीने के अंतराल पर मतदान हुआ था लेकिन दोनों राज्यों के चुनाव नतीजे एक साथ 18 दिसंबर को आए थे। दोनों राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया एक साथ 20 दिसंबर को पूरी हुई थी। दोनों राज्यों की विधानसभाओं का गठन भी लगभग साथ साथ हुआ था और विधानसभाओं का कार्यकाल भी साथ साथ ही खत्म हो रहा था।

तभी यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि दोनों राज्यों में इस साल एक साथ चुनाव होंगे। लेकिन चुनाव आयोग ने सिर्फ हिमाचल प्रदेश में चुनाव की घोषणा की और गुजरात को छोड़ दिया। दो छोटे छोटे राज्यों के चुनाव एक साथ नहीं कराने पर चुनाव आयोग ने इतने लचर दिए, जिन्हें सुन कर हैरानी हुई।

Election Commission चुनाव आयोग ने मौसम का हवाला दिया और कहा कि हिमाचल में बर्फ गिरनी शुरू हो उससे पहले चुनाव कराना था। अच्छी बात है। बर्फ गिरनी शुरू हो उससे पहले चुनाव के लिए 12 नवंबर का दिन तय हुआ। तो सवाल है कि उसी दिन गुजरात का चुनाव क्यों नहीं हो सकता था? किसी भी राज्य की विधानसभा का कार्यकाल छह महीने से कम बचा होता तो वहां चुनाव का फैसला आयोग को करना होता है।

जैसे हिमाचल प्रदेश की पिछली विधानसभा का कार्यकाल जनवरी 2018 में खत्म हो रहा था लेकिन आयोग ने नौ नवंबर 2017 को ही चुनाव करा लिया था। उसी तरह गुजरात विधानसभा का कार्यकाल भी छह महीने से कम रह गया है तो आयोग उसकी तारीखों का फैसला कर सकता था।

Election Commission चुनाव आयोग ने परंपरा का हवाला दिया। यानी दोनों राज्यों में अलग अलग चुनाव घोषणा की परंपरा रही है। सोचें, इसका क्या मतलब है? जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चुनाव आयोग दोनों वन नेशन, वन इलेक्शन की बात करते हैं यानी पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं में चुनाव की बात करते हैं तो क्या तब उनको परंपरा का ख्याल नहीं आता है?

एक साथ चुनाव कराने में क्या परंपराएं नहीं टूटेंगी? क्या आयोग को पता नहीं है कि ऐसी परंपराएं कितनी बार पहले टूट चुकी हैं? इसमें तो कोई बड़ी परंपरा भी नहीं टूटनी थी। दोनों राज्यों के वोटों की गिनती जब साथ होनी है तो चुनाव की घोषणा भी एक साथ हो सकती है और मतदान भी एक साथ हो सकता है।

Election Commission बहरहाल, चुनाव आयोग के इस फैसले से दोनों राज्यों और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को बहुत फायदा होना है। जब तक गुजरात में चुनाव की घोषणा नहीं होनी है तब तक प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री बड़ी परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास करते रहेंगे। इस बीच हिमाचल में चुनाव प्रचार शुरू हो जाएगा, जिस पर फोकस करके भाजपा काम कर सकेगी।

हिमाचल में जब मतदान हो जाएगा तब गुजरात में चुनाव प्रचार जोर पकड़ेगा और तब भाजपा के तमाम नेता वहां ध्यान केंद्रित करेंगे। गुजरात में भी आयोग दो या तीन चरण में मतदान कराएग। क्यों कराएगा वह सबको पता है। सोचें, जिन दो राज्यों में भाजपा अपनी जीत को लेकर सबसे ज्यादा आश्वस्त है वहां इस तरह के प्रबंधन हो रहे हैं!

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