-सुभाष मिश्र
कहा जाता है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए होगा, ये तो भविष्य के गर्त में छुपा है। युद्ध होगा कि नहीं किन्तु दिल्ली, हरियाणा और देश के बाकी हिस्सों में पानी की शुद्धता को लेकर बहुत राजनीति हो रही है। दिल्ली में चुनाव है। यमुना नदी दिल्ली की जीवनदायिनी है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने कार्यकाल में जो बयान दिए थे। अब वो विपक्षी दलों के लिए चुनावी दांव साबित हो रहे हैं। केजरीवाल ने कहा था कि दिल्ली में जल आपूर्ति और जल संकट को लेकर दिल्ली सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और हरसंभव प्रयास किया जा रहा है ताकि दिल्लीवासियों को पर्याप्त और स्वच्छ पानी मिल सके। केजरीवाल ने बताया कि सरकार ने कई योजनाओं के तहत पानी की आपूर्ति में सुधार के लिए काम किया है। दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में जल आपूर्ति के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है और पानी के संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है।
अब केजरीवाल यमुना के पानी को जहरीला बताते हुए इसके लिए हरियाणा सरकार पर दोष मढ़ रहे हैं। वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित समूचा विपक्ष अरविंद केजरीवाल को कटघरे में खड़ा कर रहा है। नायब सिंह ने तो चुल्लू से पानी भी पिया वहीं प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि पिछले कई सालों में यमुना का पानी पी रहा हूं। सवाल यह नहीं है कि यमुना, गंगा या बाकी नदियों के पानी जहरीले हैं या नहीं किन्तु पानी को लेकर इस समय पूरे चुनाव में जहर उगला जा रहा है।
भारत में नदियों का प्रदूषण एक गंभीर पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गई है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 81 नदियों और उनकी सहायक जलधाराओं में एक या उससे अधिक हानिकारक धातुओं का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक पाया गया है। इनमें आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, लोहा, सीसा, पारा और निकल जैसी जहरीली धातुएं शामिल हैं।
गंगा नदी की जल शुद्धता- 2024 के जल गुणवत्ता आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के अधिकांश हिस्से स्नान योग्य जल गुणवत्ता मानकों को पूरा करते हैं। हालांकि, फर्रुखाबाद से पुराना राजापुर और कन्नौज से कानपुर तक के कुछ क्षेत्रों में ये मानक पूरे नहीं होते। बिहार में गंगा के सभी 96 निगरानी स्थलों पर जल गुणवत्ता स्नान के लिए निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करती है, जो जल प्रदूषण की गंभीरता को दर्शाता है। हरिद्वार में गंगा जल की गुणवत्ता ‘बीÓ श्रेणी में पाई गई है, जो नहाने के लिए उपयुक्त है, लेकिन पीने के लिए नहीं।
गंगा जल में बैक्टीरियोफेज नामक वायरस पाए जाते हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट करने में सक्षम होते हैं। यह गुण गंगा जल की स्व-शुद्धिकरण क्षमता को दर्शाता है।
गंगा और यमुना नदियों के कुछ हिस्सों में जल की गुणवत्ता में सुधार देखा गया है, लेकिन कई क्षेत्रों में प्रदूषण का स्तर अभी भी चिंता का विषय है। एक ओर राजेंद्र सिंह जैसे लोग जिन्हें जल मित्र के नाम से भी जाना जाता है वो पानी के संकट को लेकर लगातार आंदोलनरत रहे हैं। वे पानी को लेकर सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलन के जरिए जागरूकता लाते रहे हैं लेकिन हमारे देश में पानी को लेकर जिस तरह की सजगता-सर्तकता और मितव्ययिता बरतना चाहिए, वह नहीं बरती जा रही है। उल्टे बहुत सारी सरकारों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद की स्थिति है।
कावेरी नदी विवाद (कर्नाटक और तमिलनाडु)-कावेरी नदी का पानी दोनों राज्यों के बीच वितरण का बड़ा विवाद बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट और जल विवाद न्यायाधिकरण के आदेशों के बावजूद विवाद जारी रहता है। हरियाणा और पंजाब के बीच पानी का विवाद किसानों के सिंचाई के अधिकारों को लेकर कई बार राजनीतिक संघर्षों का कारण बना है।
हमें यह समझना होगा कि जल की राजनीति का सीधा संबंध पर्यावरणीय नीति से है। जल स्रोतों का अत्यधिक दोहन और प्रदूषण पर्यावरणीय संकट को बढ़ाते हैं। जल संकट और पानी के घटते स्तर का मुकाबला करने के लिए सरकारों को अक्सर राजनीतिक दबावों का सामना करना पड़ता है।
भारत में जल प्रबंधन और पानी के वितरण के लिए संविधान में कुछ प्रावधान हैं। जल को राज्यों की सूची में रखा गया है, जिसका मतलब है कि राज्य पानी के वितरण और उपयोग से संबंधित नीतियां तय करते हैं। हमारे देश में बहुत सारी बीमारियां जलजनित है। हमें पानी की स्वच्छता उपलब्धता और उपयोग को लेकर बेहद सावधान रहने की जरूरत है। बेशक हम अपनी पवित्र नदियों में मौनी अमावस्या जैसे अवसरों पर डुबकी लगाकर अपने को पवित्र करें और अपने पापों से मुक्ति का मार्ग खोजें पर इसके पहले हमें अपने नदियों के जल को स्वच्छ रखना होगा। नहीं तो जल के जहरीलेपन को लेकर राजनीतिज्ञ लोग बहुत सा जहर उगलेंगे और वह जगह सोशल मीडिया के जरिए पूरे समाज में फैलेगा।